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महावीर जयंती 2021 : इन 5 सिद्धांतों पर टिका था स्वामी महावीर का जीवन, जानिए धार्मिक महत्व

नई दिल्ली। अपने देश में कई महान संतों ने जन्म लिया है। मनुष्य के रुप में पधारे भगवान ने मनुष्यों को जीवन के सत्य और उसके सही अर्थों से परिचित कराया है। इन्हीं महान संतों में से एक हैं जैन समुदाय 24वें और अंतिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर है। इस वर्ष महावीर जयंती 25 अप्रैल को पड़ रही है। इस दिन को भगवान महावीर के जन्म उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। महामारी कोरोना के प्रकोप को देखते हुए जैन धर्मावलंबी घरों में रहकर ही पूजा-अर्चना करेंगे। उनका बचपन का नाम वर्धमान था। जब वे तपस्या में लीन थे तब जंगली जानवरों के कई बार उन पर हमले हुए। उन्होंने सहनशीलता और वीरता से सभी को परास्त किया। उनके इसी गुण के कारण उनका नाम महावीर स्वामी हुआ। उन्होंने कठोर तपस्या के बाद वैशाख शुक्ल की दशमी तिथि को ऋजुबालुका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

मोक्ष के संदेश को पूरी दुनिया में फैलाया
भगवान महावीर ने पूरी दुनिया में मोक्ष के संदेश को फैलाया और कई अनुयायियों को दिया। उन्होंने अहिंसा का प्रचार किया। किसी भी तरह की हत्या को प्रतिबंधित किया। भगवान महावीर ने अपने उपदेशों में छोटे से छोटे जीव तक की हत्या नहीं करने के बारे में बताया। उन्होंने अपने अनुयायियों को तपस्या करने और अत्याचार नहीं करने के माध्यम से मोक्ष का मार्ग दिखाया। उन्होंने गरीबों को धन, कपड़े और अनाज दान करने की सलाह दी। भगवान महावीर ने लोगों अपने जीवन में सफल और समृद्ध होने के लिए 5 सिद्धांत बनाए है।

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महावीर स्वामी के पंचशील सिद्धांत........

अहिंसा-
भगवान महावीर का पहला सिद्धांत अहिंसा। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। इस सिद्धांत में उन्होंने जैनों लोगों को हर परिस्थिति में हिंसा से दूर रहने का संदेश दिया है। उन्होंने बताया कि भूल कर भी किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए।

सत्य-
सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है। वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है। यही वजह है कि उन्होंने लोगों को हमेशा सत्य बोलने के लिए प्रेरित किया।

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अपरिग्रह-
भगवान महावीर ने अपने संदेश में अपरिग्रह को लेकर कहा कि जो अपरिग्रह का पालन करने से जैनों की चेतना जागती है और वे सांसारिक एवं भोग की वस्तुओं का त्याग कर देते हैं। उन्होंने कहा कि जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है। दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है। उसको दुखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता।

ब्रह्मचर्य -
भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य सिद्धांत के बारे में कहा कि जैन व्यक्तियों को पवित्रता के गुणों का प्रदर्शन करने की आवश्यकता होती है। जिसके अंतर्गत वो कामुक गतिविधियों में भाग नहीं लेते हैं। महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है।

क्षमा-
भगवान महावीर ने क्षमा के बारे में बताया कि मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूं। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूं। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं।



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