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'शूटर दादी' के नाम से विख्यात अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज चंद्रो तोमर का निधन

नई दिल्ली। कोरोना महामारी के इस प्रकोप में अब तक लाखों लोगों की जिंदगियां छीन ली है। इस महामारी की वजह से कई बड़े-बड़े शख्सियत से लेकर आम नागरिकों की मौत हो चुकी है। इसी कड़ी में अब दुनिया में 'शूटर दादी' के नाम से मशहूर हुईं अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज चंद्रो तोमर का शुक्रवार को निधन हो गया। बताया जा रहा है कि चंद्रो तोमर का निधन ब्रेन हेम्ब्रेज की वजह से हुआ है।

बीते मंगलवार को चंद्रो तोमर कोरोना पॉजिटिव पाईं गई थीं, जिसके बाद उन्हें मेरठ के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनका इलाज चल रहा था। शूटर दादी चंद्रो तोमर उत्तर प्रदेश के बागपत के जौहड़ी गांव में अपने परिवार के साथ रहती थीं।

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जानकारी के मुताबिक, कोरोना संक्रमित चंद्रो तोमर ने सांस लेने में शिकायत की, जिसके बाद उन्हें उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। 89 साल चंद्रो तोमर के ट्विटर पेज पर इसकी जानकारी साझा की गई थी। पेज पर लिखा गया था कि ‘दादी चंद्रो तोमर कोरोना पॉजिटिव हैं और सांस की परेशानी के चलते हॉस्पिटल में भर्ती हैं। ईश्वर सबकी रक्षा करे- परिवार।’ बता दें कि अभी हाल ही में उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म 'सांड की आंख' आई थी, जो कि काफी चर्चा में रही थी।

60 साल की आयु में शुरू की शूटिंग

मालूम हो कि उम्र के जिस पड़ाव में आकर इंसान भगवान के नाम जपते हुए अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों को गुजारते हैं, उस उम्र में चंद्रो तोमर ने अपने सपने को पूरा करने का संकल्प कर मेहनत शुरू की।

चंद्रो तोमर ने 60 साल से अधिक की आयु में निशानेबाजी शुरू की थी। राष्ट्रीय स्तर पर 50 से अधिक पदक जीतीं। इतना ही नहीं, उन्होंने इसके बाद कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं भी जीतीं। चंद्रो तोमर ने समाज और परंपरा की सभी बेड़ियों को तोड़ते हुए अपनी देवरानी प्रकाशी तोमर के साथ कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। चंद्रो और प्रकाशी तोमर दुनिया की उम्रदराज महिला निशानेबाजों में शामिल हैं।

इस तरह से शुरू हुआ निशानेबाजी का सफर

आपको बता दें कि चंद्रो तोमर के निशानेबाजी का सफर की शुरुआत बहुत ही दिलचस्प है। एक जनवरी 1932 को चंद्रो तोमर का जन्म मूलरूप से शामली के गांव मखमूलपुर में हुआ था। इसके बाद सोलह साल की कम आयु में ही उनकी शादी बागपत के जौहड़ी गांव के किसान भंवर सिंह हो गई।

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इस परिवार में महिलाओं को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी, हालांकि कुछ विशेष मौकों पर महिलाओं को घर से बाहर निकलने की अनुमति दी जाती थी, लेकिन साथ में किसी पुरुष का होना अनिवार्य था। डॉ. राजपाल सिंह ने 1998 में जौहड़ी गांव में शूटिंग रेंज की शुरुआत की।

इस शूटिंग रेंज तक चंद्रो तोमर अपनी पौत्री शेफाली तोमर को निशानेबाजी सिखाने के लिए हर दिन जाती थी। जब तक शेफाली शूटिंग सीखती चंद्रो तोमर वहीं बैठे-बैठे देखती रहती थी। फिर एक दिन चंद्रो ने शेफाली से पिस्टल लेकर खुद निशाना लगाया। दादी का निशाना पहली बार में ही सीधे जाकर 10 पर लगा यानी कि बीचों बीच।

दादी का निशाना देख हर कोई हतप्रभ रह गया और वहां मौजूद बच्चे तालियां बजाने लगे। फिर दादी का निशाना देख वहां मौजूद कोच ने दादी को ट्रेनिंग देना शरू कर दिया और इस तरह से शुरू हुआ चंद्रो तोमर के आम दादी से शूटर दादी बनने का सफर..



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