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हर दर से मायूस हो चुके लोगों के लिए-यहां विराजती हैं न्याय के लिए देवी मां भगवती

यूं तो आपने कई मंदिरों में होने वाले चमत्कारों के बारे में सुना या देखा भी होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड में मां भगवती का एक ऐसा मंदिर भी है, जहां देवी मां के दरबार में कोर्ट सहित हर दर से मायूस हो चुके लोग आकर न्याय की गुहार लगाते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो फैसला कोर्ट में भी नहीं हो पाता, वह माता के दरबार में बिना दलील-वकील के हो जाता है। यहीं नहीं विरोधी दोषी हुआ तो वह उसे बेहद कड़ी सजा तक देती हैं।

जी हां हम बात कर रहे हैं देवभूमि उत्तराखंड में कोटगाड़ी (कोकिला देवी) नामक एक देवी मंदिर की...

ऐसा होता है न्याय...
मान्यता के अनुसार हर जगह से मायूस हो चुके लोग यहां आकर अथवा बिना आए, कहीं से भी उनका नाम लेकर न्याय की गुहार लगाते (स्थानीय भाषा में विरोधी के खिलाफ ‘घात’ डालते) हैं। कहते हैं कि माता कोटगाड़ी ‘कोट’ यानी कोर्ट में भी उद्घाटित न हो पाए न्याय को भी बाहर ‘गाड़’ यानी निकाल देती हैं। यानी जो फैसला कोर्ट में भी नहीं हो पाता, वह माता के दरबार में बिना दलील-वकील के हो जाता है।

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विरोधी दोषी हुआ तो वह उसे बेहद कड़ी सजा देती हैं। दोषी ही नहीं उसके प्रियजनों, पशुओं की जान तक ले लेती हैं, लेकिन यदि फरियादी ही दोषी हो और किसी अन्य पर झूठा दोष या आरोप लगा रहा हो, तो उसकी भी खैर नहीं।

वह स्वयं भी माता के कोप से बच नहीं सकता। इसलिए लोग बहुत सोच समझकर ही माता के दरबार में न्याय की गुहार लगाते हैं। और जब हर ओर से हार कर उनका नाम लेते हैं, तो उन्हें अवश्य ही न्याय मिलता है।

स्वयं प्रकट हुईं : देवी मां
देवी भगवती को समर्पित यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल चौकोड़ी के करीब कोटमन्या मार्ग से 17 किलोमीटर की दूरी पर कोटगाड़ी नाम के एक गांव में स्थित है। स्थानीय लोगों के अनुसार कोटगाड़ी मूलत: जोशी ब्राह्मणों का गांव था। एक दौर में माता कोटगाड़ी यहां स्वयं प्रकट हुई और यहीं रहते हुए न्याय भी देती थीं। वे यहां बोलती भी थीं।

मां कोकिला (कोटगाड़ी) मंदिर का रहस्य व मान्यताएं-
देवभूमि उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के पांखू (बेड़ीनाग) में स्थित मां कोकिला (कोटगाड़ी) के मंदिर को न्याय के मंदिर के रूप में जाना जाता है। लोग आपसी विवाद, लड़ाई-झगड़े के मामलों में न्यायालय में जाने के बजाय मां के दरबार में ले जाना पसंद करते हैं।

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ऐसे लगाते हैं न्याय की गुहार...
मंदिर में सादे कागज में चिट्ठी लिखकर न्याय की गुहार लगाई जाती है। मंदिर में टंगी असंख्य अर्जियां इस बात की गवाही देती हैं। जंगलों की रक्षा के लिए लोग पांच, 10 वर्ष के लिए जंगल मां कोकिला को चढ़ा देते हैं। बेहद रमणीक स्थान पर स्थित मां कोकिला के दरबार के चाहने वाले देश, दुनियां में बहुत हैं।

ब्रह्मांड में उत्तराखंड के तीर्थों जैसी अलौकिकता और दिव्यता कहीं नहीं : आदि जगदगुरु शंकराचार्य
उत्तराखंड की पावन धरती में भगवान शंकर सहित 33 कोटि देवताओं के दर्शन होते हैं। आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने स्वयं इस भूमि पर आकर स्वयं को धन्य मानते हुए कहा था कि इस ब्रह्मांड में उत्तराखंड के तीर्थों जैसी अलौकिकता और दिव्यता कहीं नहीं है।

