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गुजरात में ब्लैक फंगस के मामले तेजी से बढ़े, अस्पतालों में दवा की कमी पर हाईकोर्ट ने उठाए सवाल

नई दिल्ली। गुजरात में ब्लैक फंगस (म्यूकोर्मिकोसिस) के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। यहां पर फंगल संक्रमण से निपटने के लिए जीवन रक्षक दवा एम्फोटेरिसिन-बी की कमी राज्य के अस्पतालों के लिए चिंता का विषय है। गुजरात के पांच शहरों के आठ प्रमुख अस्पतालों में इस बीमारी से पीड़ित कम से कम 1,163 मरीजों का इलाज चल रहा है।

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दैनिक सर्जरी की संख्या में इजाफा

संक्रमण के तेजी से फैलने के कारण दैनिक सर्जरी की संख्या में इजाफा हो रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि जहां इस बीमारी के जल्दी पता लगने से ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है, वहीं म्यूकोर्मिकोसिस विकसित करने वाले कई मरीज कोविड-19 पॉजिटिव बने रहते हैं, जिससे इलाज के लिए बहुत कम या कोई मौका नहीं मिलता।

बहुत ही गंभीर मुद्दा

सोमवार को गुजरात उच्च न्यायालय ने कोविड-19 पर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कहा कि म्यूकोर्मिकोसिस मामलों का उदय "एक बहुत ही गंभीर मुद्दा" है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार किस तरह से एंटिफंगल दवा का पर्याप्त स्टॉक सुनिश्चित करने की योजना बना रहा है।

संक्रमित रोगियों की संख्या बढ़ी तो परेशानी होगी

इस का जवाब देते हुए वडोदरा में गुजरात मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सोसाइटी (GMERS) द्वारा संचालित गोत्री मेडिकल कॉलेज अस्पताल की अधीक्षक डॉ विशाला पंड्या ने कहा, “हमें गुजरात मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (GMSCL) से एम्फोटेरिसिन बी मिल रही है। यह बैचों में उपलब्ध है लेकिन अगर आने वाले दिनों में संक्रमित रोगियों की संख्या बढ़ती है, तो यह एक समस्या होगी। दवा के नियमित संस्करण, जो कि लियोफिलाइज्ड पाउडर के रूप में अधिक स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है, कोमोरबिडिटी वाले रोगियों के लिए अनुशंसित नहीं है। एक मरीज को लंबे समय तक इलाज के लिए करीब 120 इंजेक्शन की जरूरत होती है।"

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न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और न्यायमूर्ति भार्गव डी त्रिवेदी की खंडपीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सहायक सॉलिसिटर जनरल देवांग व्यास से पूछा कि गुजरात की मांग क्यों नहीं पूरी की जा रही है। अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह राज्यों को कोविड-19 के गंभीर रोगियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रेमेडिसविर के आवंटन के लिए नीति को रिकॉर्ड में रखे।



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