भगवान शिव की पूजा में जरुरी हैं ये श्रृंगार, बिलकुल ना करें भूल

महाशिवरात्रि पर शिव जी की पूजा कर अभिषेक किया जाता है और उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है। महादेव की पूजा कर उनका श्रृंगार किया जाता है। भगवान की पूजा अगर सच्चे मन से की जाए तो भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। शिवरात्रि के दिन शिव जी का श्रृंगार भी किया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है शिव जी के श्रृंगार में बहुत सी चीजों का ध्यान रखना चाहिये....

 

 

 भगवान शिव की पूजा में जरुरी हैं ये श्रृंगार, बिलकुल ना करें भूल

शिव जी का पहला श्रृंगार-

भगवान शिव का पहला श्रृंगार गंगा को माना जाता है। शिव जी के सिर पर गंगा जी विराजमान रहती हैं। बताया जाता है की जब पृथ्वी की विकास यात्रा के लिये गंगा जी को स्वर्ग से धरती पर लाया गया था, तब पृथ्वी की क्षमता गंगा के आवेग को सहने में असमर्थ हो गई थी। इस अवस्था को देखकर भगवान शिव ने गंगा जी को अपनी जटाओं में समेट लिया और इसके माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया की आवेग की अवस्था को दृढ़ संकल्प के माध्यम से संतुलित किया जा सकता है।

 

शिव जी का दूसरा श्रृंगार-

भगवान शिव का दूसरा श्रृंगार मुकुट यानी की चंद्रमा है। चंद्रमा भगवान शिव का मुकुट है, चंद्रमा का एक नाम सोम भी है और इसे शांति का प्रतीक माना जाता है। लेकिन चंद्रमा के भगवान शिव पर मुकुट के रुप में विराजमान होने के पीछे का कारण है कि चंद्र आभआ, प्रज्जवल, धवल स्थितियां बनती है इसके होने से मन में शुभ विचार उत्पन्न होते हैं।

 

शिव जी का तीसरा श्रृंगार त्रिशूल-

भगवान शिव का तीसरा श्रृंगार उनका त्रिशुल है। इसलिये भगवान शिव के पास हमेशा त्रिशुल होता है क्योंकि इस त्रिशुल के तीन शूल क्रमशः सत, रज और तम गुण से प्रभावित भूत, भविष्य और वर्तमान का द्योतक है। भगवान शिव के माध्यम से दुष्ट और राक्षसों का संहार करने वाला माना जाता है।

 

भगवान शिव का चौथा श्रृंगार भस्म-

शिव जी का चौथो श्रृंगार भस्म मानी जाती है, क्योंकि भस्म से ही नश्वरता का स्मरण होता है। वहीं वेद में रुद्र को अग्नि का प्रतीक माना जाता है और अग्नि का कार्य भस्म करना होता है। अतः भस्म को शिव जी का श्रृंगार माना जाता है।

 

भगवान शिव का पांचवां श्रृंगार नागदेवता-

शिवशंकर के गले के हार 'सर्प' को प्रभु का अतिप्रिय माना गया है। जब अमृत मंथन हुआ था। तब अमृत कलश के पूर्व गरल(विष)को उन्होंने कंठ में रखा था। जो भी विकार की अग्नि होती है,उन्हें दूर करने के लिए शिव ने विषैले नागों की माला पहनी। दूसरी तरफ सर्प तमोगुणी है और संहारक वृत्ति का जीव है। अत: संहारिकता के प्रतीकस्वरूप शिव उसे धारण किए हुए हैं अर्थात शिव ने तमोगुण को अपने वश में कर रखा है।

 

भगवान शिव का छठवां श्रृंगार रुद्राक्ष-

रुद्राक्ष को भी शिव का श्रृंगार तत्व माना जाता है। इसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आँखों के जलबिंदु(आँसू) से हुई है, इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

 

भगवान शिव का सातवां पैरों में कड़ा-

यह अपने स्थिर तथा एकाग्रता सहित सुनियोजित चरणबद्ध स्थिति को दर्शाता है। योगीजन भी शिव के समान ही एक पैर में कड़ा धारण करते हैं। अघोरी स्वरुप में भी यह देखने को मिलता है।

 

भगवान शिव का आठवां श्रृंगार खप्पर-

माता अन्नपूर्णा से शिव ने प्राणियों की क्षुधा शांति के निमित्त भिक्षा मांगी थी। इसका यह आशय है कि यदि हमारे द्वारा किसी अन्य प्राणी का कल्याण होता है, तो उसको सहायता अवश्य प्रदान करनी चाहिए।

 

भगवान शिव का नवमां श्रृंगार व्याघ्र चर्म-

शिव की देह पर व्याघ्र चर्म को धारण करने की कल्पना की गई है। व्याघ्र अहंकार और हिंसा का प्रतीक है अत: शिवजी ने अहंकार और हिंसा दोनों को दबा रखा है।

 

भगवान शिव का दसवां श्रृंगार डमरू-

संसार का पहला वाद्य यंत्र है। इसके स्वर से वेदों के शब्दों की उत्पत्ति हुई है इसलिए इसे नाद ब्रह्म या स्वर ब्रह्म भी कहा गया है।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal
Read The Rest:patrika...

No comments

Powered by Blogger.