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अगस्त 2020 : इस माह कौन कौन से हैं तीज त्योहार, जानें दिन व शुभ समय

कोरोना संक्रमण के चलते पहले लॉकडाउन फिर अनलॉक और फिर समय समय पर लग रहे लॉकडाउन के बीच पिछले करीब 4 माह से पड़ रहे त्यौहारों को लोग पहले की भांति नहीं मना पा रहे हैं।

वहीं अब अगस्त 2020 में भी अनेक त्यौहार आ रहे हैं, ऐसे में यदि कोरोना के प्रकोप में काफी कमी आ जाती है या इसकी वैक्सीन आ जाती है तो माना जा रहा है कि इस बार लोग अगस्त के दौरान आने वाले त्योहारों को हर कोई धूमधाम से मना सकेंगे। ऐसे में आज हम आपको अगस्त 2020 में आने वाले प्रमुख तीज त्योहारों के बारे में बता रहे हैं।

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार अगस्त 2020 में रक्षा बंधन,जन्माष्टमी,हरतालिका तीज,गणेश चतुर्थी सहित कई त्यौहार आएंगे। इसमें जहां रक्षाबंधन में बहने अपने भाईयों की कलाइयों पर रक्षासूत्र बांधेंगी वहीं जन्माष्टमी में श्री कृष्ण का जन्म मनाया जाएगा।

ऐसे समझें अगस्त 2020 के त्यौहार...

: 01 अगस्त : शनिवार : प्रदोष व्रत (शुक्ल)...
भगवान शिव के प्रिय माह सावन में 01 अगस्त 2020, शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत रहेगा।

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: 03 अगस्त : सोमवार : रक्षा बंधन , श्रावण पूर्णिमा व्रत...
इस साल यानि 2020 में रक्षा बंधन का पर्व 3 अगस्त को मनाया जाएगा। रक्षा बंधन पर्व को भाई बहनों के पवित्र पर्व के रूप में जाना जाता है। इस दिन को भाई बहन के प्रेम के उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। रक्षा बंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और भाई बहनों को रक्षा का वचन देते हैं। वहीं इस दिन बहनें राखी बांधकर भाई के लिए दीर्घायु सुख और समृद्धि कामना करती हैं।

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: 06 अगस्त : गुरुवार : कजरी तीज
कजरी तीज का व्रत (Kajari Teej Vrat) भी हरियाली तीज (Hariyali Teej) की तरह ही अखंड सौभाग्य के लिए रखा जाता है इस व्रत को कजली तीज, सातूड़ी तीज और बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है।

इस व्रत में भी सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख के लिए व्रत रखती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत कर कर सकती है। माना जाता है कि यदि कोई कुंवारी कन्या इस व्रत को करती है तो उसे मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। कजरी तीज के व्रत में सुहागन स्त्रियां दुल्हन की सजती और संवरती है और विधिवत माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।


: 07 अगस्त : शुक्रवार : संकष्टी चतुर्थी
संकष्टी चतुर्थी का व्रत (Sankashti Chaturthi Fast) करने वाले व्यक्ति जीवन की सभी सुख सुविधाओं को प्राप्त करता है। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना की जाती है।

हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।

संकष्टी चतुर्थी व्रत प्रारंभ और समाप्ति...
: संकष्टी चतुर्थी प्रारम्भ - सुबह 12 बजकर 14 मिनट से अगले दिन
: संकष्टी चतुर्थी समाप्त - सुबह 2 बजकर 06 मिनट तक

भगवान गणेश के भक्त संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी तरह के विघ्न हरने के लिए पूजे जाते हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है।

संकष्टी चतुर्थी का उपवास कठोर होता है जिसमे केवल फलों, जड़ों (जमीन के अन्दर पौधों का भाग) और वनस्पति उत्पादों का ही सेवन किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत के दौरान साबूदाना खिचड़ी, आलू और मूँगफली श्रद्धालुओं का मुख्य आहार होते हैं। श्रद्धालु लोग चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद उपवास को तोड़ते हैं।

: 12 अगस्त : बुधवार : जन्माष्टमी
जन्माष्टमी का त्यौहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि (आधी रात) थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

जन्माष्टमी व्रत व पूजन विधि...
1. इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है।

2. इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व (सप्तमी को) हल्का तथा सात्विक भोजन करें। रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें।

3. उपवास वाले दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें।

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4. हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान (छिड़ककर) कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएँ। अब इस सूतिका गृह में सुन्दर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें।

5. साथ ही भगवान श्रीकृष्ण जी को स्तनपान कराती माता देवकी जी की मूर्ति या सुन्दर चित्र की स्थापना करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम क्रमशः लेते हुए विधिवत पूजन करें।

6. यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। फलहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फ़ी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है।

: 15 अगस्त : शनिवार : अजा/अन्नदा एकादशी
हिन्दू कैलेंडर की एकादशी तिथि धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। यह तिथि भगवान विष्णु जी को समर्पित होती है। इसलिए हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का व्रत रखा जाता है। एकादशी तिथि हिन्दू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि होती है, जो एक माह में दो बार (कृष्ण पक्ष की एकादशी और शुक्ल पक्ष की एकादशी) आती है।

