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नोवावैक्स की कोरोना वैक्सीन 90.4 फीसद असरदार, भारत में सीरम इंस्टिट्यूट करेगा निर्माण

नई दिल्ली। एक और कोरोना वैक्सीन जल्द ही उपलब्ध होगी। मौजूदा समय में दुनिया के कई देश वैक्सीन की कमी का सामना कर रहे है। अमेरिका की प्रमुख फार्मास्युटिकल कंपनी नोवावॉक्स द्वारा विकसित वैक्सीन को 90 प्रतिशत से अधिक प्रभावी बताया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको सहित देशों में किए गए परीक्षणों के बेहतर परिणाम मिले हैं। नोवावॉक्स द्वारा विकसित वैक्सीन परीक्षण संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको में 18 वर्ष से अधिक आयु के 30,000 स्वयंसेवकों पर प्रयोग किए गए। उन्हें तीन सप्ताह की अवधि में दो खुराक दी गई। नोवावॉक्स ने कहा कि अंतिम प्रयोगशाला डेटा के अंतिम विश्लेषण ने 90 प्रतिशत दक्षता दिखाई।

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भारत में सीरम इंस्टिट्यूट करेगा टीके का निर्माण
भारत में वैक्‍सीन का उत्‍पादन कर रही सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) नोवावैक्‍स की मैनुफैक्‍चरिंग की पार्टनर होगी। एक रिपोर्ट के अनुसार, सीरम इंस्टिट्यट भारत में टीके का निर्माण करेगी। हालांकि अभी तक इसपर चर्चा चल ही है। माना जा रहा है कि जल्द इसकी अनुमति मिल जाएगी। नोवावैक्स ने कहा कि उसकी योजना सितंबर अंत तक अमेरिका, यूरोप और अन्य जगहों पर टीके के इस्तेमाल के लिए मंजूरी लेने की है। प्रति माह 10 करोड़ खुराक उपलब्ध कराई जाएंगी। उसके बाद वह हर महीने 15 करोड़ डोज का उत्पादन क्षमता हासिल कर लेगी।

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विभिन्न वैरिएंट के खिलाफ प्रभावी
नोवावॉक्स के मुताबिक कोरोना वायरस के विभिन्न वैरिएंट के खिलाफ भी वैक्सीन प्रभावी है। नोवावैक्स के प्रेसिडेंट और सीईओ स्टैनली सी. एर्क का कहना है कि कंपनी की एनवीएक्स-सीओवी2373 अत्यंत असरदार है। मध्यम एवं गंभीर संक्रमण के खिलाफ पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है। प्रोटीन आधारित इस वैक्सीन को कोरोना वायरस के पहले स्ट्रेन के जीनोम सिक्वेंसिंग से तैयार किया गया है।

टीके को रखना और ले जाने आसान
नोवावैक्स टीके को रखना और ले जाने आसान है और उम्मीद की जा रही है कि यह विकासशील देशों में टीके की आपूर्ति को बढ़ाने में अहम किरदार निभाएगा। कंपनी के मुताबिक इसे दो से आठ डिग्री से ल्सियस यानी सामान्य फ्रीज में रखा जा सकता है। इसकी वजह से वैक्सीन के वितरण के लिए मौजूदा सप्लाई चेन में किसी तरह के बदलाव की जरूरत नहीं होगी। नोवावैक्स के मुख्य कार्यपालक स्टेनली एर्क ने एपी से कहा कि हमारी शुरूआती कई खुराकें निम्न और मध्य आय वाले देशों में जाएंगी।



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