लोकमान्य तिलक जयंती 23 जुलाई : सन्मार्ग की दिशा में चलने के लिए उठाया हुआ प्रत्येक कदम अपने लिए ही नहीं, समस्त संसार के लिए श्रेयस्कर होता है

प्राचीन काल के जिन महापुरुषों की छाप हमारे हृदय पर लगी हुई है, उसका कारण उनकी विद्या, प्रतिभा, वाणी या चातुरी नहीं वरन् उनका आदर्श जीवन निर्मल चरित्र, उज्ज्वल लक्ष्य एवं तप त्याग ही है। चरित्रहीन व्यक्ति प्रचार द्वारा क्षणिक भावावेश तो उत्पन्न कर सकते हैं, पर उसका प्रभाव कभी भी स्थायी नहीं हो सकता।

 

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धर्म प्रचार के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने जीवन को आदर्श बना कर दूसरों के सामने अनुकरणीय आदर्श उपस्थित करें। काम ही सबसे बड़ा प्रचार है। श्रेष्ठ काम करके ही हम दूसरों को श्रेष्ठ बनने के लिए सच्ची और ठोस शिक्षा दे सकते हैं। उपदेशकों की नहीं अब उन आदर्शवादियों की आवश्यकता है जो धर्म कर्तव्यों को अपने जीवन में ओत-प्रोत करते हुए कुछ जनता का व्यावहारिक मार्ग दर्शन कर सकें।


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हम आज जहां हैं वहीं से आगे बढ़ने का प्रयत्न करें। पूर्णता की ओर चलने की यात्रा आरम्भ करें। दोषों को ढूंढ़ें और उन्हें सुधारें। गुणों का महत्व समझें और उन्हें अपनायें। इस प्रकार आन्तरिक पवित्रता में जितनी कुछ अभिवृद्धि हो सकेगी उतने का भी दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। सन्मार्ग की दिशा में चलने के लिए उठाया हुआ प्रत्येक कदम अपने लिए ही नहीं, समस्त संसार के लिए श्रेयस्कर होता है। मैं नर्क में भी उत्तम पुस्तकों का स्वागत करूंगा, क्योंकि इनमें वह शक्ति है कि वे जहां होंगी, वहां आप ही स्वर्ग बन जायेगा। अच्छी पुस्तकें ही अच्छी सोहबत और अच्छी आदतें प्रदान कर सकती हैं।

 

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इन तीनों का प्राप्त करो-(1) अच्छी पुस्तक (2) अच्छी सोबत और (3) अच्छी आदतें। अच्छे, उपयोगी, चरित्र का परिष्कार एवं आत्म सुधार करने वाले सद्ग्रन्थ जिस व्यक्ति के पास है, उसे अकेलापन, नीरसता, शुष्कता कभी न प्रतीत होगी। पुस्तकें सदा सर्वदा चौबीसों घंटे का आत्मसुधार करने को प्रस्तुत हैं, आपको सद्शिक्षाएं देने को मौजूद रहती हैं। इनके सत्संग से अनेक साधारण व्यक्ति महत्ता प्राप्त कर सकते हैं। सत्साहित्य से समाज के ज्ञान का संवर्द्धन चरित्र का संशोधन होता है। उच्च कोटि के साहित्य से ही घर की शोभा है।

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