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लॉकडाउन डायरी - मुश्किलों से डरना नहीं लड़ना-जीतना सीखा...

कोरोना ही नहीं हर मुश्किल वक्त के लिए बचत जरूरी

कोरोना की शुरुआत बड़ी डरावनी थी। सबसे बड़ा डर तो कोरोना संक्रमित होने का था, जो न शारीरिक बल्कि आर्थिक, मानसिक तौर पर प्रभावित करने में सक्षम था। दो चुनौतियां थीं। पहली ऑनलाइन काम करके नौकरी सुरक्षित रखना। दूसरा घर के लोगों की डिमांड के हिसाब से खाना तैयार करना। समय प्रबंधन सीखा। यह भी समझ आया कि रेस्टोरेंट के खाने से बेहतर खाना घर में बनाया जा सकता है। जब लॉकडाउन में सासू मां कोरोना पॉजिटिव हुईं, बड़ा ही कड़वा अनुभव रहा। सभी होम क्वॉरंटीन थे। उस दौरान सीमित संसाधनों में अपना काम चलाया। उस समय समझ में आया कि बचत सिर्फ कोरोना ही नहीं हर मुश्किल वक्त के लिए जरूरी है।
कृष्णा त्रिवेदी, नौकरीपेशा, अहमदाबाद

घर में पैसे ही नहीं पर्याप्त अनाज का होना भी जरूरी -
अब घर के अंदर आने से पहले हाथ-पैर धोना हम सभी की आदत बन गया है जो वास्तव में हमारी प्राचीन जीवनशैली का प्रमुख हिस्सा था। इसके साथ ही रिश्तों में भी मजबूती आयी है। परिवार के बीच हमने एक-दूसरे की भावनाओं को समझा। हमें बचपन से ही गुल्लक में कुछ पैसे डालने की आदत सिखाई जाती थी और इसी का महत्व कोरोना ने समझाया। एक कलाकार के रूप में कहूं तो कलाकार काफी नाजुक होता है। उसे अपनी रचनात्मकता के लिए मन की शांति जरूरी है। कोरोना ने हमें यह सिखाया कि प्राचीन समय में अनाज इक_ा करने का जो चलन था वो कितना सही था क्योंकि घर में पैसे के साथ अनाज होना बहुत जरूरी है।
शुभा वैद्य, वरिष्ठ चित्रकार, मध्यप्रदेश

सीखा...जटिल हालातों का सामाना कैसे करें-
चुनौती भरे इस एक साल ने हमारे जीवन का तरीका बदल दिया है। घर, परिवार, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यवसाय, सब कुछ बदला है। मैं भी संक्रमित हुआ और १५ दिन अस्पताल में गुजारे। मुश्किल समय था लेकिन अध्यात्म का सहारा लिया और रास्ता बनता गया। समझ में आया कि सोच को पॉजिटिव रखना कितना जरूरी है। कोरोना मन को और मजबूत बना गया। लोगों में मैत्रीभाव, सहयोग की भावना बढ़ी है। घर बैठकर भी ज्ञान अर्जित किया जा सकता है, यह भी कोरोना ने सिखाया। एक और बात जो मैं स्वयं महसूस करता हूं कि वह यह कि अध्यात्म अब जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। जटिल परिस्थितियों का सामना करने के लिए धैर्य, समता भाव सबसे ज्यादा जरूरी है।
केके भंसाली, अध्यक्ष आदर्श ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, बेंगलूरु

धैर्य के साथ मुश्किलों का सामना करना सीखा
पति कोरोना पॉजीटिव हो गए तो 25 दिन हॉस्पिटल में भर्ती रहे, इस दौर को पार करना बहुत कठिन था, पति के इलाज के लिए डॉक्टर से कंसल्ट करती थी। दिन-रात कैसे निकल जाते पता ही नहीं चलता था। पति जब घर आए तो उनका 15 किलो वजन कम हो गया। उनके प्रोफेशन में सहयोग देने के लिए टैक्स के नए अपडेट और उससे जुड़ी सारे चीजें मैं पढऩे लगी। बच्चे भी देखते थे कि मम्मी सुबह से रात कर बहुत मेहनत कर रही है तो उन्होंने अपने काम खुद करना शुरू कर दिया। इस बीच बच्चों की जरूरतों, खाने पीने को लेकर चैलेंज था। लेकिन धैर्य के साथ मुश्किल हालातों का सामना किया...तो अब सब कुछ सामान्य हो चुका है।
अमृता अशीष वाजपेयी, गृहणी, रायपुर

मुसीबत में सेहत और परस्पर संबंध सबसे बड़े साथी-
एक अनजान डर, एक दूसरे पर अविश्वास और मन में भूचाल सा पैदा हो गया था। ऐसे में मेरे सामने चार चुनौती थीं, स्वयं पर नियंत्रण, परिवार की सार संभाल, समाज की आवश्यकता और व्यापार की देखभाल। मुसीबत के समय आपका सबसे बड़ा सहयोगी आपकी सेहत, परस्पर संबंध और ज्ञान अर्जन शक्ति ही है। एक बार में एक समस्या को पूरी ताकत से लड़कर जीतना एक अच्छा तरीका है। लोग अपनी सेहत के प्रति लापरवाह थे। वे यह मानते रहे कि उन्हें कुछ नहीं होगा। कोरोना महामारी ने यह भ्रम तोड़ दिया। व्यापार में मेरा अनुभव हुआ कि सिर्फ आपके रिश्ते और संबंध ही आपकी पूंजी है। उन्हें मजबूत बनाएं रखें।
सौरभ बैराठी, महासचिव, मंडा इंडस्ट्रीज रीको, जयपुर



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