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पत्रिका इंटरव्यू: कोकिलाबेन अस्पताल के सीईओ बोले- कम हुआ है कोविड का दबाव, अब डॉक्टर और नर्स भी थोड़ा ब्रेक लें

मुंबई.

कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के सीईओ और एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. संतोष शेट्टी ने फ्रंटलाइन वर्कर को तनाव कम करने के तरीके बताते हुए कहा कि अब कोविड की लहर कमजोर हो रही है, ऐसे में डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ भी थोड़ा ब्रेक लें और खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाएं। उन्होंने कहा कि डॉक्टर्स एक साल से कोरोना से जूझ रहे हैं, ऐसे में वह बेहतर तरीके से समझ गए हैं कि इससे निपटना कैसे है। इसलिए डॉक्टर्स के अंदर का तनाव पहले की तुलना में कम हुआ है, लेकिन काम के दबाव का तनाव अभी बना हुआ है। पेश हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश...

प्रश्न- कोविड में चिकित्सकों को किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा?

डॉ. शेट्टी- ऐसी बीमारी देखी नहीं थी। इलाज का तरीका पता नहीं था। संक्रमण का डर था, जिसने मा नसिक और इमोशनल ट्रॉमा दिया। परिवार के भीतर संक्रमण फैलने का डर, फीलिंग आॅफ गिल्ट ला रहा था। नई दवाईयां के प्रयोग और पीपीई किट में काम करना एक बड़ी चुनौती था। ऐसे में खुद को मजबूत रखकर मरीज का इलाज करना एक बड़ी चुनौती था।

प्रश्न- इनसे जूझने के लिए किस तरह से बदलाव हुए हैं?

डॉ. शेट्टी- बड़ी संख्या में डॉक्टरों को काउंसलिंग की जरूरत पड़ी। उन्हें एंजायटी इश्यू दिखाई दिए तो उन्हें भरोसा दिलाया कि उनके साथ सभी लोग हैं। उनका आत्मविश्वास बढ़ाना सबसे ज्यादा जरूरी था, उस पर प्रयास किए गए। सबसे बड़ा बदलाव आॅनलाइन ओपीडी के तौर पर आया। आज 20 से 25 फीसदी सामान्य मरीज आॅनलाइन ओपीडी कर रहे हैं, दवाई ले रहे हैं। यह आने वाले वक्त के लिए बड़ा बदलाव है।

प्रश्न- डॉक्टर्स को मानसिक तौर पर भी मुश्किलें झेलनी पड़ीं, आगे क्या करें?

डॉ. शेट्टी- डॉक्टर्स ने एक बड़ा वक्त कोविड के साथ गुजार लिया है। अब उन्हें मालूम है कि इलाज क्या है, बचाव क्या हैं और कैसे संभलकर रहना है। इसलिए अब उन पर मानसिक तनाव का स्तर कम हुआ है। लेकिन काम का दबाव बना हुआ है, ऐसे में उन्हें समय—समय पर ब्रेक की जरूरत है, जो वो लेते रहें। हम युद्ध के अंत की ओर बढ़ रहे हैं, बस संभलकर चलना है।

प्रश्न- सबसे बड़ा बदलाव क्या नजर आया, कैसे संभाला?

डॉ. शेट्टी- बतौर डॉक्टर सबसे बड़ा बदलाव मरीज को संभालना था। क्योंकि ऐसा पहली बार था कि बिना किसी परिजन के मरीज भर्ती हुए थे। अंदर मरीज थे और बाहर परिजन, दोनों ही बेचैन थे। डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ पर ही जिम्मेदारी थी कि वह मरीज को इलाज के साथ परिजन का भरोसा भी दें, केयरिंग का भाव दें। वहीं, बाहर हम परिजनों का हौसला बढ़ा रहे थे। यह पहली बार था जब इलाज के साथ डॉक्टर को मरीज का सपोर्ट सिस्टम बनकर सामने आना पड़ा।

प्रश्न- सोसायटी को कैसे डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ के साथ खड़ा होना चाहिए?

डॉ. शेट्टी- डॉक्टर्स दिन—रात काम कर रहे हैं। मरीज को बेहतर इलाज दे रहे हैं। बावजूद इसके सब कुछ उनके हाथ में नहीं है। कई बार अनहोनी भी होती है। ऐसे में परिजन धैर्य नहीं खोएं। डॉक्टर्स के साथ हाथापाई या दुव्र्यवहार नहीं करें। यह उन्हें मानसिक तौर पर कमजोर करता है और इसके दूरगामी दुष्परिणाम सामने आते हैं।

यह भी पढ़ें:- दावा: देश में औसतन रोज 69 लाख लोगों को लग रही कोरोना की वैक्सीन, मगर कुछ गड़बड़ी भी आ रही सामने

एक नजर यहां भी..

- देशभर में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 798 डॉक्टरों की मौत

- पांडिचेरी में सबसे कम सिर्फ एक डॉक्टर की मौत

- 128 डॉक्टरों ने सबसे ज्यादा दिल्ली व बिहार में 115 ने गंवाई जान

- 420 नए ई-हॉस्पिटल फरवरी 2021 में सरकार ने खोले

- 1,511 लोगों पर एक डॉक्टर (एलोपैथिक) सेवा दे रहे

- 670 लोगों पर एक नर्स, मानक 300 पर एक नर्स का

डॉक्टरों पर बोझ
- 11.54 लाख पंजीकृत डॉक्टर
- 29.66 लाख नर्सें हैं देश में
- 11.25 लाख फार्मासिस्ट्स
- 2018 की रिपोर्ट के अनुसार

ऐसा भी है...
- 380 लोगों पर गोवा में एक डॉक्टर
- 17,060 लोगों पर नागालैण्ड में एक डॉक्टर
- 111 लोगों पर केरल में एक प्रशिक्षित नर्स
- 4,019 लोगों पर झारखंड में एक प्रशिक्षित नर्स

यह भी पढ़ें:- डेल्टा प्लस के बाद कोरोना का लैम्ब्डा वेरिएंट आया सामने, जानिए क्या है लक्षण और कितना खतरनाक साबित होगा

राज्य मौतें

बिहार 115
दिल्ली 128
आंध्र प्रदेश 40
असम 10
छत्तीसगढ़ 07
गुजरात 39
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जम्मू-कश्मीर 03
झारखंड 39
कर्नाटक 09
केरल 24
मध्यप्रदेश 16
महाराष्ट्र 23
मणिपुर 06
उड़ीसा 36
पुड्डुचेरी 01
पंजाब 03
राजस्थान 44
तमिलनाडु 51
तेलंगना 37
त्रिपुरा 02
उत्तर प्रदेश 79
उत्तराखंड 02
प. बंगाल 62
अन्य 01
(* आंकड़े आइएमए की जारी सूची के आधार पर)

यहां डॉक्टरों की सबसे ज्यादा कमी
झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा कमी है।

यहां नर्सों की सबसे ज्यादा कमी
नर्सों की सबसे ज़्यादा कमी बिहार, झारखंड, सिक्किम, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में है।

एमबीबीएस की दो तिहाई सीटें
सात राज्यों में तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र गुजरात में एमबीबीएस की दो तिहाई सीटें हैं।



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