इनकी पूजा के बगैर अधूरी ही रहती है तुलसी विवाह पूजा

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान श्री विष्णु जी योगनिद्रा से जागते हैं। इस एकादशी को को देव उठनी ग्यारस कहा जाता है। हिन्दू धर्म में इसी दिन से सभी मांगलिक कार्यों का शुभारंभ होते हैं। कार्तिक मास की ग्यारस को प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी, देव उठनी एकादशी आदि के नाम से भी जानी जाती है। मान्यता है कि देव उठनी के दिन तुलसी विवाह पूजन भी किया जाता है। अगर इस पूजा में इन तीन देवताओं की पूजा नहीं की जाती तो यह पूजा अधूरी ही मानी जाती है।

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देवों के सोने और जागने का अन्तरंग संबंध आदि नारायण भगवान सूर्य वंदना से हैं, क्योंकि सृष्टि की सतत क्रियाशीलता सूर्य देव पर ङी निर्भर है, सभी मनुष्य की दैनिक व्यवस्थाएं सूर्योदय से निर्धारित मानी जाती है। चूंकि प्रकाश पुंज होने के नाते सूर्य देव को भगवान श्री विष्णु जी का ही स्वरूप माना गया है, इसलिए तो प्रकाश को ही परमेश्वर की संज्ञा दी गई है। इसलिए देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु सूर्य के रूप में पूजे जाते हैं, जिसे प्रकाश और ज्ञान की पूजा कहा जाता है।

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तुलसी विवाह में इन तीन की पूजा अनिवार्य होती है

देव उठनी ग्यारस असल में विश्व स्वरूपा भगवान श्री विष्णु के श्रीकृष्ण वाले विराट रूप की पूजा की जाती है। इस दिन विशेष रूप से श्री तुलसी, श्री विष्णु एवं श्री सूर्य नारायण की पूजा की जाती है। जो भी श्रद्धालु इस दिन व्रत रखकर विधि-विधान से इन तीनों का पूजन करते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है। विशेष रूप से पुराणों में सूर्योपासना का उल्लेख मिलता है और इस दिन बारह आदित्यों के नामों के जप करने का भी उल्लेख है। बारह आदित्य- इंद्र, धातृ, भग, त्वष्ट, मित्र, वरुण, अयर्मन, विवस्वत, सवितृ, पूलन, अंशुमत एवं विष्णु जी। देवउठनी एकादशी से तुलसी विवाह व तुलसी पूजन का भी विधान है।

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इनकी पूजा के बगैर अधूरी ही रहती है तुलसी विवाह पूजा

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