सुप्रीम कोर्ट के जज करेंगे वर्क फ्रॉम होम, सामने आई ये बड़ी वजह
नई दिल्ली। देशभर में कोरोना वायरस ( Coronavirus in india ) का खतरा लगातार बढ़ रहा है। रोजाना नए मामलों में रिकॉर्ड तोड़ उछाल देखने को मिल रहा है। कई राज्यों में हालात चिंताजनक बने हुए हैं। इस बीच एक और बड़ी खबर सामने आ रही है। देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में भी कोरोना की मार देखने को मिल रही है।
यहां 50 फीसदी स्टाफ कोरोना वायरस से संक्रमित होने की खबर सामने आई है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के जजों ने फैसला लिया है कि वे अपने-अपने घरों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुननाई करेंगे।
देशभर में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। अप्रैल के महीने में डराने वाले आंकड़ो ने हर किसी की चिंता बढ़ा दी है। इस बीच देश की सर्वोच्च अदालत से भी बड़ी खबर सामने आई है।
खबरों के मुताबिक, देश की सुप्रीम कोर्ट का 50 फीसदी स्टाफ कोरोना से संक्रमित हो चुका है। इन बिगड़े हालात को देखते हुए अब सुप्रीम कोर्ट के जजों ने घर से ही सुनवाई करने का फैसला लिया है।
तय समय से एक घंटा देरी से बैठेंगी पीठें
सुप्रीम कोर्ट के पूरे परिसर को सैनिटाइज किया जाएगा। वहीं, सुप्रीम कोर्ट की पीठें अपने निर्धारित समय से एक घंटे की देरी से बैठेंगी।
इसके अलावा अब सभी न्यायाधीश अपने घर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिक के जरिए ही सुनवाई करेंगे।
आपको बता दें कि देशभर में कोरोना के नए मामलों में रोजाना नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। सोमवार को भी भारत में कोरोना के करीब 1 लाख 70 हजार नए मामले सामने आए हैं, जो कि महामारी के बाद से अब तक की सबसे बड़ी उछाल है।
वहीं, मौतों का आंकड़ा भी लगातार डरा रहा है। देशभर में 904 लोगों ने बीते 24 घंटे में अपनी जान गंवाई है।
रेमेडिसविर के निर्यात पर रोक
देश में बढ़ते कोरोना खतरे के बीच केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। रेमेडिसविर इंजेक्शन और रेमेडिसविर एक्टिव फार्मास्युकिटकल इंग्रीडिएंट्स के निर्यात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है।
इतना ही नहीं सरकार ने रेमेडिसविर के सभी घरेलू निर्माताओं को कहा गया है कि वे अपनी वेबसाइट पर दवा से जुड़ी सभी जानकारी शेयर करें।
आपको बता दें कि कोरोना संक्रमण के इलाज में रेमेडिसविर एक प्रमुख एंटी-वायरल दवा माना जाती है। इसलिए लगातार बढ़ रहे मामलों के मद्देनजर सरकार ने रेमेडिसविर तक अस्पतालों और मरीजों की आसान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ये कदम उठाए हैं। कई राज्यों में इसकी किल्लत के बाद सरकार ने ये फैसला लिया है।
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