अजा एकादशी भगवान विष्णु जी को अति प्रिय है इसलिए इस एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु और साथ में मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे अन्नदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

अजा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि
- एकादशी के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान ध्यान करें।
- अब भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाकर, फलों तथा फूलों से भक्तिपूर्वक पूजा करें।
- पूजा के बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- दिन में निराहार एवं निर्जल व्रत का पालन करें।
- इस व्रत में रात्रि जागरण करें।
- द्वादशी तिथि के दिन प्रातः ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान-दक्षिणा दें।
- द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद उन्हें दान-दक्षिणा दें।
- फिर स्वयं भोजन करें।


: 16 अगस्त : रविवार : प्रदोष व्रत (कृष्ण) , सिंह संक्रांति

इस दिन रवि प्रदोष रहेगा,प्रदोष व्रत भगवान शिव को अति प्रिय है। माना जाता है इस दिन भगवान शंकर भक्तों को मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं।

प्रदोष व्रत की विधि... pradosh vrat pooja vidhi ...
- प्रदोष व्रत करने के लिए त्रयोदशी वाले दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निर्वित हो।

- इस व्रत में व्रती का सफ़ेद कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।

- यह व्रत निराहार रखा जाता है।

- सांयकाल के समय शिवालय जाये या फिर घर पर ही पूजास्थान पर बैठे।

- भगवान शंकर का ध्यान करते हुए, व्रत कथा और आरती पढ़नी चाहिए।

- भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें।

- पूजा में शिवजी जी को फल, फूल, धतूरा, बिल्वपत्र और ऋतुफल अर्पित करें।

- प्रदोष व्रत में अपने सामर्थ्य अनुसार किसी ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा देनी चाहिए।

- इस व्रत में भोजन करना निषेध है।

- फिर भी व्रति अपनी यथा शक्तिअनुसार संध्याकाल के पूजन के बाद सात्विक भोजन या फलाहार ले सकता है।

सिंह संक्रांति : सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। संक्रांति एक सौर घटना है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पूरे वर्ष में प्रायः कुल 12 संक्रान्तियाँ होती हैं और प्रत्येक संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है। शास्त्रों में संक्रांति की तिथि एवं समय को बहुत महत्व दिया गया है।

भादो मास में जब सूर्यदेव अपनी राशि परिवर्तन करते हैं तो उस संक्रांति को सिंह संक्रांति कहते हैं। इस संक्रांति में घी के सेवन का विशेष महत्व है। दक्षिणी भारत में सिंह संक्रांति को सिंह संक्रमण भी कहा जाता है।

इस दिन को सभी बड़े पर्व के रूप में मनाते है। सिंह संक्रांति के दिन भगवान् विष्णु, सूर्य देव और भगवान नरसिंह का पूजन किया जाता है। इस दिन भक्त पवित्र स्नान करते है।

जिसके बाद देवताओं का नारियल पानी और दूध से अभिषेक किया जाता है। जिसके लिए केवल ताजे नारियल पानी का ही इस्तेमाल किया जाता है। बहुत से लोग इस दिन भगवान गणेश का भी पूजन करते है और प्रार्थना करते है। कुछ समुदायों में सूर्य राशि के कन्या राशि में प्रवेश करने तक विशेष पूजन किया जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा का खास महत्व होता है।

: 17 अगस्त : सोमवार : मासिक शिवरात्रि
शिवरात्रि शिव और शक्ति के संगम का एक पर्व है। हिंदू पंचाग के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष के 14वें दिन को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। यह पर्व न केवल उपासक को अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने में मदद करता है, बल्कि उसे क्रोध, ईर्ष्या, अभिमान और लालच जैसी भावनाओं को रोकने में भी मदद करता है। मासिक शिवरात्रि हर महीने मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार साप्ताहिक त्योहारों में भगवान शिव को सोमवार का दिन समर्पित किया गया है।

वैसे तो साल में एक बार मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है, लेकिन इसके अलावा भी वर्ष में कई शिवरात्रियां आती हैं, जिन्हें प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाते हैं।
मासिक शिवरात्रि - दिन- सोमवार – तिथि - 17 अगस्त 2020 – मुहूर्त समय- 00:03 से 00:47 (18 अगस्त 2020) तक

: 19 अगस्त : बुधवार : भाद्रपद अमावस्या
प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। भाद्रपद माह की अमावस्या की भी अपनी खासियत हैं। इस माह की अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिये कुश एकत्रित की जा सकती है। मान्यता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह वर्षभर तक पुण्य फलदायी होती है।

यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इस कुश का प्रयोग 12 सालों तक किया जा सकता है। कुश एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। शास्त्रों में दस प्रकार की कुशों का उल्लेख मिलता है –

कुशा:काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।

गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।

मान्यता है कि घास के इन दस प्रकारों में जो भी घास सुलभ एकत्रित की जा सकती हो इस दिन कर लेनी चाहिये। लेकिन ध्यान रखना चाहिये कि घास को केवल हाथ से ही एकत्रित करना चाहिये और उसकी पत्तियां पूरी की पूरी होनी चाहिये आगे का भाग टूटा हुआ न हो। इस कर्म के लिये सूर्योदय का समय उचित रहता है।

