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मेरी बहू का फैसला साहसिक, सैद्धांतिक और ऐतिहासिक- प्रकाश सिंह बादल

नई दिल्ली।

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री (Ex Chief Minister of Punjab) और शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल ने अपनी बहू हरसिमरत कौर की तारीफ की है। उन्होंने कृषि विधेयक के विरोध में केंद्रीय मंत्रिमंडल से हरसिमरत कौर के इस्तीफा देने को साहसिक, सैद्धांतिक और ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा कि कोई भी अकाली ऐसे किसी भी फैसले का समर्थन नहीं कर सकता, जो किसानों के हितों को नुकसान पहुंचाते हैं।

बता दें कि हरसिमरत कौर बादल ने तीन कृषि विधेयकों के विरोध में गत गुरुवार को मोदी सरकार (Modi Sarkar) से इस्तीफा दे दिया था। वह इस सरकार में अकाली दल से अकेली मंत्री थीं। ये विधेयक गुरुवार को ही
लोकसभा (Loksabha) में पारित हुए थे। राज्यसभा (Rajyasabha) में इन्हें रविवार को पारित किया गया।

पद का लालच मायने नहीं रखता
पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल ने किसानों के में आवाज उठाने को लेकर अपनी पार्टी की तारीफ की और कहा, यदि किसान और कृषि अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, तो व्यापार एवं उद्योग समेत देश की पूरी अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। एक अकाली नेता और कार्यकर्ता के लिए के लिए पद का लालच कोई मायने नहीं रखता। अन्याय के विरुद्ध चुप रहने की जगह हमने इमरजेंसी के दौरान भी कई बार सत्ता के प्रस्तावोंं को ठुकराया है।

हमेशा सिद्धांतों के साथ खड़े रहेंगे
बादल ने कहा, हमने हमेशा ऐसे प्रस्तावों को ठुकरा दिया और देश तथा सिद्धांतों के साथ खड़ा होना ज्यादा पसंद किया। जरूरत पड़ी तो इसके लिए जेल भी गए। यह परंपरा हमेशा जारी रहेगी। बता दें कि प्रकाश सिंह बादल पंजाब के पांच बार मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने किसानों के साथ खड़े होने और केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर होने केे शिरोमणि अकाली दल के फैसले को पार्टी के इतिहास में एक गौरवपूर्ण और ऐतिहासिक क्षण बताया।

मैं मोदी सरकार को समझा नहीं पाई
इससे पहले, गत गुरुवार को कृषि विधेयकों के विरोध में मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाली अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने कहा था कि सरकार को इन विधेयकों को सदन में पेश करने से पहले किसानों से बात करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को आगे ले जाने के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं और हम उनकी नीतियों को किसान विरोधी नहीं मानते। मैं लगातार किसानों की बात केंद्र तक और केंद्र की बात किसानों तक पहुंचाती रही हूं, लेकिन इस बार संभवत: मैं मोदी सरकार को अपनी बात समझाने में सफल नही हो पाई। उन्होंने कहा, अध्यादेश बनने से पहले जब यह मेरे पास आया था, तब मैंने कहा था कि किसानों के मन में इसे लेकर कई तरह की शंका है, पहले इसे दूर करना चाहिए। साथ ही, राज्य सरकारों को भी विश्वास में लेकर ही ऐसे किसी फैसले पर आगे बढऩा चाहिए। यह विरोध मैंने गत मई में ही दर्ज कराया था। इसके बावजूद जून में बिना किसी ऐसे प्रयासों और पहल के यह अध्यादेश लाया गया।



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