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अधिकमास का खगोलविज्ञान : जानिये इस अतिरिक्त मास का कारण...

सनातन धर्म में जहां अधिकमास यानि पुरुषोत्तम मास का खास महत्व है, वहीं विज्ञान के जानकार भी इस माह को कई मायनों में विशेष मानते हैं। जानकारों के अनुसार अंग्रेजी कैलेंडर के चलन के बाद आज की युवा पीढ़ी हिन्दी माह के नाम तक ठीक से समझ नहीं पाती है, जबकि सनातन धर्म में सारे त्यौहार हिन्दी माह पर ही आधारित होते हैं, ऐसे में वर्तमान में चल रहे आश्विन अधिकमास के संबंध में नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारु ने हिन्दी और अंग्रेजी कैलेन्डर की गणना का विज्ञान बताया।

सारिका के अनुसार हिंदी साल में 12 महीने होते हैं। यह साल लगभग 354 दिन का होता है। वहीं अंग्रेजी कैलेन्डर में भी 12 माह होते हैं, लेकिन यह लगभग 365 दिन और 6 घंटे का होता है। इस तरह हर साल इन वर्षों के बीच करीब 11 दिनों का फासला रह जाता है। यह अंतर तीन सालों में एक महीने के बराबर हो जाता है। इस अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र महीना अतिरिक्त बढ़ा दिया जाता है। इसे ही अधिक मास कहते हैं।

scientific reason behind Adhik maas

सारिका ने बताया कि किस महीने को अधिकमास का दर्जा दिया जाए इसके लिए यह देखा जाता है कि जब अमावस्या से पूर्णिमा और फिर पूर्णिमा से अमावस्या आने तक यदि सक्रांति नहीं आती है, तो वह महीना ही अधिकमास कहलाता है।

ऐसे समझें आश्विन मास ही अधिकमास क्यों-
सारिका ने बताया कि इस साल 16 सितंबर को कन्या संक्रांति आई, वहीं इसके बाद अब 17 अक्टूबर को तुला सक्रांति आएगी। इस अवधि में 17 सितंबर से 16 अक्टूबर के बीच अमावस्या और पूर्णिमा दोनों आ रहे हैं अतः यह अवधि आश्विन या कुआंर महीने को अधिकमास के रूप में मनाया जा रहा है। वहीं लोगों का तो ये तक मानना है कि अगर सरकारी तंत्र हिन्दी माह पर आधारित होकर कार्य करता, तो अधिकमास के कारण इस साल 12 नहीं 13 महीने का वेतन मिलता।

क्या होती है संक्रांति-
सारिका ने जानकारी दी कि पृथ्वी के चारों ओर के आकाश को बारह राशि तारामंडल में बांटा गया है। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 12 अंग्रेजी माह में करती है। हर माह की एक खास दिनांक को सूर्य के पीछे दिखने वाला राशि तारामंडल बदल जाता है। इसे ही संक्रांति कहते हैं। यह आमतौर पर महीने की 14 से 17 तारीख के बीच होता है।



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