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बिना क्लीनिकल ट्रायल डेटा के कोवैक्सीन का टीकाकरण !

नई दिल्ली। औषध महानियंत्रक यानी डीसीजीआइ के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड व भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को मंजूरी के बाद टीकाकरण शुरू हो रहा है। शुरू से ही विवादों में रही कोवैक्सीन को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं कि महंगी होने के अलावा वैक्सीन को बैकअप के रूप में प्रयोग की मंजूरी थी, तो इसे सीधे टीकाकरण में शामिल क्यों किया जा रहा है? साथ ही फ्रंटलाइन वॉरियर्स को यह विकल्प भी नहीं दिया गया है कि वह कौनसी वैक्सीन लगवाएंगे?

डीसीजीआइ के डॉ. वीजी सोमानी ने कहा था कि जिन लोगों को टीके लगाए जाएंगे, उन्हें क्लीनिकल ट्रायल का हिस्सा माना जाएगा। सवाल है कि कोई नियंत्रण समूह होगा? वे अधिकार जो सामान्य तौर पर किसी ट्रायल के वॉलिंटियर को मिलते हैं, क्या वही कोवैक्सीन लगवाने वालों को मिलेंगे? स्पेशल टास्क फोर्स के हैड वीके पॉल ने कहा था कि पहले चरण में यह किसी को अधिकार नहीं होगा कि वह कौनसी वैक्सीन लगवाएगा।

कितनी सुरक्षित व प्रभावशाली -
भारत बायोटेक के दूसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल के डेटा रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं हुई है। ऐसे में कैसे यह तय कर लिया गया कि कोवैक्सीन सुरक्षित व प्रभावशाली है? दूसरी ओर भारत बायोटेक ने भी कहा था कि उम्मीद है कि कोवैक्सीन 60 फीसदी प्रभावशाली होगी। इसका क्या आधार है।

विवादों के दाग दोनों वैक्सीन पर -
कोवैक्सीन को अनुमित मिलने के बाद विवाद शुरू हुए थे। सीरम इंस्टीट्यूट भी विवादों में आ चुकी है। वैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण के दौरान एक वॉलिंटियर ने न्यूरोलॉजिकल समस्या की शिकायत की थी। साथ ही, कंपनी पर पांच करोड़ रुपए के जुर्माने के लिए याचिका दायर की थी।



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