यौन उत्पीड़न की झूठी FIR लिखवाने पर हो सकती है कड़ी कार्रवाई, पुलिस को भी देना पड़ेगा जवाब
नई दिल्ली। देश में हर दिन सैंकड़ों लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न की घटनाएं होती है, लेकिन कई कारणों की वजह से कुछ ही मामले दर्ज हो पाते हैं। कई बार आपसी रंजीश की वजह से यौन उत्पीड़न की फर्जी रिपोर्ट भी दर्ज करवा दिए जाते हैं।
ऐसे में सही मायने में पीड़ित लड़की को न्याय मिलने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। लिहाजा, सरकार की ओर से संभवतः कुछ सख्त कदम उठाने जा सकते हैं। यानी की अब यौन उत्पीड़न की झूठी FIR दर्ज करवाना आपको महंगा पड़ सकता है। इतना ही नहीं झूठी FIR लिखने वाले पुलिसकर्मी के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई हो सकती है।
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दरअसल, गृह मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि यौन उत्पीड़न की झूठी FIR दर्ज करवाने वालों व शिकायत लिखने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही लोगों को फंसाने के मकसद से झूठी FIR दर्ज करने वाले को नहीं छोड़ा जाए।
समिति ने राज्य सरकारों व केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस संबंध में कानूनी संसोधन करने पर विचार करने को कहा है। संसदीय समिति ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों को गंभीरता से लेकर कार्रवाई करने के साथ झूठे मामलों पर सख्ती से निपटने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
FIR लिखने की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए
महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामलों को गंभीरता से लेकर FIR लिखे जाने की प्रवृति पर संसदीय समिति ने चिंता जाहिर की है। समिति ने कहा कि ऐसे मामलों को अभी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। इस संबंध में पीड़िता या उसके परिवारों द्वारा शिकायतों को गंभीरता से ली जानी चाहिए।
समिति ने कहा है कि मौजूदा सिस्टम में FIR लिखने की प्रक्रिया जटिल है। लिहाजा, सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि FIR लिखने की प्रक्रिया आसान हो। देश के किसी भी थाने में FIR लिखवाना आसान होना चाहिए। इतना ही नहीं, FIR लिखने वाले पुलिस अधिकारी को जवाबदेह बनाने की भी जरूरत है। यदि FIR लिखने में पुलिसकर्मी या ड्यूटी ऑफिसर द्वारा देरी की जाती है, तो उन्हें इसके कारण का उल्लेख FIR रिकॉर्ड में होना चाहिए।
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संसदीय समिति ने इसके अलावा गृह मंत्रालय से कहा है कि सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को जीरो एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिया जाए। समिति का सुझाव है कि CCTNS के जरिए जीरो एफआईआर शुरू की जा सकती है। इतना ही नहीं यौन उत्पीड़न के मामलों में सजा की दर कम होने पर भी समिति ने चिंता जाहिर की है और कहा है कि इस तरह के मामलों को समयबद्ध तरीके से पूरा करने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
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