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नवमीं श्राद्ध : क्यों खास है यह तिथि और क्या करना चाहिए इस दिन? भूलकर भी न करें ये गलतियां

आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी का श्राद्ध कर्म किया जाता है। नवमी तिथि श्राद्ध पक्ष में बहुत श्रेष्ठ श्राद्ध माना गया है। नवमी तिथि को माता और परिवार की विवाहित महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है। इस दिन यानि नवमी तिथि को जिनकी मृत्यु हुई होती है उनके नाम से भोजन करवाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। 02 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है और इस बार श्राद्ध पक्ष में नवमी तिथि 11 सितंबर को है। आइए जानते हैं क्‍यों खास होती है यह तिथि और इस दिन क्‍या करना चाहिए।

पंडितों व जानकारों के अनुसार सौभाग्यवती स्त्री का श्राद्ध हमेशा नवमी तिथि में ही किया जाता है, भले ही मृत्यु की तिथि कोई अन्य हो। कोई भी पूर्वज जिस तिथि को इस लोक को त्यागकर परलोक गया हो, उसी तिथि को इस पक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है, लेकिन स्त्रियों के लिए नवमी तिथि विशेष मानी गई है। मातृ नवमी के दिन पुत्रवधुएं अपनी स्वर्गवासी सास व माता के सम्मान और मर्यादा के लिए श्रद्धांजलि देती हैं और धार्मिक कृत्य करती हैं…

मातृ नवमी श्राद्ध के दिन घर पुत्रवधुएं को उपवास रखना चाहिए। क्योंकि इस श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार नवमी का श्राद्ध करने पर श्राद्धकर्ता को धन, संपत्ति व ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा सौभाग्य सदा बना रहता है। अगर इस दिन जरूरतमंद गरीबों को या सतपथ ब्राह्मणों को भोजन करने से सभी मातृ शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

सभी इच्छाएं होती हैं पूरी...
मातृ नवमी का खास महत्व इसलिए है कि इसदिन परिवार की उन तमाम महिलाओं की पूजा की जाती है और उनके नाम से श्राद्ध भोज किया जाता है जिनकी मृत्यु हो चकी है। इसलिए माताओं की पूजा होती है इसलिए इसे मातृ नवमी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि मातृ नवमी का श्राद्ध कर्म करने वाले मनुष्य को पितरों का आशीष मिलने के साथ ही उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।


मातृ नवमी का श्राद्ध ऐसे करें

1- सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होकर घर की दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछाएं।
2- सभी पूर्वज पित्रों के चित्र (फोटो) या प्रतिक रूप में एक सुपारी हरे वस्त्र पर स्थापित करें।
3- पित्रों के निमित्त, तिल के तेल का दीपक जलाएं, सुघंधित धूप करें, जल में मिश्री और तिल मिलाकर तर्पण भी करें।
4- परिवार की पितृ माताओं को विशेष श्राद्ध करें, एवं एक बड़ा दीपक आटे का बनाकार जलायें।
5- पितरों की फोटो पर गोरोचन और तुलसी पत्र समर्पित करें।
6- श्राद्धकर्ता कुशासन पर बैठकर भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ भी करें।

7- गरीबों या ब्राह्मणों को लौकी की खीर, पालक, मूंगदाल, पूड़ी, हरे फल, लौंग-इलायची तथा मिश्री के साथ भोजन दें।
8- भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धन-दक्षिणा देकर उनको विदाई करें।
9- पितृ पक्ष श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध है और इसे संपन्‍न करने का शुभ समय कुटुप मुहूर्त और रोहिणा होता है। मुहूर्त के शुरु होने के बाद अपराह्रन काल के खत्‍म होने के मध्‍य किसी भी समय श्राद्ध क्रिया संपन्‍न किया जा सकता है। श्राद्ध के अंत में तर्पण भी किया जाता है।

सदा बना रहता है सौभाग्य
मातृ नवमी श्राद्ध के दिन घर की पुत्रवधुओं को उपवास रखना चाहिए क्योंकि इस श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार नवमी का श्राद्ध करने पर श्राद्ध करने वाले को धन, संपत्ति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा सौभाग्य सदा बना रहता है।

