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नाक-मुंह से निकली बूंदों से हवाई यात्रा में अधिक खतरा नहीं

हमारे मुंह-नाक से निकलने वाली छोटी-छोटी बूंदों से कोरोना के फैलने का क्या है वैज्ञानिक विश्लेषण, डॉ. महेश पंचगनुला, प्रोफेसर, आईआइटी मद्रास और प्रोफेसर नीलेश पाटणकर, नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी अमरीका की ताजा रिसर्च के हवाले से मुकेश केजरीवाल की बातचीत ।

कोरोना फैलाने वाली मुंह-नाक से निकली सूक्ष्म बूंदें (एरोसोल) कितनी दूर तक जा सकती हैं?
उत्तर: ये सूक्ष्म बूंदें सिर्फ छींकने या खांसने पर ही नहीं, बातचीत व सांस लेते हुए भी निकलती हैं। सामान्य तौर पर इनका आकार 1 माइक्रोन से 10 माइक्रोन तक होता है। यानी हमारे बाल के आकार से भी छोटा। आकार के अनुपात में ही वायरस साथ लाती हैं। एक माइक्रोन की बूंद में वायरस की जितनी मात्रा होगी, 10 माइक्रोन वाली बूंद में उससे हजार गुना ज्यादा वायरस की कॉपी हो सकती हैं। ये हवा में दो मीटर तक की दूरी तय करती हैं।

वायरस वाली बूंदें कितनी देर तक सक्रिय रहती हैं?
उत्तर: बूंदें तो कुछ सेकेंड में हवा में विलीन हो जाती हैं पर वायरस की कॉपी उनके अंदर फंसी अति सूक्ष्म बूंदों के साथ हवा में रह जाती हैं। ये ड्रोपलेट न्यूक्लियस संक्रमण में सबसे मारक हैं। ये हवा में कई मिनट तैरते रहते हैं, दूसरों की सांस में प्रवेश कर जाते हैं या धरातल पर जमा हो जाते हैं। बंद जगहों पर खतरा ज्यादा होता है।

इनसे बचने में मास्क कितना कारगर है?
उत्तर: 0.5 माइक्रोन से भी छोटी बूंदें ही मास्क से बाहर जा पाती हैं। इसलिए मास्क नहीं पहने व्यक्ति से निकले एरोसोल में मास्क वाले व्यक्ति के मुकाबले सैकड़ों गुना ज्यादा वायरस कॉपी होते हैं।

हवाई यात्राएं शुरू हो गई हैं। वहां यह खतरा नहीं है?
उत्तर: एरोप्लेन में यह खतरा नहीं है। क्योंकि इनका वेंटिलेशन सिस्टम वहां मौजूद हवा को हर तीसरे मिनट में बदलता रहता है। साथ ही वहां ऊपर के इनलेट से हवा आती है और सीट के नीचे मौजूद सक्शन से चली जाती है। ज्यादा दूर तक नहीं फैलती।



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