नंदा देवी ग्लेशियर टूटने से कई नदियों में जल स्तर बढ़ा, जानिए क्या होता है ग्लेशियर और यह क्यों टूट जाता है

नई दिल्ली।
बीते रविवार यानी 7 फरवरी को सुबह 10 बजे उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने से भूस्खलन हुआ, जिससे काफी दूर तक के क्षेत्र में भारी तबाही हुई। घटना में कई लोगों के मारे जाने की सूचना है। बहुत से लोग अब भी लापता हैं। हालांकि, राहत और बचाव कार्य अब भी जोरशोर से चल रहा है।

नंदा देवी ग्लेशियर का हिस्सा टूटा
आपको बता दें कि जिस ग्लेशियर का हिस्सा टूटा, वह नंदा देवी ग्लेशियर कहा जाता है। इससे भूस्खलन हुआ और धौली गंगा, ऋषि गंगा और अलकनंदा नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ गया, जिससे काफी दूर तक के क्षेत्र में अफरा-तफरी मच गई। इस दुखद घटना में नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) की दो पनबिजली परियोजनाओं, जिसमें तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना और ऋषि गंगा परियोजना शामिल हैं, को काफी नुकसान पहुंचा। हादसे के वक्त इन परियोजनाओं से जुड़ी सुरंगों में श्रमिक काम कर रहे थे। सुरंग में पानी भरने से काफी संख्या में श्रमिक वहां फंस गए।

देश की दूसरी सबसे ऊंची चोटी
उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशी मठ के पास नंदा देवी ग्लेशियर देश की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। हम आपको बताते हैं कि क्या है नंदा देवी ग्लेशियर। इसकी कुल ऊंचाई कितनी है और कितने बड़े क्षेत्र में यह स्थित है। दरअसल, नंदा देवी ग्लेशियर नंदा देवी पहाड़ पर स्थित है। इस ग्लेशियर के पश्चिम हिस्से में ऋषि गंगा नदी और पूर्वी हिस्से में गौरी गंगा घाटी है। नंदा देवी ग्लेशियर भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। पहले स्थान पर कंचनजंघा है। यही नहीं, इस क्षेत्र में दो बड़े ग्लेशियर हैं। पहला नंदा देवी उत्तर और नंदा देवी दक्षिण। दोनों ग्लेशियर की लंबाई करीब 19 किलोमीटर की है। इनकी शुरुआत नंदा देवी की चोटी से ही हो जाती है और दोनों तरफ फैलते हुए नीचे घाटी तक पहुंचती है। नंदा देवी ग्लेशियर से पिघलकर जो पानी ऋषि गंगा और धौली गंगा नदियों में बहता है, वही आगे पहुंचकर गंगा नदी में मिलता है।

7 अलग-अलग ग्लेशियर से मिलकर बना है
नंदा देवी ग्लेशियर 7 अलग-अलग ग्लेशियरों से मिलकर बना है। इनके नाम है- बारतोली, कुरुर्नटोली, नंदा देवी उत्तर, नंदा देवी दक्षिण, नंदाकना, रमानी और त्रिशूल। इनमें नंदा देवी उत्तर (उत्तरी ऋषि ग्लेशियर) और नंदा देवी दक्षिण (दक्षिणी नंदा देवी ग्लेशियर) करीब 19 किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं। ये समुद्र तल से 7 हजार 108 मीटर ऊपर हैं। ये दोनों ही ग्लेशियर न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि, देश की भी कई नदियों के प्रमुख जल स्रोत हैं। नंदा देवी ग्लेशियर के समूह ग्लेशियरों पर हर साल कुछ समय के लिए ट्रैकिंग भी होती है। नंदा देवी चोटी को उत्तराखंड की देवी की तरह पूजा जाता है। हर वर्ष यहां धार्मिक यात्रा भी निकलती है। नंदा देवी पहाड़ की दो चोटियां हैं। इनमें पश्चिमी चोटी ऊंची, जबकि पूर्वी छोटी है। पूर्वी चोटी को नंदा देवी ईस्ट यानी सुनंदा देवी कहते हैं। पूर्वी और पश्चिमी चोटी के बीच 2 किलोमीटर लंबा रिज है। यही नहीं नंदा देवी के चारों ओर 12 अलग-अलग चोटियां और काफी गहरी घाटियां हैं, जो नंदा देवी पहाड़ को सुरक्षित बनाती है।

क्यों टूटते या पिघलते हैं ग्लेशियर
अब हम आपको बताते हैं कि ग्लेशियर क्या होता है और यह क्यों टूट जाता है। दरअसल, ग्लेशियर को हिमनद भी कहते है, जो विशाल आकार का बर्फीला पहाड़ होता है। बर्फ के एक जगह जमा होने की वजह से यह बनता है। यह पहाड़ों से नीचे गतिशील रहते हैं। ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से पर जैसे-जैसे बर्फ की परत जमती जाती है और इसकी वजह से भार बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे निचले हिस्से पर दबाव आने लगता है। जब भी ग्लेशियर का कोई हिस्सा टूटकर उससे अलग होता है, तब इसे कॉल्विंग ग्लेशियर कहते हैं। ग्लेशियर दो तरह के होते हैं। पहला, अल्पाइन और दूसरा आइस शीट। ऐसे ग्लेशियर जो पहाड़ों पर होते हैं, वह अल्पाइन केटेगरी में आते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, ग्लेशियर टूटने या पिघलने की कोई एक खास वजह नहीं है। यह तमाम कारणों से होता है। गुरुत्वाकर्षण बढऩे और ग्लेशियर के किनारों पर तनाव बढऩे से इनमें टूट होती है। हालांकि, ग्लेशियर पिघलने की बड़ी वजह ग्लोबल वार्मिंग है। इसके अलावा, जंगलों का लगातार कम होना भी ग्लेशियरों के जल्दी पिघलने की बड़ी वजह है। जंगलों के कटने से गुरुत्वाकर्षण बढ़ता है, जिसका असर ग्लेशियरों पर पड़ता है।



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