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अमरीका और चीन की वजह से फटा ग्लेशियर! स्थानीय लोगों ने बताई ये वजह

नई दिल्ली।

उत्तराखंड के चमोली जिले में गत सात फरवरी को सुबह लगभग दस बजे ग्लेशियर फटने से आई तबाही के बाद राहत और बचाव कार्य अब भी जारी है। रविवार तक 68 शवों को निकाला जा चुका था, जबकि 135 से अधिक लोगों की तलाश अब भी की जा रही है।

इस बीच स्थानीय लोगों में तमाम तरह की चर्चाएं हैं। उनके मन में कई सवाल भी हैं, जिनका जवाब वे चाहते हैं। मसलन, सर्दियों में ग्लेशियर क्यों फटा? स्थानीय लोग मानते हैं कि हिमालय में बर्फ के काफी नीचे परमाणु उपकरण दबे हुए हैं। जलवायु परिवर्तन और दूसरी वैज्ञानिक दलीलों पर उनको भरोसा नहीं। वे तो बस अपनी दलील को सच मानते हैं और उसी पर कायम हैं। आइए जानते हैं कि क्यों इतनी दृढ़ता से स्थानीय लोग परमाणु उपकरण दबे होने वाली बात पर कायम हैं और क्या है इसके पीछे की कहानी।

60 के दशक की है कहानी
इस बारे में समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मीडिया में खबरें आती रही हैं। तो कहानी शुरू होती है 60 के दशक से। वर्ष 1965 के अक्टूबर महीने में अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए के साथ मिलकर भारतीय खुफिया एजेंसी आईबी ने चीन की जासूसी करने की योजना बनाई। तैयारी यह थी कि वे नंदादेवी की ऊंचाई पर जासूसी उपकरण लगाएंगे, जिससे नीचे चीन की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी।

जासूसी उपकरण रखे गए
कहा जाता है कि दोनों देशों के जासूस मिलकर अपने साथ परमाणु पावर्ड मॉनिटरिंग डिवाइस ले जाने में कामयाब रहे। इससे करीब एक साल पहले यानी वर्ष 1964 में चीन में पहला परमाणु परीक्षण हुआ था। इससे अमरीका और रूस दोनों बड़े देश परेशान थे। इसके अलावा, भारत से भी चीन के रिश्ते कुछ ज्यादा अच्छे नहीं थे। ऐसे में चीन पर नजर रखने के प्रयास जैसी बात आसानी से मानी जा सकती है।

पहले अलास्का में भी हुआ था परीक्षण
बताया जाता है कि जासूसी से पहले इसका ट्रायल अलास्का में भी किया जा चुका था। वहां की माउंट मैककिनले पहाड़ी पर इस काम में भारत की मदद अमरीका ने की थी। इसके बाद दोनों देशों की टीम अपने साथ प्लूटोनियम कैप्सूल और दूसरे जासूसी उपकरण लेकर पहुंची। योजना के तहत ये उपकरण नंदा देवी के लगभग आठ हजार मीटर की ऊंचाई पर रखा जाना था। हालांकि, तभी बर्फीला तूफान आया और अधिकारियों को जान बचाने के लिए उतराई की तरफ लौटना पड़ा। इस बीच हालात बिगड़े तो उपकरण को वहीं छोडक़र निकलना पड़ा।



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