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एक ब्रिटिश अधिकारी ने 1942 में खोजी थी कंकालों की यह झील, दुनियाभर से विशेषज्ञ यहां फिर आ रहे हैं, जानिए क्यों

नई दिल्ली।

भारतीय क्षेत्र में आने वाले हिमालय के इलाके में बर्फीली चोटियों के बीच रूपकुंड झील स्थित है। इस झील की समुद्र तल से ऊंचाई करीब 16 हजार 500 फीट यानी 5 हजार 29 मीटर है। इन दिनों इस झील की चर्चा जोरों पर है। विदेशों से कई विशेषज्ञ इसकी पड़ताल करने आ रहे हैं।

दरअसल, रूपकुंड झील में काफी वर्षों से इंसानी हड्डियां बिखरी हैं। यह झील हिमालय की तीन चोटियों के बीच में स्थित है। इन तीन चोटियों को त्रिशूल कहा जाता है, क्योंकि ये तीनों चोटियों त्रिशूल का आकार बनाती है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित त्रिशूल को भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों के तौर पर गिना जाता है।

अब हम बात करते हैं कि इस झील को कंकालों की झील क्यों कहते हैं। असल में रूपकुंड झील को कंकालों की झील इसलिए कहते हैं, क्योंकि यहां हर जगह बर्फ में इंसानों की हड्डियां दबी मिल जाएंगी। वर्ष 1942 में एक ब्रिटिश वन अधिकारी ने गश्त के दौरान इस झील की खोज की थी। करीब आधी सदी का वक्त बीत चुका है और मानव विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञ यहां कंकालों की पड़ताल करने आते रहे हैं। मगर वे अभी तक इस गुत्थी को सुलझा नहीं सके हैं। यही नहीं इस झील को देखने बड़ी संख्या में हर साल पर्यटक भी आते हैं और वे झील के साथ-साथ मानव हड्डियों का दीदार भी करते हैं।

हालांकि, साल में ज्यादातर समय तक इस झील का पानी जमा रहता है। मगर मौसम के हिसाब से झील का आकार घटता-बढ़ता रहता है। जब झील पर जमी बर्फ पिघल जाती है, तब ये मानव हड्डियां दिखाई देने लगती हैं। वहीं, पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड सरकार इसे रहस्यमयी झील के नाम से प्रचारित करती है। अक्सर इन हड्डियों के साथ इंसान के पूरे अंग भी होते हैं, मानों मृत शरीर को अच्छी तरह संरक्षित किया गया है। अब तक यहां 600 से 800 कंकाल मिल चुके हैं।

कई कहानी-किस्से
इन कंकालों को लेकर कई कहानी-किस्से भी प्रचारित है। मसलन, ये कंकाल एक भारतीय राजा, उनकी पत्नी और सेवकों के हैं, जो करीब 870 साल पहले एक बर्फीले तूफान का शिकार होकर यहीं दफन हो गए थे। दूसरे किस्से के मुताबिक, कुछ कंकाल भारतीय सैनिकों के हैं, जो वर्ष 1841 में तिब्बत पर कब्जा करने की कोशिश में थे, मगर युद्ध में हार हुई तो भागने लगे। करीब 70 सैनिक हिमालय के इस रास्ते से गुजर रहे थे, मगर रास्ते में उनकी मौत हो गई। इसके अलावा, एक किस्सा यह है कि यहां किसी महामारी के शिकार लोगों को दफन किया गया और यह उन्हीं की कब्रगाह है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि झील पार करने वाले लोग शापित हो जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है।

स्टडी क्या कहती है
बहरहाल, पांच साल तक चली एक स्टडी के बाद कुछ तथ्य सामने रखे गए हैं। इसमें भारत समेत जर्मनी और अमरीका के 16 संस्थानों के 28 सह लेखक शामिल थे। वैज्ञानिकों ने जेनेटिक तोर पर और कार्बन डेटिंग के आधार पर 38 अवशेषों का अध्ययन किया। इनमें 15 महिलाओं के अवशेष थे। कुछ कंकाल करीब 12 सौ साल पुराने हैं। मृत लोगों के बीच में 1 हजार या इससे ज्यादा या इससे कम के अंतर भी हैं। इससे वे किस्से खत्म हो जाते हैं कि यहां सैनिक, राजा और उनकी पत्नी आदि के शव हैं, जो बर्फीले तूफान का शिकार हो गए थे।



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