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आप या आपके बच्चे के लिए क्या होगा अनुकूल : नौकरी या कारोबार, जानें यहां...

ज्योतिष में कुंडली को व्यक्ति का आइना माना जाता है। इसकी मदद से जहां भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जाता है। वहीं बहुत से संदेहों का भी निराकरण किया जाता है। ऐसे में जहां अधिकांश लोग अपने पैसे व बच्चों के भविष्य के बारे में जानना चाहते हैं। वहीं भविष्य में आय के साधनों को लेकर भी लोगों में जिज्ञासा बनी रहती हैं। इसके तहत लोगों के मन में दुविधा होती है कि उन्हें नौकरी करनी चाहिए या व्यापार, यानि क्या उनके लिए लाभदायक रहेगा। नौकरी में भी प्राइवेट नौकरी करनी चाहिए या सरकारी?

इस संबंध में पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि कुंडली के विभिन्न भावों में स्थित ग्रह उनकी चाल व उनकी दृष्टि को देखते हुए व्यक्ति की इन तमाम जिज्ञासाओं का निराकरण किया जा सकता है। ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं, कि कौन से जातकों के लिए कौन से आय का स्त्रोत ज्यादा फलदायी माना जाता है...

कुंडली : नौकरी या व्यापार का भाव...
कुंडली के दशम भाव को कर्म भाव व पिता का भाव भी माना गया है। ऐसे में दशम भाव से पता चलता है कि व्यक्ति क्या करेगा, वहीं आय के भाव यानि ग्यारहवें भाव से पता चलता है कि व्यक्ति क्या कमाएगा और दूसरे भाव से पता चलता है कि व्यक्ति कितना बचा पाएगा। जहां तक नौकरी या व्यवसाय का सवाल है तो कुंडली में दशम भाव बताता है कि व्यक्ति क्या करेगा...

पंडित शर्मा के अनुसार दशम भाव के स्वामी को दशमेश या कर्मेश या कार्येश कहते हैं। इस भाव को देखकर ही यह पता चलता है कि व्यक्ति सरकारी नौकरी करेगा अथवा प्राइवेट। इसके अलावा व्यापार करेगा तो कौन सा और उसे किस क्षेत्र में अधिक सफलता मिलेगी।

वहीं सप्तम भाव साझेदारी का होता है। इसमें मित्र ग्रह हों तो पार्टनरशिप से लाभ होता है। शत्रु ग्रह हो तो पार्टनरशिप से नुकसान होता है। मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु होते हैं। शनि, मंगल, राहु, केतु ये आपस में मित्र होते हैं।

दशम भाव के कारक ग्रह सूर्य, बुध, गुरु और शनि हैं। दशम भाव में केवल शुभ ग्रह हों तो अमल कीर्ति नामक योग होता है, किंतु उसके अशुभ भावेश न होने और अपनी नीच राशि में न होने की स्थिति में ही इस योग का फल मिलता है।

दशमेश के बली होने से जीविका की वृद्धि और निर्बल होने पर हानि होती है। लग्न से द्वितीय और एकादश भाव में बली व शुभ ग्रह हो तो जातक व्यापार से अधिक धन कमाता है। धनेश और लाभेश का परस्पर संबंध कर धनयोग का निर्माण करता है।

वहीं दशम भाव का कारक यदि उसी भाव में स्थित हो या दशम भाव को देख रहा हो तो जातक को आजीविका का कोई न कोई साधन अवश्य मिल जाता है।


ऐसे समझें : दशम भावस्थ नवग्रह फल...
सूर्यः- दसवें भाव में स्थित वृश्चिक राशि का सूर्य चिकित्सा अधिकारी बनाता है। वहीं मेष, कर्क, सिंह या धनु राशि का सूर्य सेना, पुलिस या आबकारी अधिकारी बनाता है।

चंद्रः- शुभ प्रभाव में बली चंद्र यदि दशमस्थ हो तो धनी कुल की स्त्रियों से लाभ होता है। यदि ऐसा व्यक्ति दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं का व्यापार करे तो लाभप्रद होता है। चंद्र से मंगल या शनि की युति विफलता का-सूचक है।

मंगलः- मेष, सिंह, वृश्चिक या धनु राशि का मंगल जातक को प्राइवेट चिकित्सक और सर्जन बनाता है। ऐसे डाक्टरों को मान-सम्मान और धन की प्राप्ति होती है। मंगल का सूर्य से संबंध हो तो व्यक्ति सुनार या लोहार का काम करता है।

बुधः- लग्नेश, द्वितीयेश, पंचमेश, नवमेश या दशमेश होकर कन्या या सिंह राशि का बुध गुरु से दृष्ट या युत हो तो व्यक्ति प्रोफेसर या लेक्चरर बनकर धन अर्जित करता है। बुध बैंकर भी बनाता है। बुध शुक्र के साथ या शुक्र की राशि में हो तो जातक फिल्म या विज्ञापन से संबंधित व्यवसाय करता है।

