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गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुई हिंसा को विदेशी मीडिया ने कैसे किया कवर, जानिए किसे बता रहे जिम्मेदार

नई दिल्ली।

इस बार का गणतंत्र दिवस कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। कोरोनाकाल में कई पाबंदियों के मद्देनजर राजपथ पर परेड हुई। हालांकि, यह परेड कई अविस्मरणीय क्षणों का गवाह भी बना। भारतीय आकाश में पहली बार रफाल की कलाबाजियां देखने को मिलीं, तो जमीन पर लद्दाख की अपनी अद्भुत झांकी और बांग्लादेश की सैन्य टुकड़ी के मार्च का नजारा भी सुखद अहसास करा गया।

एक ओर भारत की आन-बान और शान के प्रतीक तीनों सेनाओं के जवान राजपथ पर परेड करते हुए ताकत का प्रदर्शन कर रहे थे, तो दूसरी ओर देशभर से ट्रैक्टर मार्च में शामिल होने के लिए दिल्ली आए किसान निर्धारित रूटों पर अपनी परेड निकाल रहे थे। इस बात की तारीफ हर कोई कर रहा था कि आज राजधानी में वाकई जय जवान-जय किसान का अद्भुत और अद्वितीय संगम देखने को मिल रहा है।

मगर तभी अचानक लाखों किसानों की भीड़ से कुछ हजार लोग अलग हुए और प्रतिबंधित रूटों पर मार्च निकालने की जिद्द पर अड़ गए। पुलिस ने मनाने-समझाने की बहुतेरी कोशिश की, मगर ये लोग पहले से कुछ और करने की सोचकर आए थे और हर हाल में उसे अंजाम देना चाहते थे। लिहाजा, पुलिस की सारी कोशिशें बेकार साबित हो रही थीं। अराजक दृश्य सामने आ रहे थे। भीड़ ने हिंसक रूप ले लिया। बैरिकेड तोड़ दिए, पुलिसकर्मियों पर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिशें हुई, उन्हें लाठियों से पीटा गया, तलवारें दिखाई गईं। दर्जनों वाहनों में तोडफ़ोड़ हुई। यह सब करते हुए भीड़ लाल किले में प्रवेश कर गई और अपना अलग झंडा फहरा दिया गया। यही नहीं, भारत को शर्मसार करने के लिए इस भीड़ ने और भी बुहत कुछ किया, जो नहीं करना चाहिए था।

यह दृश्य हर किसी को डरा रहे थे। आम जन किसी बड़ी अनहोनी की आशंका से भयभीत हो रहे थे। इस तबाही को देखने के बाद टै्रक्टर परेड का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने भीड़ को अपना हिस्सा मानने से इनकार किया और पूरी घटना से खुद को अलग बताया। पुलिस ने इंटरनेट बंद कर दी और जरूरी कार्रवाई शुरू की। तब तक भीड़ में शामिल एक स्टंटबाज की मौत हो चुकी थी और करीब दो दर्जन लोग घायल हो गए थे। घटना में करीब 80 पुलिसकर्मी भी घायल हुए।

देखते ही देखते इसकी गूंज दुनियाभर में फैल गई। विदेशी मीडिया, खासकर डिजिटल विंग में भारत को शर्मसार कर रही यह घटना सुर्खियां बनने लगीं। कुछ डिजिटल मीडिया ने इस घटना को कैसे कवर किया, इसकी बानगी आप भी पढि़ए।

उन्मादी भीड़ का राजधानी में अराजक प्रदर्शन- न्यूयार्क टाइम्स

दिल्ली की इस घटना को अमरीकी मीडिया न्यूयार्क टाइम्स ने कवर किया। लेख में कहा गया कि बीते दो महीने से शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसान ट्रैक्टर रैली के दौरान अराजक हो गए। उन्मादी भीड़ ने सुरक्षा बलों पर हमले किए। इस भीड़ से किसान नेताओं का नियंत्रण भी खत्म हो गया है। भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले छोडऩे पड़े। लेख में घटना से पहले दिल्ली में राजपथ पर हुई परेड का जिक्र करते हुए कहा गया कि कुछ ही दूरी पर थोड़ी देर पहले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मौजूदगी में भव्य परेड का आयोजन हुआ था। लेख में कहा गया कि यह घटना भारत और प्रधानमंत्री मोदी की शर्मिंदगी का कारण भी बन सकती है। लेख में सरकार की नीतियों और सुरक्षाकर्मियों की तैयारियों पर भी सवाल उठाया गया है।

किसानों के एक गुट ने निर्धारित रूट तोडक़र वादा खिलाफी की- बीबीसी
भीड़ के हिंसक प्रदर्शन को रिपोर्ट करते हुए बीबीसी ने अपने लेख में लिखा कि ज्यादातर किसान पुलिस की ओर से बताए गए रूट का पालन कर रहे थे, मगर एक गुट बैरिकेड तोडक़र राजधानी में प्रवेश कर गया और बीच शहर में तोडफ़ोड़ की। पुलिस से टकराव हुआ और उन्हें भी पीटा। कुछ मीडियाकर्मियों को भी चोटें आईं। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को काफी संघर्ष करना पड़ा। बीबीसी ने भी अपने लेख में राजपथ पर हुई परेड और शौर्य प्रदर्शन का जिक्र किया है।

दो महीने का शांतिपूर्ण आंदोलन अचानक हिंसक हो गया- द गार्जियन
ब्रिटिश मीडिया ने भी मंगलवार को राजधानी में हुई हिंसा को अपने यहां जगह दी। द गार्जियन ने अपने एक लेख में लिखा कि किसान अपनी मांगों को लेकर दो महीने से शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। यह प्रदर्शन सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में है। किसानों का दावा है कि ये कानून अगर लागू हुए तो उनकी आजीवका और खेती नष्ट हो जाएगी। गणतंत्र दिवस पर पहले राजपथ पर परेड निकली और इसके बाद किसानों का टै्रक्टर मार्च। यह शांतिपूर्ण ढंग से हुआ, मगर टै्रैक्टर रैली में शामिल कुछ लोग हिंसा पर उतर आए और अलग-अलग जगहों पर तोडफ़ोड़ शुरू कर दी। पुलिस ने काफी मशक्कत के बाद इस पर काबू पाया।



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