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टिकैत ने अब कहा- सरकार हमें बातचीत के लिए तो बुलाए, मुद्दों पर सहमति जरूर बनेगी

नई दिल्ली।

भारत में बीते तीन महीने से भी अधिक समय से देशभर के किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका यह आंदोलन पिछले साल केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में है। किसानों का कहना है कि ये तीनों कानून उनके हित में नहीं है, इसलिए सरकार इसे तुरंत वापस ले। किसान अपनी मांगों से पीछे हटते नहीं दिख रहे। वहीं, केंद्र सरकार भी अपने फैसले पर अडिग है।

वहीं, किसान नेता राकेश टिकैत ने आंदोलन को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश और इससे सटे बिहार और झारखंड के इलाकों में भी विस्तार देना शुरू कर दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जोर पकड़ चुके किसान आंदोलन को पूर्वांचल और उससे सटे बिहार के हिस्सों तक फैलाने के लिए राष्ट्रीय किसान संयुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश टिकैत ने बलिया में महापंचायत की है। राकेश टिकैत ने सिकंदरपुर के चेतन किशोर मैदान में पूर्वांचल की अपनी पहली किसान मजदूर महापंचायत में कहा कि पूर्वांचल का किसान जागेगा तभी होगी बड़ी किसान क्रांति। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि फसल की कटाई मड़ाई कर लीजिए, फिर ट्रैक्टर से दिल्ली की ओर चलना पड़ेगा।

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इससे पहले, उन्होंने गाजीपुर में मीडिया से कहा कि सरकार हमारी नहीं सुन रही है। वो किसानों से बात नहीं करना चाहती। पहले जिस तरह से बात हो रही थी, उस तरह से बात हो और अगर वो हमें बुलाएं तो आपस में सहमति करके हमारी टीम जरूर जाएगी। पर मध्यस्थता वो करे, जिसके पास पावर हो। मध्यस्थ को फुल पावर और फैसला करने की शक्ति होना जरूरी है।

कृषि कानून किसानों की मौत का फरमान
दूसरी ओर, राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा ‘कक्काजी’ ने मध्यप्रदेश में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने जो किसान विरोधी तीन काले कानून जारी किए हैं, वे किसानों की मौत का फरमान हैं। उन्होंने कहा, किसानों को सोचना चाहिए कि 70 फीसदी वोट उनके हैं, लेकिन सरकार उनकी यों नहीं सुनती। हमें संगठित होकर लड़ाई लडऩी है और ये तब तक खत्म नहीं होगी, जब तक केंद्र सरकार इन कानूनों को वापस नहीं ले लेती।

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300 किसान हो चुके हैं शहीद
किसान नेता बादल सरोज ने कहा कि देश में किसान आंदोलन के दौरान अब तक 300 किसान शहादत दे चुके हैं, लेकिन मोदी सरकार किसानों की आवाज दबा रही है। अब किसान जाग चुका है। किसानों के छोटे-छोटे संगठन एक होकर संयुक्त मोर्चा के माध्यम से लड़ाई लड़ रहे हैं।



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