गुरुः- गुरु का संबंध जब नवमेश से हो तो व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धन अर्जित करता है। गुरु मंगल के प्रभाव में हो तो जातक फौजदारी वकील बनता है। बलवान और राजयोगकारक हो तो जातक को न्यायाधीश बना देता है।

शुक्रः- जातक सौंदर्य प्रसाधन सामग्री, फैंसी वस्तुओं आदि का निर्माता/विक्रेता होता है। शुक्र का संबंध द्वितीयेश, पंचमेश या बुध से हो तो गायन-वादन के क्षेत्र में सफलता मिलती है।

शनिः- शनि का संबंध यदि चतुर्थ भाव या चतुर्थेश से हो तो जातक लोहे, कोयले मिट्टी के तेल आदि के व्यापार से धन कमाता है। बलवान शनि का मंगल से संबंध हो तो जातक इलेक्ट्रिक/इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर होता है।

यदि बुध से संबंध हो तो जातक मेकैनिकल इंजीनियर होता है। शनि का राहु से संबंध हो तो व्यक्ति चप्पल, जूते, रेक्सिन बैग, टायर-ट्यूब आदि के व्यापार में सफल होता है।

राहुः- दशम भाव में मिथुन राशि का राहु राजनीति के क्षेत्र में सफलता दिलाता है। ऐसा जातक सेना, पुलिस, रेलवे में या राजनेता के घर नौकरी करता है।

केतुः- धनु या मीन राशि का दशमस्थ केतु व्यापार में सफलता, वैभव, धन और यश का-सूचक है। ऊपर वर्णित बिंदुओं के आधार पर अपने अनुकूल आजीविका का निर्णय करें।

माना जाता है कि शुभ/ योगकारक ग्रहों की महादशा में उनसे या जिन ग्रहों से उनका संबंध हो उनसे संबंधित व्यवसाय करने पर अच्छा लाभ होता है। आजीविका के लिए अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंत्र, यंत्र, रत्न, दान और पूजा अर्चना आदि समय-समय पर करते रहना चाहिए।

1.यदि लग्न सप्तम, दशम भाव का कार्येश हो तब जातक को कारोबार द्वारा धनार्जन होगा और यदि षष्ठ और दशम का कार्येश हो तो नौकरी से धन अर्जित करेगा।

2.तृतीय भाव का कार्येश हो तो लेखन, छपाई, एजेंसी, कमीशन एजेंट, रिपोर्टर, सेल्समेन और संस्‍थाओं से धन प्राप्त होगा। मतलब यह कि वह इस क्षेत्र में अपना करियर बनाएगा।

3.अगर द्वितीय और पंचम का कार्येश हो तो जमीन, घर, बगीचे, वाहन और शिक्षा संस्थानों से धन प्राप्त करेगा। इसके अतिरिक्त नाटक, सिनेमा, ढोल, रेस, जुआ, मंत्र, तंत्र और पौरोहित्य कर्म से धन अर्जित करेगा।

4.यदि द्वितीय और सप्तम का कार्येश हो तो विवाह, विवाह मंडल, पार्टनरशिप और कानूनी सलाहकार के कार्य से धन अर्जित करेगा।

5. यदि दशम भाव में एक से अधिक ग्रह हों और उसमें से जो ग्रह सबसे अधिक बलवान होगा जातक उसके अनुसार ही व्यापार करेगा। जैसे दशम भाव में मंगल बलवान हो तो जातक प्रॉपर्टी, निवेश आदि का व्यवसाय करेगा अथवा पुलिस या सेना में जाएगा।

6. यदि दशम भाव में कोई ग्रह न हो तो दशमेश यानी दशम भाव के स्वामी के अनुसार व्यापार तय होगा। यदि दशम भाव में शुक्र हो तो व्यक्ति कॉस्मेटिक्स, सौंदर्य प्रसाधन, ज्वेलरी आदि के कार्यों से लाभ अर्जित करता है। दशम भाव का स्वामी जिन ग्रहों के साथ होता है, उनके अनुसार व्यक्ति व्यापार करता है।

7. सूर्य के साथ गुरु हो तो व्यक्ति होटल व्यवसाय, अनाज आदि के कार्य से लाभ कमाता है। एकादश भाव आय स्थान है। इस भाव में मौजूद ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यापार तय किया जाता है।

8. जन्मकुंडली में कोई ग्रह जब लग्नेश, पंचमेश या नवमेश होकर दशम भाव में स्थित हो या दशमेश होकर किसी भी त्रिकोण (1, 5, 9 भावों) में या अपने ही स्थान में स्थित हो तो व्यक्ति की आजीविका के पर्याप्त साधन होते हैं। वह व्यवसाय या नौकरी में अच्छी प्रगति करता है। दशमेश या दशम भावस्थ ग्रह का बल और शुभता दोनों उसके शुभफलों में द्विगुणित वृद्धि करते हैं।



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