78 किमी क्षेत्र में फैला है देश का सबसे बड़ा ग्लेशियर, जानिए क्या है नाम और क्यों सबसे खतरनाक

नई दिल्ली।
दुनिया में ध्रुवीय क्षेत्र से बाहर सबसे बड़ा ग्लेशियर भारत में है। इसे लोग सियाचिन के नाम से जानते हैं, जिसका अर्थ है गुलाबों की घाटी। 78 किलोमीटर के विस्तृत क्षेत्र में फैला यह ग्लेशियर दुनियाभर में सबसे ऊंचे युद्धस्थल के तौर पर भी जाना जाता है। जी हां, यह भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर स्थित है। यहां हर वक्त भारतीय सैनिक तैनात रहते हैं। यह जगह इतनी खतरनाक है कि सैनिक लंबी नींद भी नहीं सो सकते।

वैसे, अगर धु्रवीय इलाके को मिलाकर बात करें तो सबसे बड़ा ग्लेशियर ताजिकिस्तान में है और इसका नाम फेदचेंको ग्लेशियर है। इसके बाद दूसरे नंबर पर सियाचिन ग्लेशियर है। मगर ध्रुवीय इलाके के बाहर सियाचिन सबसे बड़ा ग्लेशियर है। यह कई वजहों से काफी खास है। इसका प्राकृतिक इतिहास भी काफी पुराना वृहद है।

हर वक्त चलती रहती है तेज आंधी
सियाचिन ग्लेशियर हिमालय की पूर्वी काराकोरम पर्वतमाला में स्थित है। सियाचिन नाम तिब्बती भाषा बाल्टी से आया है। सिया का मतलब गुलाब होता है और चिन का अर्थ है बिखरा हुआ। यानी वह जगह जहां गुलाब बिखरे हुए हैं। वैसे, सियाचिन का यह अर्थ जानकर हैरानी जरूर होती है, क्योंकि यह इसके वास्तविक बर्फीले रेगिस्तान की तासीर से बिल्कुल अलग है। यहां न सिर्फ चारों ओर बर्फ है बल्कि, लगातार तेज आंधी चलती रहती है। इसलिए मौत की घाटी वाले असल स्वरूप जैसा यह ग्लेशियर भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से बेहद अहम और महत्वपूर्ण है।

रात में -70 डिग्री पहुंच जाता है तापमान
इसकी ऊंचाई समुद्र तल से करीब 18 हजार फीट ऊंची है। भारत के अलावा, इस ग्लेशियर के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है, जबकि दूसरी ओर चीन की सीमा अक्साई चीन है। इन दोनों देशों की हरकतों पर नजर रखने के लिए भारतीय सैनिक यहां तैनात रहते हैं। यहां की ठंड का अनुमान सिर्फ इससे लगाया जा सकता है कि रात में तापमान -70 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इस तापमान में जिंदा रहने के लिए सैनिकों को खास तकनीक से बने कपड़े और जूते दिए जाते हैं। हालांकि, इसके बाद भी उन्हें जिंदा रहने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है।

36 साल से लगातार तैनात हैं भारतीय जवान
बता दें कि वर्ष 1984 से पहले यहां भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों ने अपने-अपने सैनिक तैनात नहीं किए थे। बर्फीला रेगिस्तान मानकर इस ग्लेशियर को यूं ही छोड़ दिया गया था। यही नहीं, 70 के दशक में शिमला समझौते के दौरान भी इस क्षेत्र के लिए सीमा का निर्धारण नहीं हुआ था, लेकिन पाकिस्तान के साथ विवाद के बीच भारत ने वर्ष 1984 के अप्रैल में पहली बार इस ग्लेशियर में अपने सैनिक भेजे। तब से यहां पूरे साल भारतीय सैनिक तैनात रहते हैं।

हर थोड़ी देर पर हिलाना होता है हाथ-पैर
यह जगह इतनी खतरनाक है कि सैनिक लंबी नींद नहीं सो सकते, क्योंकि यह उनके लिए जानलेवा हो सकता है। हर थोड़ी देर पर उन्हें अपने हाथ-पैर हिलाने होते हैं, जिससे शरीर सही तरीके से काम करता रहे और शिथिल न पड़े। यही नहीं, बर्फ की वजह से दिन में सूरज की किरणें इतनी तेजी से चमकती है कि इन्हें नंगी आंखों से देख लिया जाए तो आंखों की रौशनी जाने का खतरा भी रहता है, इसलिए हर वक्त चश्मा पहनना होता है।



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