निर्भया केसः देश में पहले भी हुईं एक साथ चार फांसी, दहशत में था पूरा प्रदेश

नई दिल्ली। निर्भया गैंगरेप केस ( Nirbhaya Gangrape Case ) में दिल्ली हाईकोर्ट ( Delhi High Court ) ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि चारों दोषियों को अलग-अलग नहीं बल्कि एक साथ ही फांसी दी जाएगी। दरअसल दोषियों को जल्द फांसी देने के लिए केंद्र की ओर से याचिका दायर की गई थी, जिस पर सुनवाई करते हुए दिल्ली कोर्ट ने ये फैसला सुनाया।

आपको बता दें कि ये पहला मामला है नहीं जब चारों दोषियों को एक साथ फांसी दी जाएगी। आईए आपको बता दें के इससे पहले ऐसा कब हुआ जब देश में एक साथ चार लोगों को फांसी दी गई।

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देश में चार लोगों को फांसी पर लटकाने का ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले 1983 में पुणे में सनसनीखेज जोशी-अभयंकर हत्या मामले में चार दोषियों को एक साथ यरवदा केंद्रीय जेल में फांसी के फंदे पर लटकाया गया था।
इन लोगों को दी गई थी फांसी
राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, शांताराम कन्होजी जगताप और मुनावर हारून शाह को 25 अक्टूबर 1983 को फांसी दी गई थी।

14 महीने में की थी 10 हत्याएं
इन दोषियों ने सिलसिलवार हत्याओं में हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं। 1976 जनवरी से 1977 मार्च तक इन दोषियों को 10 हत्याएं कर डाली थीं। इस मामले में आरोपी सुभाष चंडक गवाह बन गया था।

हत्यारे पुणे के अभिनव कला महाविद्यालय में वाणिज्यिक कला के छात्र थे। वे सभी नशे के आदी थे और दो पहिया वाहन सवारों से लूटपाट करते थे।

दशहत में था पूरा प्रदेश
सिलसिलेवार हत्याओं ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया था। हर कोई दहशत के माहौल में जी रहा था। लेकिन इन कातिलों को हौसले और बुलंद होते चले गए। हत्यारों ने 31अक्टूबर 1976 और 23 मार्च 1977 के बीच नौ लोगों की हत्याएं की। ये लोग घर में घुसकर घरवालों को आतंकित कर महंगा सामान लूटते थे और फिर लोगों की हत्या कर देते थे।

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सजा सुनाने के वक्त कोर्ट थी भारी भीड़
कोर्ट ने जिस वक्त इन दोषियों को मृत्युदंग की सजा सुनाई उसक वक्त पूरे कोर्ट परिसर बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। उस समय किशोर रहे पुणे के सामाजिक कार्यकर्ता बालासाहेब रूनवाल ने कहा कि हत्याओं से लोगों के बीच इतनी दहशत पैदा हो गयी कि लोग शाम छह बजे के बाद घरों से निकलने से कतराने लगे थे।



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