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Patrika Interview: कोरोना काल में क्या करोड़ों बच्चों पर है खतरा, बताया नोबल विजेता कैलाश सत्यार्थी ने

मुकेश केजरीवाल/नई दिल्ली। कोरोना के दौर में बच्चों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। लेकिन इस पर कोई बात नहीं हो रही। यह कहना है बच्चों के हक के लिए दशकों से काम कर रहे कैलाश सत्यार्थी ( Nobel laureate Kailash Satyarthi ) का। पेशे से इंजीनियर रहे सत्यार्थी को बच्चों के लिए उनके काम के लिए दुनिया का सबसे बड़ा नोबल शांति पुरस्कार मिल चुका है।

बच्चों के हालात को लेकर आपका क्या डर है और उसकी वजह क्या है?

सत्यार्थी- महामारी आने के बाद से बच्चे बाहर नहीं निकल पाए। उनमें अकेलापन, अवसाद, झुंझलाहट ऐसी चीजें विकसित हो रही हैं। दुनिया के 1.6 अरब बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। 38 करोड़ बच्चों का स्कूल से मिलने वाला खाना या वजीफा आदि रुक गया है। खतरा यह है कि इनमें से बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल नहीं लौट पाएंगे। देखा गया है कि इस तरह की स्थिति के बाद बच्चों की मजदूरी, अशिक्षा और गुलामी, वैश्यावृत्ति और ट्रैफिकिंग बहुत बढ़ जाती है। संसाधन विहीन बच्चे या तो मजदूरी में धकेल दिये जाएंगे या दलाल लोग ले जाएंगे।

इस स्थिति से निपटने के लिए क्या कर रहे हैं?

सत्यार्थी- लगभग 100 नोबल विजेताओं और वैश्विक नेताओं ने मांग की है कि बच्चों को न्यायसंगत हिस्सा मिले। अब ‘लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रन’ (Laureates and Leaders for Children) के तहत 9-10 सितंबर को इसी विषय पर इनका सम्मेलन हो रहा है।

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दुनिया भर में 18 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर के पैकेज दिए जा रहे हैं। लेकिन यह मुख्य रूप से अमीर देशों के बैंकों और कंपनियों को बचाने के लिए खर्च हो रहा है। इस तरह विषमता और गरीबी बढ़ जाएगी। ऐसी विषमता से तनाव और बढ़ेगा। गरीब बच्चों के दुरुपयोग की आशंका और बढ़ेगी। अगर शांतिप्रिय और सुरक्षित दुनिया बनाना चाहते हैं तो ऐसा मत होने दीजिए। ऐसे पैकेज का 20 प्रतिशत हिस्सा सर्वाधिक उपेक्षित 20 फीसदी बच्चों और उनके परिवार पर खर्च किया जाए।

बुधवार से शुरू हो रहे सम्मेलन में स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लोफवेन, नोबल विजेता मोहम्मद यूनुस, अंतरराष्ट्रीय गायक रिकी मार्टिन, तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा सहित कुल 39 नोबल विजेता और वैश्विक नेता भाग लेने वाले हैं।

भारत के 20 लाख करोड़ के पैकेज में बच्चों के लिए क्या था?

सत्यार्थी- भारत ही नहीं दुनिया के अधिकांश देशों में कोरोना पैकेज में बच्चों के लिए कुछ नहीं है। महामारी में बच्चे सबसे उपेक्षित रह जाते हैं। स्कूल, शिक्षा, स्वास्थ्य से वंचित रह जाते हैं, देह व्यापार और बाल मजदूरी का शिकार हो जाते हैं।

भारत के लिए जरूरी कदम?

सत्यार्थी- कितना बड़ा विरोधाभास है कि भारत की 40 फीसदी आबादी युवा है। लेकिन इस पर जीडीपी का 4 फीसदी भी खर्च नहीं हो रहा। जरूरी है कि हम उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और उनके जीवन को खुशहाल बनाने पर खर्च करें।

मां-बाप के बच्चों से संबंध को ले कर क्या कहेंगे?

सत्यार्थी- लोग मेहनत से हो या भ्रष्टाचार से, पैसा कमाते हैं ताकि बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर सकें, जबकि उन्हें किसी और चीज की जरूरत होती है। एक IAS दंपति से मुलाकात हुई। उनके बच्चे ने आत्महत्या कर ली थी। वे मानने को तैयार नहीं थे। कह रहे थे सबसे महंगे स्कूल, कपड़े, जूते दिलाते थे, विदेश घुमाते थे। जांच में पता चला कि बच्चे का यौन शोषण होता रहा और मां-बाप से वह बोल नहीं पाया। ऐसी परवरिश का क्या फायदा? अपने सपनों और इच्छाओं को थोपने की बजाय बच्चों की बातों को सुनें। उनके दोस्त बनें।

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