संध्या आरती : गणेशोत्सव के दौरान ऐसे करें श्री गणेश के साथ ही माता लक्ष्मी को प्रसन्न
प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश का महापर्व 22 अगस्त 2020 से शुरू हो चुका है। लगभग अगले 10 दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव अनंत चतुर्दशी (1 सितंबर 2020) के साथ समाप्त होगा। गणेश चतुर्थी का पर्व भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि जो इस महापर्व में भगवान गणेश के साथ माता लक्ष्मी को प्रसन्न कर लेता है उसके जीवन से सभी दुख कष्ट और विघ्न खत्म हो जाते हैं। इसलिए इस दौरान भगवान गणेश के साथ देवी मो लक्ष्मी का पूजन भी जरूर करना चाहिए। मान्यता के अनुसार लक्ष्मी-गणेश की आरती से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है –
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार श्री गणेश व देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के वैसे तो कई उपाय हैं, लेकिन कुछ खास उपाय इन्हें काफी जल्द प्रसन्न कर देते हैं। इसके तहत जहां दीपावली पर दोनों का पूजन किया जाता है। वहीं गणेश जी के इस महापर्व पर भी नियमों के साथ पूर्ण श्रृद्धा से श्री गणेश के साथ देवी मां लक्ष्मी के पूजन से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इसके तहत पूरे महापर्व के दौरान हर सांयआरती में भगवान गणेश के अलावा देवी मां लक्ष्मी का पूजन भी अनिवार्य है।
गणेश भगवान की आरती (Ganesh Ji Ki Aarti):
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
एकदन्त दयावन्त, चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
लक्ष्मी जी की आरती (Laxmi Ji Ki Aarti):
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम ही जग माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ॥
दुर्गा रुप निरंजनि, सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥ॐ॥
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी, भव निधि की त्राता ॥ॐ॥
जिस घर तुम रहती हो, तह में हैं सद्गुण आता ।
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥ॐ॥
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ॐ॥
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥ॐ॥
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता ।
उर आंनद समाता,पाप उतर जाता ॥ॐ॥
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