Mother Teresa 109th Birth Anniversary: जानें भारत रत्न मदर टेरेसा के 10 अनमोल विचार
नई दिल्ली। दुनिया में ममता और त्याग की मिसाल कही जाने वालीं मदर टेरेसा का आज जन्मदिन है। आम वेशभूषा और लोगों के प्रति उनका प्यार उन्हें आज प्रेरणादायी बनाता है। 26 अगस्त 1910 की तारीख इतिहास में भारत रत्न मदर टेरेसा के जन्मदिन के तौर पर दर्ज है। वे हमेशा से आम भारतीय वेशभूषा में दिखाई दीं। उनकी भारतीय वेशभूषा और इस सरल व्यक्तित्व से प्रभावित होकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कभी कहा था कि नम्रता और प्रेम की क्षमता का बहुत कुछ अनुभव तो मदर टेरेसा के दर्शन से ही हो जाता है।
मदर टेरेसा (Mother Teresa) का जन्म 26 अगस्त 1910 को मैकेडोनिया गणराज्य की राजधानी सोप्जे में एक किसान परिवार के यहां पर हुआ था। मदर टेरेसा का असली नाम ‘अग्नेसे गोंकशे बोजशियु’ था। बचपन में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया। बाद में मां ने ही उनका लालन-पालन किया। महज 18 वर्ष की उम्र में मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने समाज सेवा करने का फैसला ले लिया था। वह मिस्टरस ऑफ लॉरेंटो मिशन से जुड़ गईं।
साल 1928 में मदर टेरेसा ने रोमन कैथोलिक नन के रूप में कार्य शुरू कर किया। दार्जिलिंग से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मदर टेरेसा कोलकता आ गईं। 24 मई 1931 को कोलकता में मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने ‘टेरेसा’ के रूप में अपनी एक पहचान स्थापित की।
उन्होंने पारंपरिक कपड़ों को त्यागकर नीली कोर वाली साड़ी पहनने का फैसला लिया। मदर टेरेसा ने कोलकता के लॉरेंटो कान्वेंट स्कूल में एक शिक्षक के रूप में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। साल 1949 में मदर टेरेसा ने गरीब,असहाय व अस्वस्थ लोगों मदद के लिए एक संस्था की स्थापना की। इसका नाम ‘मिशनरिज ऑफ चैरिटी’रखा। इसे 7 अक्टूबर 1950 में रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी थी। मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले।
उनके कार्यों को लेकर पूरी दुनिया ने प्रशंसा की। उनकी मानवता के प्रति करुणा ने लोगों को सीख दी कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है। साल 1962 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया। 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया गया। सेवा भाव की अनूठी मिसाल मदर टेरेसा ने 5 सितंबर 1997 को दुनिया को अलविदा कह दिया।
मदर टेरेसा (Mother Teresa) के 10 अनमोल वचन-
– मैं हर इंसान में ईश्वर देखती हूँ। जब मैं रोगियों के घाव साफ कर रही होती हूँ तो मुझे लगता है कि मैं ईश्वर की ही सेवा कर रही हूँ।
– यदि आप सौ लोगों को नहीं खिला सकते तो एक को जरूर खिलाइए।
– शांति की शुरुआत मुस्कराहट से शुरू होती है।
– जहां जाइए प्यार फैलाइए, जो आपके पास आए वह और खुश होकर लौटे।
– यदि हमारे मन में शांति नहीं है तो इसकी वजह है कि हम यह भूल चुके हैं कि हम एक दूसरे के हैं।
– सबसे बड़ी बीमारी कुष्ठ रोग या तपेदिक नहीं, बल्कि अवांछित होना ही सबसे बड़ी बीमारी है।
– चमत्कार यह नहीं की हम यह काम करते हैं, बल्कि ऐसा करने में हमें खुशी मिलती है।
– अकेलापन सबसे भयानक गरीबी है।
– रोगी की सेवा करना सबसे बड़ी सेवा है, यहीं सबसे बड़ा पुण्य है।
– यदि आप चाहते हैं कि आपका प्रेम संदेश सुना जाए तो दीये को जलाए रखने के लिए बार-बार उसमें तेल डालते रहना जरूरी है।
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