कौन थीं कमलादेवी चट्टोपाध्याय, जिन्होंने महात्मा गांधी की बात नही मानी
नई दिल्ली। देश को आजाद कराने में हर जाति धर्म से जुड़ें लोगों का हाथ रहा है फिर चाहे वो अमीर हो या गरीब जन जन के घर से एक ही अवाज आती थी अंग्रेजो से भारत मां को आजाद कराना है। इस आजादी की लड़ाई में ना केवल पुरूष वर्ग आगे आए बल्कि महिलाएं भी कंधे से कधां मिलाकर हिस्सा लेने के लिए उतर चुकी थी। ऐसा ही नजारा उस वक्त भी देखने को मिला, जब गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को 80 कार्यकर्ताओं के साथ साबरमती आश्रम से दो सौ मील दूर दांडी के लिए यात्रा प्रारंभ की थी
इस यात्रा में शामिल करने के लिए उन्होनें केवल पुरूषों को ही हिस्सा लेने की अनुमति दी थी जो यह बात कमलादेवी चट्टोपाध्याय को खटक गई। उस दौरान कमलादेवी चट्टोपाध्याय 27 साल की थीं। जब उन्हें इस बात का पता चला कि महात्मा गांधी डांडी यात्रा के ज़रिए 'नमक सत्याग्रह' की शुरुआत करने जा रहे हैं। जिससे देश भर में समुद्र किनारे नमक बनाया जाएगा। लेकिन इस आंदोलन से महिलाएं को दूर रखा जाएगा।
महात्मा गांधी ने इस आंदोलन में महिलाओं के लिए कहा था इन लोगों की भूमिका केवल चरखा चलाने और शराब की दुकानों की घेराबंदी करने के लिए थी लेकिन कमालदेवी को ये बात बेहद खराब लगी। इसके बाद से ही उन्होंने निर्णय ले लिया कि चाहे कुछ हो जाए वो इस आदोलन में हिस्सा जरूर लेगीं। और इसके लिए वो स्वयं महात्मा गाधी से मिलने पहुंची। अपनी आत्मकथा 'इनर रिसेस, आउटर स्पेसेस' में कमलादेवी ने इस बात की चर्चा की है। वो लिखती हैं "मुझे लगा कि महिलाओं की भागीदारी 'नमक सत्याग्रह' में होनी ही चाहिए और मैंने इस संबंध में सीधे महात्मा गांधी से बात करने का फ़ैसला किया।"
इसके बाद कमलादेवी महात्मा गांधी से मिलने पहुंच गई। और यही छोटी से मुलाकात इतिहास में बदल गई। इस मुलाकात में उनके तर्क सुनकर गांधी ना नही कर पाए,और 'नमक सत्याग्रह' में महिला और पुरुषों की बराबर की भागीदारी पर हामी भर दी। महात्मा गांधी का ये फ़ैसला ऐतिहासिक था। इस फ़ैसले के बाद महात्मा गांधी ने 'नमक सत्याग्रह' के लिए दांडी मार्च किया और बंबई में 'नमक सत्याग्रह' का नेतृत्व करने के लिए सात सदस्यों वाली टीम बनाई। इस टीम में कमलादेवी और अवंतिकाबाई गोखले शामिल थीं।
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