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Supreme Court : लाख टके का सवाल सबसे निचले तबके तक कैसे पहुंचे आरक्षण का लाभ

नई दिल्ली। भारत में दलितों, पिछड़ों व निम्न जातियों को मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण ( Reservation ) हमेशा से ज्वलंत सियासी मुद्दा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने एक बार फिर उसी मुद्दे पर बड़ा फैसला सुनाया है। ताजा फैसले में देश की सर्वोच्च अदालत ने नीति नियंताओं और सियासी पार्टियों से से कहा है कि आरक्षण का लाभ देश के सबसे ज्यादा जरूरतमंदों को नहीं मिल रहा है। नए सिरे से इस पर पुनर्विचार ( Time to review on reservation system ) का वक्त आ गया है। इस पर सभी को ध्यान देने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एससी-एसटी ( SC/ST ) के सबसे निचले स्तर के लोगों तक आरक्षण का लाभ ( benefit of reservation ) नहीं पहुंच रहा है। क्या हमेशा पिछड़े रहना ही उनकी नियति हो गई है?

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SC-ST में खुल सकता है क्रीमी लेयर का दरवाजा

अब इस बात को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षितों के वर्गों में विशेष वर्ग को प्राथमिकता देने के लिए सरकार को अधिकृत करने का फैसला देने वाले कानूनी अधिकार पर विचार करने के लिए शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने इस मामले को बड़ी पीठ को रेफर कर दिया है।

वर्तमान पीठ ने इस टिप्पणी से एससी-एसटी आरक्षण में ओबीसी की तरह से क्रीमी लेयर ( creamy layer ) लागू होने का दरवाजा खुल सकता है। केंद्र सरकार भी क्रीमी लेयर का विरोध कर रही है और ये मामला पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

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कैसे पहुंचे निचले तबके तक इसका लाभ

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ( Justice Arun Mishra ) ने कहा कि लाख टके का सवाल यह है कि आरक्षण का लाभ कैसे निचले तबके तक पहुंचाया जाए। आरक्षण को लेकर अभी तक की रिपोर्ट बताती हैं कि आरक्षण का लाभ लगातार वही ले रहे हैं जो ऊपर उठ चुके हैं और जो नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व हासिल कर चुके हैं।

आरक्षण की नए सिरे से व्याख्या का वक्त आ गया है

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरुण मिश्रा ने कहा कि एससी-एसटी और सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची में बहुत से वर्ग गैर बराबरी पर हैं। अपने 78 पेज के फैसले में पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 338, 341, 342 और 342ए की व्यापक जनहित में व्याख्या करने का समय आ गया है।

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बाध्यकारी फैसलों पर फिर से विचार की जरूरत

शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने कहा कि इंदिरा साहनी और अन्य फैसलों की बाध्यकारी नजीरों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। हम इन फैसलों की पूरी इज्जत करते हैं लेकिन वास्तविक हकीकत से भी नजरें नहीं चुराई जा सकतीं। मूक दर्शक बनकर नहीं रहा जा सकता। बदलती सामाजिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखे बिना समाज सुधार के प्रयास सफल नहीं हो पाएंगे।

फैसले में पीठ ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या आरक्षित वर्गों के किसी वर्ग को प्राथमिकता देना आरक्षित जातियों की सूची में से किसी जाति को निकालना या किसी को शामिल करने जैसा तो नहीं होगा। वह भी तब जब अन्य जातियां आरक्षण से वंचित न हो रही हों।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईवी चिन्नैया-2004 मामले में जातियों के उपवर्गीकरण पर रोक लगाई गई है। वहीं जरनैल सिंह-2018 मामले में कोर्ट ने यह राय व्यक्त की थी कि एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू की जाए। ये लेयर संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत राष्ट्रपति के आदेश से बनी आरक्षितों की सूची से छेड़छाड़ कदापि नहीं करती है।

केवल प्रभावी लोगों को नहीं उठाने दे सकते आरक्षण का लाभ

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरुण मिश्रा की पीठ ने कहा कि भोजन की पूरी टोकरी जो सभी लोगों की भूख मिटाने के लिए है, क्या सिर्फ सशक्त लोगों को हड़पने दी जा सकती है। इसकी अनुमति देना गैर बराबरी को बढ़ावा देना होगा। समानता लाने की आड़ में भोजन की पूरी बास्केट ताकतवरों को नहीं दी जा सकती।



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