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फिर आ रहा है एक और ग्रहण 2020, जानें तारीख, सूतक काल का समय और आप पर असर

आकाश में होने वाली प्रमुख खगोलीय घटनाओं में एक ग्रहण भी है, एक और जहां यह वैज्ञानिकों के लिए खोज का विषय है। वहीं आमजन में यह भय की भावना (पूर्ण ग्रहण जब दिन में ही अंधेरा छा जाए) उत्पन्न करता है। ग्रहण को जहां विज्ञान सामान्य प्रक्रिया के तौर पर लेता है, वहीं अध्यात्म में यह दैत्य ग्रहों का देव ग्रहों पर भारी होने को दर्शाता है, अध्यात्म के अनुसार ही ये जहां जीवन पर अपना काफी प्रभाव डालता है वहीं इसके चलते निगेटिव एनर्जी अपना प्रभाव बढ़ती है। इसी कारण इस समय कुछ खास नियमों का पालन करने के लिए भी कहा जाता है। यहां तक की पूजा घर भी इस काल में बंद कर दिए जाते हैं।

ऐसे में 2020 में लगने वाले ग्रहणों में से आखिरी चंद्र ग्रहण अगले महीने 30 नवंबर को लगने जा रहा है। ज्योतिष के जानकारों के अनुसार इसका सीधा असर व्यक्ति के मन पर पड़ेगा, क्योंकि चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। साल 2020 का यह आखिरी चंद्र ग्रहण एक उपच्छाया चंद्र ग्रहण होगा, जो वृषभ राशि और रोहिणी नक्षत्र में होगा।

इस साल का चौथा व आखिरी चंद्र ग्रहण:
चंद्र ग्रहण 2020 का चौथा और अंतिम चंद्र ग्रहण 30 नवंबर 2020 सोमवार को होगा। यह चंद्र ग्रहण 13:04 से 17:22 तक दिखाई देगा। हिंदू पंचांग के अनुसार यह चंद्र ग्रहण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को, रोहिणी नक्षत्र और वृषभ राशि में होगा। इसलिये वृषभ राशि के जातकों को इस समय कुछ परेशानियों से गुजरना पड़ सकता है।


चंद्र ग्रहण तिथि 30 नवंबर 2020 : कुछ खास बातें...
: उपच्छाया से पहला स्पर्श 30 नवंबर 2020 की दोपहर 1 बजकर 04 मिनट पर

: परमग्रास चन्द्र ग्रहण 30 नवंबर 2020 की दोपहर 3 बजकर 13 मिनट पर

: उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श 30 नवंबर 2020 की शाम 5 बजकर 22 मिनट पर

: चंद्र ग्रहण 2020 सूतक काल का समय- इस बार लगने वाले चंद्रग्रहण में सूतककाल मान्य नहीं होगा।


ऐसे समझें उपच्छाया चंद्र ग्रहण...
ग्रहण से पहले चंद्रमा, पृथ्वी की परछाईं में प्रवेश करता है, जिसे उपच्छाया कहते हैं। इसके बाद ही चंद्रमा पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है, जब चंद्रमा पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है, तब वास्तविक ग्रहण होता है। लेकिन, कई बार चंद्रमा धरती की वास्तविक छाया में जाए बिना, उसकी उपच्छाया से ही बाहर निकल आता है। जब चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया न पड़कर केवल उसकी उपछाया मात्र ही पड़ती है, तब उपच्छाया चंद्र ग्रहण होता है। इसमें चंद्रमा के आकार में कोई अंतर नहीं आता है, इसमें केवल चंद्रमा पर एक धुंधली सी छाया नजर आती है।

चंद्र ग्रहण की धार्मिक मान्यता...
धार्मिक मान्यताओं में चंद्र ग्रहण को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है, इसी कारण से जब भी चंद्रमा पर ग्रहण लगता है तो इसका सीधा असर मन पर होता है। चंद्र ग्रहण का असर उन लोगों पर अधिक पड़ता है, जिनकी कुंडली में चंद्र पीड़ित हो या उनकी कुंडली में चंद्र ग्रहण दोष बन रहा है। इतना ही नहीं चंद्र ग्रहण के समय चंद्रमा पानी को अपनी ओर आकर्षित भी करता है, जिससे समुद्र में बड़ी -बड़ी लहरें काफी ऊचांई तक उठने लगती है। माना जाता है कि चंद्रमा को ग्रहण के समय अत्याधिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है, इसी कारण से चंद्र ग्रहण के समय हवन, यज्ञ, और मंत्र जाप आदि किए जाते हैं।

