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अमूल ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखा पत्र, पेटा को बैन करने की मांग, लगाया विदेशी साजिश का आरोप

नई दिल्ली। दूध उत्पादन के क्षेत्र में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले कंपनियों में से एक अमूल और जानवरों के अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्थान पेटा के बीच छिड़ा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले दिनों जानवरों के संरक्षण के लिए काम करने वाली अमरीकी संस्था पेटा इंडिया ने देश की सबसे बड़ी डेयरी अमूल को वीगन मिल्क (Vegan Milk) उत्पादन करने का आग्रह किया। इसके जवाब में अमूल ने पेटा इंडिया को करारा जवाब दिया था। ताजा रिपोर्ट के अनुसार, अमूल ने पेटा के खिलाफ मोर्चा खेला दिया है। अमूल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उस पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा है।

 

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बताया साजिश का हिस्सा
अमूल के उपाध्यक्ष वलमजी हुंबल ने प्रधानमंत्री मोदी से उस पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया। उनका कहना है कि यह लोगों की आजीविका को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे है। इसके साथ ही हुंबल ने आरोप लगाया है कि पेटा की हरकतों से भारतीय डेयरी क्षेत्र की छवि खराब हो रही है। उन्होंने आगे कहा कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में डेयरी क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है लेकिन इस गैर सरकारी संगठन जैसे अवसरवादी तत्वों द्वारा फैलाई गई गलत सूचना से जीडीपी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस तरह के संगठन भारत के दूध उत्पादकों को बेरोजगार करने की साजिश का हिस्सा हैं। गुजरात के दुग्ध उत्पादकों ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से उन संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए आवश्यक कार्रवाई शुरू करने का आग्रह किया है।


अमूल ने दिया था करारा जवाब
दरअसल, अमरीकी एनिमल राइट्स ऑर्गनाइजेशन 'द पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स' पेटा ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हो रहे बदलाव के मद्देनजर अमूल इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर आरएस सोढ़ी को पत्र लिखकर डेयरी दूध के बजाय शाकाहारी दूध के उत्पादन पर जोर देने का आग्रह किया। पेटा ने कहा कि अमूल को वीगन मिल्क प्रोडक्ट्स के उत्पादन के बारे में विचार करना चाहिए। पेटा इंडिया पर पलटवार करते हुए अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर सोढ़ी ने कहा है कि पेटा चाहता है कि अमूल 10 करोड़ गरीब किसानों की आजीविका छीन ले। वह 75 साल में किसानों के साथ मिलकर बनाए अपने सभी संसाधनों को किसी बड़ी एमएनसी कंपनियों द्वारा जेनिटकली मोडिफाई किए गए सोाया उत्पादों के लिए छोड़ दे। वो भी उन कीमतों पर जिसे औसत निम्न मध्यम वर्गीय परिवार खरीदने में भी समक्षम नहीं।



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