Header Ads

कोरोना संक्रमण के कुछ नए लक्षण आए सामने, विशेषज्ञों ने पल्स ऑक्सीमीटर पर भी उठाए सवाल

नई दिल्ली।

कोरोना महामारी के दौर में लॉकडाउन, क्वारंटीन, अनलॉक, आइसोलेशन, इम्युनिटी बूस्टर, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्दों के अलावा एक नाम और जो काफी चर्चा में रहा, वह था पल्स ऑक्सीमीटर। यह सभी के लिए अनिवार्य उपकरण बन गया था, जो ऊपर के तामम नामों की तरह अब भी अपनी अहमियत बनाए हुए है। हालांकि, इसके काम पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं। आइए जानते हैं इसकी क्या वजह है-

कोरोना संक्रमण के दौरान संक्रमित व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीजन लेवल काफी कम होता जाता है। कुछ स्थितियों में इसके परिणाम काफी गंभीर हुए। ऑक्सीजन लेवल को समय-समय पर मापते रहने के लिए पल्स ऑक्सीमीटर एक जरूरी उपकरण बन गया था। यह सभी स्वास्थ्यकर्मियों के अलावा, दुकानों, कार्यालयों और सरकारी संस्थानों यानी हर उस जगह जहां मनुष्य की आवाजाही हो सकती है, अनिवार्य रूप से पहुंच गया था। बहुत से लोगों ने एहतियात के तौर पर इस्तेमाल के लिए घरों में भी इसे रखा। मगर अब इसी पल्स ऑक्सीमीटर पर तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं।

एफडीए ने किया आगाह
बता दें कि कोरोना महामारी पिछले साल जब चरम पर थी और दिल्ली में मामले लगातार बढ़ रहे थे, तब अस्पतालों में मरीजों का दबाव कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने योजना बनाई कि ऐसे मरीज जो गंभीर श्रेणी में नहीं आते, उन्हें घर पर ही आइसोलेट किया जाए। तब मरीजों को पल्स ऑक्सीमीटर दिए गए थे, जिससे वे समय-समय पर अपने ऑक्सीजन का लेवल जांचते रहें और टेबल में उसे लिखते रहे। एक निर्धारित स्थिति से ऑक्सीजन का स्तर अगर कम हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। मगर अब विशेषज्ञों का कहना है इन ऑक्सीमीटर की अपनी सीमाएं हैं और कुछ केस में ऐसा भी हो सकता है कि यह सही जानकारी नहीं दे। अमरीकी एजेंसी एफडीए ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि इसकी जानकारी हर समय सही मिले, यह जरूरी नहीं। ऐसे में इस उपकरण को इलाज के लिए या फिर शरीर में वायरस है या नहीं और वह किस स्तर पर नुकसान पहुंचा रहा है, की जांच के लिए भरोसमंद नहीं मान सकते।

ऑक्सीमीटर क्या है और कैसे काम करता है
पहले तो यह जानते हैं कि पल्स ऑक्सीमीटर होता क्या है। दरअसल, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और कंपनियों का दावा है कि हमारे शरीर में दौड़ रहे खून में ऑक्सीजन का लेवल कितना है, इसकी रीडिंग ऑक्सीमीटर के जरिए सामने आती है। यह एक छोटा सा और वजन में काफी हल्का उपकरण होता है, जिसे अंगुलियों पर या कान पर रखकर जांच की जाती है। यह उपकरण इन्फ्रारेड किरणों के जरिए बताता है कि शरीर में ऑक्सीजन का लेवल कितना है। कम होने पर सलाह दी जाती थी व्यक्ति संक्रमित है और उसका ऑक्सीजन लेवल अगर एक निश्चित मानक से कम होता है तो उसकी जान को खतरा हो सकता है।

ऐसी त्वचा पर भी रीडिंग में संदेह
अमरीकी स्वास्थ्य एजेंसी एफडीए की मानें तो पल्स ऑक्सीमीटर की रीडिंग कुछ खास मामलों में काम नहीं करती। मसलन, जिनकी त्वचा का रंग गहरा या काला है, उन पर यह सही रीडिंग नहीं दे। इसके अलावा त्वचा अगर मोटी है, उस पर टैटू लगा है, किसी तरह का रंग रोगन है या नाखूनों पर नेल पॉलिश है, तो भी इस जगह ऑक्सीमीटर लगाने पर आंकड़े सही मिलने पर संदेह है। एफडीए ने चेतावनी दी है कि जो लोग घर पर ही कोविड की निगरानी के लिए ऑक्सीमीटर का इस्तेमाल कर रहे और इस पर भरोसा जता रहे, वे इसके आंकड़ों पर ज्यादा विश्वास नहीं करें।

संक्रमण को लेकर क्या दी सलाह
एफडीए ने यह सलाह भी दी है कि खून में ऑक्सीजन का लेवल स्वास्थ्य विशेषज्ञों और मानक उपकरणों से जांच करवाकर ही पता लगाएं। इसके अलावा, चेहरे, होंठ या नाखूनों पर नीलापन दिखे, सांस लेने में किसी भी तरह की दिक्कत महसूस हो, सीने में दर्द हो या धडक़नें असामान्य हों, तो सतर्क रहें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal
Read The Rest:patrika...

No comments

Powered by Blogger.