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अब खराब फेफड़े दोबारा होंगे जिंदा, 24 घंटों में वैज्ञानिकों ने किया कमाल, इंसानों में जल्द होगा ट्रायल


नई दिल्ली. दुनिया में तेजी से फैल रही महामारी (Coronavirus Outbreak) को लेकर विशेषकों का मानना है कि फेफड़ा (lung) और दिल की बीमारी के मरीज को कोरोना का खतरा ज्यादा होता है। माना जाता है कि कोरोना वायरस (Coronavirus in India) फेफड़ा (lung) और हृदय (heart) को पूरी तरह क्षतिग्रस्त करता है। इस बुरी खबर के बीच वैज्ञानिकों ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। वैज्ञानिकों ने फेफड़ों को बुरी तरह खराब हो जाने के बाद भी उन्हें स्वस्थ करने का तरीका ढूंढ निकाला है।

यह अपने आप में एक बड़ी कामयाबी है। शोधकर्ताओं ने इसका अध्ययन करने के लिए ब्रेन डेड मरीजों पर शोध किया। ब्रेन डेड (Brain Dead) मरीजों में से खराब फेफड़ों पर यह शोध किया गया। अध्ययन में बताया गया कि फेफड़ों को रेस्पिरेटर तकनीक से जोड़कर इनमें सूअर (Pig) का रक्त प्रभावित किया गया और यकीनन 24 घंटों में ही जिंदा हो गया।

इसकी कामयाबी के बाद यह प्रयोग इंसानों में किया गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि दान में मिले हुए फेफड़े कुछ घंटों में ही खराब हो जाते हैं। अभी नए शोध के बाद पहले से ज्यादा फेफड़े ट्रांसप्लांट के लिए उपलब्ध रहेंगे। इस विषय पर जानकारी देते हुए न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी (New york university) में फेफड़ा ट्रांसप्लांट के विशेषण डॉक्टर जैकरी एन कोन ने एक अंग्रेजी अखबार को जानकारी देते हुए बताया कि ''यह एक परिवर्तनकारी विचार है जिससे मरीजों की जान बचेगी।''

एेसे किया गया शोध

जानकारी के मुताबिक कोलंबिया और वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी (Columbia and Vanderbilt University) के शोधकर्ता पिछले आठ साल से खराब फेफड़ों को फिर से स्वस्थ करने का काम कर रहे हैं। ताजा शोध में उन्होंने हरेक फेफड़े को ‘सांस’ देने के लिए प्लास्टिक के अलग-अलग बक्से में रखकर एक रेिस्परेटर से जोड़ा था। फिर इन्हें जिंदा सूअर- के गले की बड़ी नलिका से जोड़ दिया, जिससे उसका रक्त वाहिकाओं के जरिए फेफड़ों में बहने लगा। फिर एक दिन में ही ये बेकार फेफड़े बेहतर हो गए और प्रयोगशाला में पूर्ण स्वस्थ पाए गए।

इंसानों पर होगा प्रयोग

इस तकनीक को एक्स वीवो लंग पर्फ्यूजन (Ex vivo lung perfusion) (ईवीएलपी) नाम दिया है। माना जा रहा है कि इसका प्रयोग अब इंसानों पर होगा। इसके तहत मरीज के गले में बड़ा कैथेटर डालकर फेफड़े में रक्त प्रवाहित किया जाएगा। फेफड़े का संपर्क कमरे में रखे रेस्पिरेटर से होगा।

28 फीसदी फेफड़े ही होते है इस्तेमाल

अमेरिकी लंग एसोसिएशन (American Lung Association) के मुताबिक, ''दान में मिले सिर्फ 28 फीसदी फेफड़े ही इस्तेमाल हो पाते हैं क्योंकि व चंद घंटों तक ही सही रहते है। जल्दी ही उनका प्रयोग न होने से वे बाकी खराब हो जाते हैं। शोध में शामिल वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी (Vanderbilt University) के डॉ मैथ्यू डब्ल्यू बशेटा (Dr. Matthew W. Basheta) के मुताबिक, अगर दान किए 40 फीसदी फेफड़े भी प्रत्यारोपित (Implanted) हो पाएं तो काफी मरीजों को प्रतीक्षा सूची में नहीं रहना पड़ेगा।''



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