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क्यों सुल्तान काबूस और मुजीबुर रहमान को दिए गए गांधी शांति पुरस्कार

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सोमवार को पिछले दो साल के गांधी शांति पुरस्कार की घोषणा की। इस बार दिवंगत ओमानी सुल्तान कबूस बुन सईद अल सैद और बांग्लादेशी नेता शेख मुदीबुर रहमान को अहिंसक तरीकों से सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन में उनके योगदान के लिए यह पुरस्कार दिया जाएगा।

इन दोनों विभूतियों को इस सम्मान से सम्मानित करने के लिए भारत सरकार ने चयन प्रक्रिया में बदवाल कर इसे अपवाद स्वरूप लिया है, क्योंकि गांधी शांति पुरस्कार को मरणोपरांत नहीं दिया जाता है।

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में पुरस्कार के लिए जूरी ने 19 मार्च को मुलाकात की और सर्वसम्मति से मुजीबुर रहमान को 2020 और सुल्तान कबूस को 2019 के लिए चुना। कबूस कि पिछले साल ही निधन हुआ है। नाम जाहिर न करने की शर्त पर इस मामले से जुड़े लोगों ने कहा कि चयन प्रक्रिया गांधी शांति पुरस्कार को मरणोपरांत प्रदान करने की अनुमति नहीं देती है।

हालांकि, लोगों ने कहा कि सुल्तान कबूस और रहमान के योगदान को शांति, अहिंसा और मानवीय कष्टों के निवारण और भारत के साथ उनके विशेष संबंधों को देखते हुए उन्हें सम्मानित करने के लिए एक अपवाद बनाया गया। बता दें कि यह पुरस्कार अहिंसा और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन में योगदान देने वालों को दिया जाता है।

जहां एक ओर मुजीबुर रहमान ने भारत के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए काम किया तो वहीं सुल्तान कबूस ने भारत-ओमान संबंधों को मजबूत करने और खाड़ी में शांति व अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए अद्वितीय योगदान दिया।

इससे पहले इन महान शख्सियतों को किया जा चुका है सम्मानित

प्रधानमंत्री मोदी ने सुल्तान कबूस के भारत-ओमान संबंधों में योगदान को याद किया जब पिछले साल जनवरी में कबूस का निधन हो गया था। पीएम मोदी ने कहा था कि वे भारत के सच्चे दोस्त थे और दोनों पक्षों के बीच रणनीतिक साझेदारी विकसित करने के लिए मजबूत नेतृत्व प्रदान किया।

आपको बता दें कि पुरस्कार के लिए चयन करने वाली जूरी के अन्य सदस्यों में मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक शामिल थे। इस पुरस्कार से सम्मानित शख्सियत को 1 करोड़ रुपये के साथ एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक पारंपरिक हस्तकला या हथकरघा वस्तु प्रदान किया जाता है।

इससे पहले तंजानिया के पूर्व राष्ट्रपति जूलियस न्येरे, जर्मनी के गेरहार्ड फिशर, रामकृष्ण मिशन, बाबा आम्टे, दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला, बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक, दक्षिण अफ्रीका के आर्कबिशप बादाम टूटू, चंडी प्रसाद भट्ट और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।



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