उत्तराखंड त्रासदी पर वैज्ञानिकों ने कहा, सर्दियों में ग्लेशियर का फटना लगभग असंभव

DRDO के वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड में ग्लेशियर के पिघलने और उसके बाद हुई भीषण त्रासदी पर आश्चर्य जताते हुए कहा है कि सर्दियों में किसी ग्लेशियर का पिघलना अथवा खिसकना लगभग एक असंभव सी घटना है। वैज्ञानिकों के अनुसार गर्मी अथवा अन्य किसी मौसम में ऐसा होना सहज और सामान्य घटना माना जा सकता है परन्तु सर्दियों में ऐसा होने एक अजूबे जैसा ही है वो भी तब जब यहां आस-पास का तापमान माइनस 20 डिग्री सेल्सियस हो।
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वैज्ञानिकों के अनुसार यहां के वर्तमान पर्यावरणीय कारकों में ग्लेशियर नहीं पिघल सकते। हालांकि ऐसा तब भी हो सकता है जब ग्लेशियर के पानी को रोकने वाली झील या बांध उनके इस प्रवाह को रोक न सके और खुद ही टूट जाए। उस स्थिति में भी बाढ़ जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। परन्तु ऐसा होने के पीछे भी कोई निश्चित कारण होना चाहिए।
वैज्ञानिकों ने जताई यह संभावना
वैज्ञानिकों ने कहा, एक स्थिति में ऐसा होना संभव है। उनके अनुसार घटनास्थल के आस-पास पावर प्लांट बनाने के लिए पहाड़ों में विस्फोटक लगा कर ब्लास्ट किए जा रहे हैं, संभव है, यह उन्हीं का नतीजा हो। आपको बता दें कि तपोवन के निकट ही धौली गंगा नदी पर NTPC एक पन-बिजली परियोजना प्रोजेक्ट बना रही है। इसके चलते वहां पर पहाड़ों के पत्थर काटने के लिए ब्लास्ट किए जा रहे हैं। साथ ही भारी संख्या में मशीनें भी काम पर लगी हुई हैं। डीआरडीओ की टीम के अनुसार मानवीय हस्तक्षेप को इस पूरी त्रासदी के पीछे जिम्मेदार माना जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि एक ग्लेशियर के पिघलने के कारण उत्तराखंड में बाढ़ आ गई थी जिसके बाद वहां पर जान-माल की भारी हानि हुई थी। 125 से अधिक लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। सेना और राहत बलों के जवान अभी भी लोगों को बचाने में जुटे हुए हैं।
पहले भी घट चुकी है ऐसी ही त्रासदी
उत्तराखंड में वर्ष 2013 में भी ऐसा ही एक हादसा हुआ था। उसमें भी सैकडों लोगों की जान चली गई थी और बहुत से लापता हो गए थे। उस समय तीर्थयात्रा पर गए बहुत से श्रद्धालु इस दुखद घटना का शिकार हुए थे। सेना और कई अन्य एजेंसियों द्वारा लगातार कई दिनों तक राहत कार्य चलाकर बहुत से लोगों को बचाया गया था।
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