Quit India Movement : इन दस बिंदुओं से समझिए भारत छोड़ो आंदोलन की पूरी कहानी
Quit India Movement : नई दिल्ली। भारत छोड़ो आंदोलन पराधीन भारत के इतिहास की एक बड़ी घटना मानी जाती है। यह आंदोलन अंग्रेजों को चेतावनी देते हुए भारतीयों के आजाद होने की इच्छाशक्ति का प्रतीक था। आठ अगस्त 1942 को आरंभ हुए इस आंदोलन का एक ही लक्ष्य था, भारत से ब्रिटिश साम्राज्य की समाप्ति। तात्कालीन परिस्थितियों में यह आंदोलन भारत के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में उभरा और देखते ही देखते पूरे भारतीय जनमानस पर छा गया। यदि उस समय के हालात देखें तो हमें इसका महत्व समझ में आएगा।
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उस वक्त दुनिया भर की महाशक्तियां विश्वयुद्ध में उलझी हुई थी, ब्रिटेन भी मित्र राष्ट्रों के साथ जंग लड़ रहा था। दूसरी ओर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन कर भारत की ओर कूच का नारा दिया। उनका एकमात्र उद्देश्य भारत को सैन्य बल का प्रयोग करते हुए शीघ्रातिशीघ्र आजादी दिलाना था। ऐसे मौके पर गांधीजी ने मामले की नजाकत को भांपते हुए 8 अगस्त 1942 की रात ही भारतीयों से "करो या मरो" का आह्वान करते हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया। एक साथ कई मोर्चों पर घिरी ब्रिटिश सरकार ने तुरंत ही गांधीजी तथा अन्य बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि इससे आंदोलन पर कोई असर नहीं पड़ा वरन अन्य छोटे नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में इसकी कमान संभाल ली और देखते ही देखते यह आंदोलन पूरे भारत में प्रचण्ड हो गया। इस आंदोलन में लाल बहादुर शास्त्री पहली बार एक नेता के रूप में उभर कर सामने आए।
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अंग्रेजों ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया। राष्ट्रव्यापी इस आंदोलन में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 940 लोग मारे गए जबकि 1630 घायल हो गए थे, इसी तरह 60,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। भारत के आने वाले भविष्य पर इस आंदोलन का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। एक तरफ जहां सुभाष चन्द्र बोस सशस्त्र आंदोलन छेड़ रहे थे वही दूसरी ओर महात्मा गांधी अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे।
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- इस आंदोलन ने पूरे भारत को एकता के सूत्र में बांध दिया। भारत की आजादी ही सभी भारतीयों का एकमात्र उद्देश्य बन गया। हालांकि आंदोलन खत्म होने के बाद पूरे देश में चुनाव करवाए गए तथा चुने गए भारतीय प्रतिनिधियों को संक्षिप्त शक्तियां दी गई परन्तु देश की जनता ने ब्रिटिश शासन का उखाड़ फेंकने का पूरा मन बना लिया।
- इस आंदोलन को मुस्लिम लीग तथा अन्य कुछ संगठनों ने सपोर्ट नहीं किया। उनका मानना था कि आजाद भारत में मुस्लिमों की स्थिति बहुत बुरी हो जाएगी। इस तरह पहली बार अखंड भारत के दो हिस्से करने की नींव रखी गई।
- दूसरे विश्व युद्ध और भारत में चल रहे आजादी के आंदोलन के कारण अंग्रेजों के लिए भारत पर राज करना दिनोंदिन कठिन होता जा रहा था। ऐसे में ब्रिटिश सरकार खुद भी भारत को स्वतंत्र करने के बारे में गंभीरता से सोचने लगी। 1945 में ब्रिटेन में चुनी गई लेबर पार्टी की सरकार ने कांग्रेस को मुस्लिम लीग के बीच सुलह करवाने के लिए कई बैठकें की।
- इस आंदोलन में देश को लालबहादुर शास्त्री, जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली और डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसे नए नेता मिले जिन्होंने आजादी के बाद देश को लोकतंत्र और कामयाबी की राह पर आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया।
- इस आंदोलन को गांधीजी ने बीच में ही रोक दिया। ऐसे में देश की आजादी के लिए थोड़े दिन और इंतजार करना पड़ा। वहीं दूसरी ओर देश में चुनावों की तैयारियां शुरू हो गई जिनके तहत चुने गए भारतीय प्रतिनिधियों को सीमित मात्रा में शक्तियां दी जानी थीं।
- आंदोलन में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार किए जाने से कुछ स्थानों पर हिंसा की घटनाएं होने लगी, जनता ने तोड़-फोड़ और आगजनी शुरू कर दी। गांधीजी की अपील और कांग्रेस नेताओं को जेल से रिहा किए जाने पर ही इन घटनाओं पर रोक लगी।
- मुस्लिम लीग ने स्पष्ट मन बना लिया कि मुस्लिमों के लिए अलग देश का गठन किया जाना चाहिए जिसमें मुस्लिम बहुसंख्यक राज्यों को शामिल किया जाए। मुस्लिम लीग की यह जिद आगे चलकर पाकिस्तान के निर्माण का कारण बनी।
- उस समय विश्व युद्ध चल रहा था, ऐसे में ब्रिटेन को बहुत बड़ी संख्या में सिपाहियों की जरूरत थी जिनके लिए भारतीयों को जबरन सेना में भर्ती किया जा रहा था। इससे भी देश की जनता नाराज थी। इस एक कारण से भी जनता अंग्रेजों से नाराज होकर तन-मन-धन से देश को आजादी दिलाने की मुहिम में जुट गई।
- भारत छोड़ो आंदोलन एक ऐसा शक्तिशाली आंदोलन था जिसने न केवल ब्रिटेन वरन पूरे विश्व को हिला दिया था। इसकी वजह से देश को आजादी जल्दी मिलने की राह खुली।
- आजाद हिन्द फौज के रूप में देश को एक सैन्य बल भी मिला जिसने देश की जनता को यह जताया कि सशस्त्र विद्रोह भी देश की मुक्ति का साधन बन सकता है।
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