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शिक्षाविद और दार्शनिक Sarvepalli Radhakrishnan के सम्मान में मनाया जाता है टीचर्स डे, ये है बड़ी वजह

नई दिल्ली। नए दौर में शिक्षा के मायने बदल गए हैं। साथ ही शिक्षण संस्थान भौतिकता और व्यवसाय का केंद्र बनकर सामने आए हैं। आज टीचर्स, स्टूडेंट्स के प्रति अपने मूल दायित्वों को पूरा करने के नाम पर केवल खानापूर्ति के लिए ही करते हैं। लेकिन भारत जैसे महान देश में एक शिक्षक ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने अपने ज्ञान का प्रसार पैसा कमाने के लिए ही नहीं बल्कि विद्यार्थियों को सही मार्ग पर चलाने और एक अच्छा नागरिक बनाने के लिए किया।

देश के इस महान विभूति का नाम है डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ( Sarvepalli Radhakrishnan ) । वह न सिर्फ एक उत्कृष्ट अध्यापक थे बल्कि भारतीय संस्कृति के महान दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, वक्ता और हिंदू विचारक भी थे। राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किए। शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके जन्मदिन यानि पांच सितंबर को देशभर में शिक्षक दिवस ( Teacher’s Day ) के रूप में मनाया जाता है।

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गरीबी में बीता बचपन

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। उनका जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के एक पवित्र तीर्थ स्थल तिरुतनी ग्राम में हुआ था। इनके पिता सर्वपल्ली विरास्वामी एक गरीब किंतु विद्वान ब्राह्मण थे। गरीबी के कारण राधाकृष्णन को बचपन में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अपने विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने बाइबल के महत्वपूर्ण अंश याद कर लिए थे, जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान भी प्रदान किया गया था।

उन्होंने वीर सावरकर और विवेकानंद के आदर्शों का भी गहन अध्ययन कर लिया था। 1902 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की जिसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की गई। कला संकाय में स्नातक की परीक्षा में वह प्रथम आए। इसके बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया। मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए।

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1962 में बने राष्ट्रपति

देश को आजादी मिलने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने राधाकृष्णन से यह आग्रह किया कि वह विशिष्ट राजदूत के रूप में सोवियत संघ में काम करें। 1952 तक वह राजनयिक रहे। इसके बाद उन्हें उपराष्ट्रपति के पद पर नियुक्त किया गया। 1962 में राजेंद्र प्रसाद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद संभाला। 1967 के गणतंत्र दिवस पर डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने देश को सम्बोधित करते हुए यह स्पष्ट किया था कि वह अब किसी भी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे।

भारत रत्न से सम्मानित

शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक डॉ. राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमरीकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे। उन्हें आज भी शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता है।

भारतीय दर्शन से कराया दुनिया को परिचित

डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। राधाकृष्णन ने जल्द ही वेदों और उपनिषदों का भी गहन अध्ययन कर लिया। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित करवाया था। आज भी उनके जन्म दिवस 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन देश के विख्यात और उत्कृष्ट शिक्षकों को उनके योगदान के लिए पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। वृद्धावस्था के दौरान डॉ. राधाकृष्णन बहुत बीमार रहने लगे थे। 1970 के बाद वह बीमार रहने लगे। 17 अप्रैल, 1975 को उनका निधन हो गया।

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