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शुरू होने वाला है दुर्गा उत्सव 2020: जानें वैष्णो देवी गुफा मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें

वर्ष 2020 में पितृपक्ष के ठीक बाद से ही पुरुषोत्तम मास यानि अधिक मास लग जाने से इस बार नवरात्रि पर्व करीब एक माह देरी से शुरु होने जा रहा है। इस साल ये पर्व 17 अक्टूबर से शुरु होगा। ऐसे में आज हम आपको वैष्णो देवी गुफा मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं। जिनमें से कुछ की शायद आपको जानकारी न हो वहीं कुछ ऐसी भी चीजें हैं, जिनकी ओर आपने कभी ध्यान ही नहीं दिया होगा।

दरअसल देवी मां वैष्णो देवी का विश्व प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में कटरा नगर के समीप की पहाड़ियों पर स्थित है। इन पहाड़ियों को त्रिकुटा पहाड़ी कहते हैं। यहीं पर लगभग 5,200 फीट की ऊंचाई पर मातारानी का मंदिर स्थित है। यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ स्थल है।

माता वैष्णो देवी मंदिर: ऐसे समझें...
दरअसल त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित एक गुफा में माता वैष्णो देवी की स्वयंभू तीन मूर्तियां हैं। इनमें देवी काली (दाएं), मां सरस्वती (बाएं) और मां लक्ष्मी (मध्य) पिण्डी के रूप में गुफा में विराजित हैं। इन तीनों पिण्डियों के सम्मि‍लित रूप को वैष्णो देवी माता कहा जाता है। वहीं इस स्थान को माता का भवन कहा जाता है। पवित्र गुफा की लंबाई 98 फीट है। इस गुफा में एक बड़ा चबूतरा भी बना हुआ है। इस चबूतरे पर माता का आसन है जहां देवी त्रिकुटा अपनी माताओं के साथ विराजमान रहती हैं।

जबकि भवन वह स्थान है जहां माता ने भैरवनाथ का वध किया था। प्राचीन गुफा के समक्ष भैरो का शरीर मौजूद है और कहा जाता है कि उसका सिर उड़कर तीन किलोमीटर दूर भैरो घाटी में चला गया जबकि शरीर यहीं रह गया। जिस स्थान पर सिर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कटरा से ही वैष्णो देवी की पैदल चढ़ाई शुरू होती है जो भवन तक करीब 13 किलोमीटर और भैरो मंदिर तक 14.5 किलोमीटर है।

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वैष्णो देवी गुफा मंदिर : पौराणिक कथा
यूं तो मंदिर के संबंध में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन जिस मुख्य कथा के बारें में बताया जाता है उसके अनुसार एक बार त्रिकुटा की पहाड़ी पर एक सुंदर कन्या को देखकर भैरवनाथ उससे पकड़ने के लिए दौड़े। तब वह कन्या वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरवनाथ भी उनके पीछे भागे। माना जाता है कि तभी मां की रक्षा के लिए वहां पवनपुत्र हनुमान पहुंच गए। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। फिर वहीं एक गुफा में गुफा में प्रवेश कर माता ने नौ माह तक तपस्या की। इस दौरान हनुमानजी ने पहरा दिया।

फिर भैरव नाथ भी वहां आ धमके। उस दौरान एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था।

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अंत में गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया और भैरवनाथ को वापस जाने के लिए कह कर फिर से गुफा में चली गईं, लेकिन भैरवनाथ नहीं माना और गुफा में प्रवेश करने लगा। यह देखकर माता की गुफा कर पहरा दे रहे हनुमानजी ने उसे युद्ध के लिए ललकार और दोनों का युद्ध हुआ। युद्ध का कोई अंत नहीं देखकर माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का वध कर दिया।

कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। तब उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।


वैष्णो देवी गुफा मंदिर की कथा :
इस कथा को वैष्णो देवी के भक्त श्रीधर से जोड़कर भी देखा जाता है। 700 वर्ष से भी अधिक समय पहले कटरा से कुछ दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वे नि:संतान और गरीब थे, लेकिन वे सोचा करते थे कि एक दिन वे माता का भंडारा रखेंगे।

एक दिन श्रीधर ने आस-पास के सभी गांव वालों को प्रसाद ग्रहण करने का न्योता दिया और भंडारे वाले दिन श्रीधर अनुरोध करते हुए सभी के घर बारी-बारी गए, ताकि उन्हें खाना बनाने की सामग्री मिले और वह खाना बनाकर मेहमानों को भंडारे वाले दिन खिला सके। जितने लोगों ने उनकी मदद की वह काफी नहीं थी क्योंकि मेहमान बहुत ज्यादा थे।

वह सोच रहे थे इतने कम सामान के साथ भंडारा कैसे होगा। भंडारे के एक दिन पहले श्रीधर एक पल के लिए भी सो नहीं पा रहे थे, यह सोचकर की वह मेहमानों को भोजन कैसे करा सकेंगे। वह सुबह तक समस्याओं से घिरे हुए थे और बस उसे अब देवी मां से ही आस थी। वह अपनी झोपड़ी के बाहर पूजा के लिए बैठ गए, दोपहर तक मेहमान आना शुरू हो गए थे, श्रीधर को पूजा करते देख वे जहां जगह दिखी वहां बैठ गए। सभी लोग श्रीधर की छोटी-सी कुटिया में आसानी से बैठ गए।

श्रीधर ने अपनी आंखें खोली और सोचा की इन सभी को भोजन कैसे कराएंगे, तब उसने एक छोटी लड़की को झोपडी से बाहर आते हुए देखा जिसका नाम वैष्णवी था। वह भगवान की कृपा से आई थी, वह सभी को स्वादिष्ट भोजन परोस रही थी, भंडारा बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया था। भंडारे के बाद, श्रीधर उस छोटी लड़ी वैष्णवी के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे, पर वैष्णवी गायब हो गई और उसके बाद किसी को नहीं दिखी। बहुत दिनों के बाद श्रीधर को उस छोटी लड़की का सपना आया उसमें स्पष्ट हुआ कि वह मां वैष्णोदेवी थी। माता रानी के रूप में आई लड़की ने उसे गुफा के बारे बताया और चार बेटों के वरदान के साथ उसे आशीर्वाद दिया। श्रीधर एक बार फिर खुश हो गए और मां की गुफा की तलाश में निकल पड़े और कुछ दिनों बाद उन्हें वह गुफा मिल गई, तभी से वहां पर माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु जाने लगे।



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