विचार मंथन : कुछ पल तो परमात्मा के पास बैठकर देखों, बदलें में मिलेगा भरपूर- आचार्य श्रीराम शर्मा

आत्मोत्कर्ष के लिए उस महाशक्ति के साथ घनिष्ठता बनाने की आवश्यकता है जिसमें अनन्त शक्तियों और विभूतियों के भण्डार भरे पड़े हैं। बिजली घर के साथ घर के बल्ब, पंखों का सम्बन्ध जोड़ने वाले तारों का फिटिंग सही होते ही वे ठीक तरह अपना काम कर पाते हैं। परमात्मा के साथ आत्मा का सम्बन्ध जितना निकटवर्ती एवं सुचारु होगा, उसी अनुपात से पारस्परिक आदान- प्रदान का सिलसिला चलेगा और उससे छोटे पक्ष को विशेष लाभ होगा। दो तालाबों के बीच में नाली खोदकर उनका सम्बन्ध बना दिया जाय तो निचले तालाब में ऊंचे तालाब का पानी दौड़ने लगेगा और देखते- देखते दोनों की ऊपरी सतह समान हो जाएगी। पेड़ से लिपटकर बेल कितनी ऊँची चढ़ जाती है इसे सभी जानते हैं, यदि उसे वैसा सुयोग न मिला होता अथवा वैसा साहस न किया होता तो वह अपनी पतली कमर के कारण मात्र जमीन पर फैल भले ही जाती, पर ऊपर चढ़ नहीं सकती थी।

 

पोले बांस का निरर्थक समझा जाने वाला टुकड़ा जब वादक के हाथों के साथ तादात्म्य स्थापित करता है तो बांसुरी वादन का ऐसा आनन्द आता है जिसे सुनकर सांप लहराने और हिरन मन्त्र मुग्ध होने लगते हैं। पतले कागज के टुकड़े से बनी पतंग आकाश को चूमती है, जब उसकी डोर का सिरा किसी उड़ाने वाले के हाथ में रहता है। यह सम्बन्ध शिथिल पड़ने या टूटने पर सारा खेल खतम हो जाता है और पतंग जमीन पर आ गिरती है। यह उदाहरण यह बताते है कि यदि आत्मा को परमात्मा के साथ सघनतापूर्वक जुड़ जाने का अवसर मिल सके, तो उसकी स्थिति सामान्य नहीं रहती। तब उसे नर पामरों जैसा जीवन व्यतीत नहीं करना पड़ता, वरन् ऐसे मानव देखते- देखते कहीं से कहीं जा पहुंचते हैं। इतिहास पुराण ऐसे देव मानवों की चर्चा से भरे पड़े हैं जिनने अपने अन्तराल को निकृष्टता से विरत करके ईश्वरीय महानता के साथ जोड़ा और देखते- देखते कुछ से कुछ बन गए।

 

उपासना को आध्यात्मिक प्रगति का आवश्यक एवं अनिवार्य अंग माना गया है। उसके बिना वह सम्बन्ध जुड़ता ही नहीं है, जिसके कारण छोटे- छोटे उपकरण बिजली घरों के साथ तार जोड़ लेने पर अपनी महत्त्वपूर्ण हलचलें दिखा सकने में समर्थ होते हैं। घर में हीटर, कूलर, रेफ्रिजरेटर, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन आदि कितने ही सुविधाजनक उपकरण क्यों न लगे हो, पर उनका महत्त्व तभी है जब उनके तार बिजलीघर के साथ जुड़कर शक्ति भण्डार से अपने लिए उपयुक्त क्षमता प्राप्त करते रहने का सुयोग बिठा लेते हो। उपासना का तत्त्वज्ञान यही है। उसका शब्दार्थ है- उप+आसन, अर्थात् अति निकट बैठना। परमात्मा और आत्मा को निकटतम लाने के लिए ही उपासना की जाती है। विशिष्ट शक्ति के आदान- प्रदान का सिलसिला इसी प्रकार चलता है।



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