भाद्रपद अमावस्या : 19 अगस्त 2020 बुधवार, को भाद्रपद अमावस्या पड़ रही है। यह अमावस्या 18 अगस्त 2020 सुबह 10 बजकर 39 मिनट से आरंभ होकर अगले दिन 19 अगस्त सुबह 8 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगी।


: 21 अगस्त : शुक्रवार : हरतालिका तीज
सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरतालिका तीज का कठिन व्रत रखती हैं। मान्यता है मां पार्वती ने भगवान शिवजी को वर रूप में प्राप्त करने के लिए घोर वन में तप किया व बालू के शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया था जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिये।

उसके बाद माता पार्वती ने पूजा की सभी सामग्री नदी में प्रवाहित कर दी और अपना उपवास तोड़ा। ऐसी मान्यता है कि माता ने जब यह व्रत किया था, तब भाद्रपद की तीज तिथि थी व हस्त नक्षत्र था। बाद में राजा हिमालय ने भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह कराया।

हरतालिका तीज पर महिलाएं सुंदर मंडप सजाकर बालू से शिव जी और पार्वती जी की प्रतिमा बनाकर उनका गठबंधन करती हैं। इस साल हरताल‍िका तीज 21 अगस्‍त को मनाई जाएगी।

: 22 अगस्त : शनिवार : गणेश चतुर्थी
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश जी का उत्सव गणपति प्रतिमा की स्थापना कर उनकी पूजा से आरंभ होता है और लगातार दस दिनों तक घर में रखकर अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है।

इस दिन ढोल नगाड़े बजाते हुए, नाचते गाते हुए गणेश प्रतिमा को विसर्जन के लिये ले जाया जाता है। विसर्जन के साथ ही गणेशोत्सव की समाप्ति होती है।

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: 29 अगस्त : शनिवार : परिवर्तिनी एकादशी
परिवर्तिनी एकादशी को पार्श्व एकादशी, वामन एकादशी, जयझूलनी, डोल ग्यारस, जयंती एकादशी आदि कई नामों से जाना जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत से वाजपेय यज्ञ जितना पुण्य फल उपासक को मिलता है।

इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की आराधना की जाती है। जो साधक अपने पूर्वजन्म से लेकर वर्तमान में जाने-अंजाने किये गये पापों का प्रायश्चित करना चाहते हैं और मोक्ष की कामना रखते हैं उनके लिये यह एकादशी मोक्ष देने वाली, समस्त पापों का नाश करने वाली मानी जाती है।

: 30 अगस्त : रविवार : प्रदोष व्रत (शुक्ल)
प्रदोष व्रत को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की अराधना करने से जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों के दान जितना होता है। इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था।

उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके द्वारा वो शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा।

सबसे पहले इस व्रत के महत्व के बारे में भगवान शिव ने माता सती को बताया था, उसके बाद सूत जी को इस व्रत के बारे में महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया, जिसके बाद सूत जी ने इस व्रत की महिमा के बारे में शौनकादि ऋषियों को बताया था।

मान्यता है कि रवि प्रदोष के दिन जो भी शिव भक्त व्रत रखकर सूर्यास्त के समय प्रदोष काल में भगवान शिव की विशेष पूजा उपासना करता है, महादेव भोलेबाबा उनको प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं।

: 31 अगस्त : सोमवार : ओणम/थिरुवोणम
ओणम केरल का दस दिवसीय त्यौहार है और इस पर्व का दसवां व अंतिम दिन बेहद ख़ास माना जाता है जिसे थिरुवोणम कहते हैं। मलयालम में श्रावन नक्षत्र को थिरु ओनम कहकर पुकारा जाता है। मलयालम कैलेंडर के अनुसार चिंगम माह में श्रावण/थिरुवोणम नक्षत्र के प्रबल होने पर थिरु ओणम की पूजा की जाती है।

थिरुवोणम : थिरुवोणम दो शब्दों से मिलकर बना है - ‘थिरु और ओणम’ जिसमें थिरु का अर्थ है ‘पवित्र’, यह संस्कृत भाषा के ‘श्री’ के समान माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि प्रत्येक वर्ष इस दिन राजा महाबलि पाताल लोक से यहाँ लोगों को आशीर्वाद देने आते हैं। इसके अलावा भी कई आस्थाएं इस ख़ास दिन से जुड़ी हुई हैं, जैसे- इसी दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार का जन्म हुआ था।

केरल में इस त्यौहार के लिए चार दिन का अवकाश रहता है जो थिरुवोणम के दिन से एक दिन पहले से प्रारंभ होकर उसके दो दिन बाद समाप्त होता है। ये चार दिन प्रथम ओणम, द्वितीय ओणम, तृतीय ओणम, और चतुर्थ ओणम के रुप में जाने जाते हैं। द्वितीय ओणम मुख्य रुप से थिरुवोणम का दिन है।



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