ऐसे मिलता है आशीर्वाद
इस दिन जरूरतमंद गरीबों को और ब्राह्मणों को भोजन करने से सभी मातृ शक्तियों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। सुबह नित्यकर्म करने के बाद अपने घर की दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछाएं और फिर सभी पूर्वज पितरों के चित्र (फोटो) रूप में एक सुपारी उस हरे वस्त्र पर स्थापित करते हुए पितरों के नाम से तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

शुभ फलदायी : गीता का पाठ
इस दिन परिवार की पितृ माताओं को विशेष श्राद्ध करना चाहिए और एक बड़ा दीपक आटे का बनाकार जलाएं। पितरों की तस्वीर पर तुलसी की पत्तियां अर्पित करनी चाहिए। श्राद्धकर्ता को भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ भी करना चाहिए।

दान-दक्षिणा देकर करें विदा
गरीबों या ब्राह्मणों को लौकी की खीर, पालक, मूंगदाल, पूड़ी, हरे फल, लौंग-इलाइची तथा मिश्री के साथ भोजन देना चाहिए। भोजन के बाद सभी को अपनी यथाशक्ति के अनुसार वस्त्र, धन-दक्षिणा देकर उनको विदाई करनी चाहिए।

तर्पण करें
पितृ पक्ष श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध है और इसे संपन्‍न करने का शुभ समय कुटुप मुहूर्त और रोहिणी होता है। मुहूर्त शुरू होने के बाद अपराह्रन काल के खत्‍म होने के बीच में किसी भी समय श्राद्ध क्रिया संपन्‍न की जा सकती है। श्राद्ध के अंत में तर्पण भी किया जाता है।जल में मिश्री और तिल मिलाकर तर्पण भी किया जा सकता है।

पितृपक्ष में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए...

: पितृपक्ष के दौरान कभी भी लोहे के बर्तनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन्हें नकारात्मक प्रभाव का माना गया है। इसमें खाना देने से पितृ नाराज हो सकते हैं। इससे पितृ दोष भी लग सकता है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए हमेशा पीतल, कांसा व पत्तल की थाली व पात्र का प्रयोग करना चाहिए।

: पितृपक्ष में श्राद्ध क्रिया करने वाले व्यक्ति को पान, दूसरे के घर का खाना और शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि ये चीजें व्यासना और अशुद्धता को दर्शाते है।।

: पितृ पक्ष के दौरान कुत्ते, बिल्ली, कौवा आदि पशु—पक्षियों का अपमान नहीं करना चाहिए। क्योंकि माना जाता है कि पितृ गढ़ धरती पर इन्हीं में से किसी का रूप धारण करके आते हैं।

: श्राद्ध पक्ष के दौरान कभी भी भिखारी व जरूरतमंद को खाली हाथ नहीं जाने देना चाहिए और न ही उनसे बत्तमीजी करनी चाहिए। क्योंकि इससे पितर नाराज हो सकते हैं। जिसके चलते आपको पितृ दोष का प्रकोप झेलना पड़ सकता है।

: अगर आप कोई नई चीज खरीने जा रहे हैं या नया काम शुरू करना चाहते है तो श्राद्ध पक्ष में इन्हें टाल दें। क्योंकि इन दिनों को अशुभ माना जाता है। इनमें किए गए काम में सफलता नहीं मिलती है।

: श्राद्ध पक्ष के दौरान पुरुषों को 15 दिनों तक अपने बाल एवं दाढ़ी—मूंछें नहीं कटवानी चाहिए। क्योंकि ये शोक का समय होता है।

: चतुर्दशी को श्राद्ध क्रिया नहीं करनी चाहिए। इस दिन महज वो लोग तर्पण करें जिनके पूर्वजों की मृत्यु इसी तिथि में हुई हो।

: पितृ पक्ष के दौरान चना, मसूर, सरसों का साग, सत्तू, जीरा, मूली, काला नमक, लौकी, खीरा एवं बांसी भोजन के सेवन से भी बचें। इन्हें खाना वर्जित माना जाता है।

: श्राद्ध पक्ष में पितरों को भोजन दिए बिना खुद खाना न खाएं। ऐसा करना उनका अनादर करने के समान होता है। इसलिए पंद्रह दिनों तक भोजन करने से पहले अपने पूवजों के लिए भोजन का कुछ अंश जरूर निकालें।



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