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बदलाव: पिछले कुछ सालों में कृषि पाठ्यक्रमों के प्रति बढ़ा रुझान, खेती-बाड़ी में करियर की फसल लहलहाना चाहते हैं युवा

नई दिल्ली।

भले ही कम आमदनी के कारण किसान परेशान हैं, लेकिन खेती-बाड़ी के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ा है। इसे कोरोनाकाल का प्रभाव कहा जा सकता है। नई पीढ़ी कृषि को कॅरियर बनाना चाहती है। कुछ सालों में इंजीनियरिंग या मैनेजमेंट जैसे परंपरागत पाठ्यक्रमों के बजाय कृषि पाठ्यक्रमों में दाखिले बढ़े हैं। इनमें दाखिले के इच्छुक विद्यार्थियों में लड़कियों की तादाद भी हर साल बढ़ रही है।

कर्नाटक में अभी सिर्फ सरकारी कॉलेजों में ही स्नातक या स्नातकोत्तर कृषि पाठ्यक्रमों की पढ़ाई होती है। बेंगलूरु, धारवाड़, शिवमोग्गा और रायचूर के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के अलावा बीदर के पशुपालन विवि और बागलकोट के बागवानी विवि से संबद्ध 26 कॉलेजों में कृषि की पढ़ाई होती है। राज्य के कृषि पाठ्यक्रमों में वर्ष 2013 से दाखिला राज्य परीक्षा प्राधिकरण की ओर से आयोजित संयुक्त प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होता है।

ये हो सकते हैं विकल्प

कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सरकारी कॉलेजों में सीटें बढ़ाने, नए कॉलेज खोलने अथवा निजी कॉलेजों को पाठ्यक्रम शुरू करने की अनुमति देने का विकल्प है। फिलहाल यह होना मुश्किल है।

बढ़ा है रोजगार

कृषि विवि के अधिकारियों का कहना है कि कुछ सालों में फार्मिंग व खाद्य पदार्थों से जुड़ी कंपनियों में रोजगार बढ़े हैं। अच्छे पैकेज के साथ मांग होने के कारण विद्यार्थियों में कृषि पाठ्यक्रमों के प्रति रुझान बढ़ा है।

हमेशा रही है मांग

कर्नाटक में कृषि पाठ्यक्रमों की मांग हमेशा रही है। शहरी इलाकों में भी युवाओं में कृषि अध्ययन को लेकर रुझान है। -बीसी पाटिल, कृषि मंत्री, कर्नाटक



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