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Sarvepalli Radhakrishnan Death Anniversary: स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति के नाम के आगे ऐसे जुड़ा सर्वपल्ली

नई दिल्ली। स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और देश के ख्यात शिक्षाविद सर्वपल्ली राधाकृष्ण ( Dr Sarvepalli Radhakrishnan Death Anniversary ) की आज पुण्यतिथि है। 17 अप्रैल 1975 में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया है। इसके साथ ही देश ने ऐसी शख्सियत को खो दिया, जिन्हओंने अपनी अप्रतिम विद्वत्ता, चिंतन की ऊंचाई औऱ मानवीय गुणों से भारत को गौरवान्वित किया।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक दिग्गज शिक्षक होने के साथ ही देश के दूसरे राष्ट्रपति भी रहे। उनके नाम पर ही देश में शिक्षक दिवस भी मनाया जाता है। आइए जानते हैं आखिर डॉ. राधाकृष्णन के नाम के आगे सर्वपल्ली कैसे लगा।

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्‍णन का जन्‍म तमिलनाडु के तिरुत्‍तानी में 5 सितंबर 1888 को हुआ था। शुरू से ही राधाकृष्णन का झुकाव शिक्षा की तरफ ज्यादा था, यही वजह है कि उन्होंने ना सिर्फ ग्रंथों का अध्ययन किया बल्कि अल्प आयु में ही किताब भी लिख डाली।

डॉ. राधाकृष्णन की पहली पुस्तक 'दि एथिक्स ऑफ वेदान्त एंड इट्स मटेरियल सपोजिशन' प्रकाशित हुई। इस किताब ने राधाकृष्णन को ना सिर्फ देश में बल्कि विश्व में अलग पहचान दिलाई। इस किताब के साथ ही उनकी गिनती महानतम मौलिक चिंतकों और दर्शनशास्त्र के प्रमाणिक भाष्यकारों में होने लगी।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने धर्म, विज्ञान और शिक्षा से जुड़े विषयों पर विस्तार से ना सिर्फ लिखा बल्कि उसे मानव जीवनसे जोड़ कर बेहतर बनाने का तरीका भी बताया।

ऐसे जुड़ा सर्वपल्ली
डॉ. राधाकृष्णन के पुरखे 'सर्वपल्ली' नाम के गांव में रहते थे जिनकी इच्छा थी कि उनके परिवार के लोग अपने नाम के पहले उनके जन्मस्थल का नाम यानी 'सर्वपल्ली' का इस्तेमाल करें। उनके नाम के पहले सर्वपल्ली लगने का ये ही बड़ा कारण है।

1903 में सिर्फ 16 साल की उम्र में उनका विवाह 'सिवाकामू' नाम की रिश्ते की बहन के साथ हो गया। सिवाकामू ने परंपरागत शिक्षा हासिल नहीं की थी लेकिन तेलुगु भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ थी और अंग्रेजी पढ़-लिख सकती थीं। 26 नवंबर, 1956 को उनका निधन हो गया।

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारत के पहले उप राष्‍ट्रपति के तौर पर 1952 से 1962 तक अपने दो कार्यकाल पूरे किए।

इसके बाद 1962 से 1967 तक उन्‍होंने दूसरे राष्‍ट्रपति के तौर पर देश की कमान संभाली।
राधाकृष्‍णन ने गौतम बुद्धा, जीवन और दर्शन, धर्म और समाज, भारत और विश्व आदि पर कई किताबें भी लिखीं।

शिक्षा और राजनीति में योगदान के लिए 1954 में उन्हें देश के सर्वोच्‍च मानद सम्‍मान ‘भारत रत्‍न’ से उन्‍हें सम्‍मानित किया गया।



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