चंद्र ग्रहण 2020 : ये बरतें यह सावधानियां...
: ग्रहण के दौरान कोई भी नया काम शुरु न करें।
: चंद्र ग्रहण के शुरु होने से पहले खाने की सामग्री में तुलसी के पत्ते डालें और तुलसी के पेड़ को ग्रहण के दौरान न छुएं।
: चंद्र ग्रहण के दौरान धार्मिक और प्रेरणादायक पुस्तकों को पढ़ना चाहिए, इनको पढ़ने से आपके अंदर से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाएगी। इसके साथ ही मंत्रों के जाप करने से भी ग्रहण के नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सकता है।
: ग्रहण के दौरान खाना न बनाएं और खाना खाने से भी बचें। खाना बनाना और खाना दोनों को ही ग्रहण के दौरान अशुभ माना जाता है।
: ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को तेज धारदार औजारों जैसे चाकू, कैंची और छुरी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, इससे शीशु के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है।

: इस समय देवी देवताओं की मूर्ति और तस्वीरों को भी नहीं छूना चाहिए।
: ग्रहण के दौरान दांतून करने, बालों पर कंघी लगाने और मलमूत्र का त्याग करने से भी बचना चाहिए।
: ग्रहण की समाप्ति के बाद पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए।
: ग्रहण समाप्ति के बाद यदि आप जरुरतमंदों को जरुरी चीजें दान करते हैं, तो माना जाता है कि इससे आपको अच्छे फलों की प्राप्ति होती है।
: ग्रहण के दौरान : “ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्” मंत्र का जाप करें।
: इस समय चंद्र देव की पूजा करें और ध्यान लगाने की कोशिश करें।

चंद्र ग्रहण : वैदिक ज्योतिष में...
खगोल विज्ञान में चंद्रमा ग्रह नहीं है लेकिन, वैदिक ज्योतिष में इसे ग्रह का दर्जा दिया गया है और नवग्रहों में यह एक महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है। चंद्रमा कर्क राशि का स्वामी है और वृषभ राशि में यह उच्च का और वृश्चिक राशि में नीच का होता है। जन्म कुंडली में यह माता का कारक ग्रह माना गया है। पारिवारिक खुशहाली, तेज दिमाग और अच्छे व्यक्तित्व के लियेएकुंडली में चंद्रमा का मजबूत होना बहुत आवश्यक है।

वहीं माना जाता है कि अगर कुंडली में चंद्रमा कमजोर है तो इसकी वजह से शारीरिक विकास में कमी आती है और ऐसे इंसान का मन चंचल रहता है। जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर है, उन्हें किसी जानकार की सलाह पर ही मोती रत्न धारण करना चाहिए। माना जाता है कि यदि आप अपने चंद्रमा को मजबूत कर लें तो आपको लाभकारी परिणामों की प्राप्ति होती है।

ज्योतिष के अनुसार चंद्र ग्रहण तब होता है, जब केतु चंद्रमा का ग्रास करता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन में निकले अमृत को जब मोहिनी रुप धारण कर भगवान विष्णु सब देवताओं में बांट रहे थे तो स्वरभानु नाम का एक असुर देवताओं का रुप धारण कर देवताओं के बीच आ गया, लेकिन सूर्य और चंद्रमा को स्वरभानु के बारे में पता लग गया और उन्होंने यह बात भगवान विष्णु को बता दी।

इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने चक्र से स्वर भानु के धड़ को सिर से अलग कर दिया। हालांकि तब तक अमृत की कुछ बूंदें उसके गले में चली गईं थीं, जिसके कारण स्वरभानु मरा नहीं। तब से स्वर भानु के सिर वाले भाग को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि, सूर्य और चंद्र देव ने राहु-केतु यानि स्वरभानु का भेद भगवान विष्णु को बताया था इसलिये शत्रुतावश राहु-केतु सूर्य और चंद्रमा से बदला लेने के इन दोनों को ग्रहण लगाकर शापित करते हैं। इस दौरान केतु चंद्र का व राहु सूर्य का ग्रास करते हैं।



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