इस क्षेत्र में शक्तिपीठों की भरमार है। सभी पावन दिव्य स्थलों में से तत्कालिक फल की सिद्धि देने वाली माता कोकिला देवी मंदिर का अपना दिव्य महात्म्य है।

इन्हें कोटगाड़ी देवी भी कहा जाता है, कहा जाता है कि यहां पर सच्चे मन से निष्ठा पूर्वक की गई पूजा-आराधना का फल तुरंत मिलता है और अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।

माता का शक्तिपीठ...
कोटगाड़ी माता का दरबार एक छोटे से मंदिर के रूप में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल चौकोड़ी के करीब कोटमन्या तथा मुन्स्यारी मार्ग के एक पड़ाव थल से 17-17 किमी की दूरी पर पाखू नामक के स्थान के पास कोटगाड़ी नाम के एक गांव में स्थित है।

स्थानीय लोगों के अनुसार एक दौर में माता कोटगाड़ी यहां स्वयं प्रकट हुई थीं लिहाजा यह स्थान माता का शक्तिपीठ भी कहलाता है। माता ने स्वयं स्थानीय निवासियों को पास के दशौली गांव के पाठक जाति के एक ब्राह्मण को यहां बुलाया था।

कोटगाड़ी गांव के जोशी लोग माता के आदेश पर दशौली के एक पाठक पंडित को यहां लेकर आए, और उन्हें माता के मंदिर के दूसरी ओर के ‘मदीगांव” नाम के गांव में बसाया।

इन्हीं पाठक पंडित परिवार को ही मंदिर में पूजा-पाठ कराने का अधिकार दिया गया। वर्तमान में उन पाठक पंडित की करीब 10 पीढ़ियों के उपरांत करीब 28 परिवार हो चुके हैं। इस तथ्य से मंदिर की प्राचीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

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पाठक परिवार के लोग ही मंदिर में पूजा कराने का अधिकार रखते हैं। स्वयं के आचरण तथा साफ-सफाई व शुद्धता का बहुत कड़ाई से पालन करते हैं।

परिवार में नई संतति अथवा किसी के मौत होने जैसी अशुद्धता की स्थिति में पास के घांजरी गांव के लोगों को अपनी जगह पूजा कराने की जिम्मेदारी देते हैं। लिहाजा एक परिवार के सदस्यों का करीब तीन से नौ माह में पूजा कराने का नंबर आता है।

गांव के पास ही भंडारी ग्वल ज्यू का भी एक मंदिर है। कोटगाड़ी आने वाले लोगों के लिए भंडारी ग्वल ज्यू के मंदिर में भी शीष नवाना व खिचड़ी का प्रसाद चढ़ाना आवश्यक माना जाता है। कार्की लोग इस मंदिर के पुजारी होते हैं।

मां बिना आए भी सुन लेती हैं पुकार...
माता के बारे में मान्यता है कि वह यहां आए बिना भी पुकार सुन लेती हैं और कड़ा न्याय करती हैं। इसी कारण माता पर न केवल लोगों का अटूट विश्वास वरन उनसे भय भी रहता है।

कुमाऊं मंडल में अनेक गांवों के लोगों ने कोटगाड़ी माता के नाम पर इस भय मिश्रित श्रद्धा का सदुपयोग वनों-पर्यावरण को बचाने के लिए भी किया है। गांवों के पास के वनों को माता को चढ़ा दिया गया है, जिसके बाद से कोई भी इन वनों से एक पौधा भी काटने की हिम्मत नहीं करता।

लोगों का मानना है कि जब कोई व्यक्ति चौतरफा निराशाओं से घिर जाता है और हर ओर से अन्याय का शिकार हो जाता है, तो संकल्प पूर्वक कोटगाड़ी की देवी का जिस भी स्थान से वह सच्चे मन से स्मरण करता है, वहीं से निराशा के बादल हटने शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि संकल्प पूर्ण होने के बाद देवी माता कोटगाड़ी के दर्शन की महत्वता अनिवार्य है।

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इस मंदिर में फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगे रहते हैं। दूर-दराज से श्रद्धालुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेज कर मनौतियां मांगते हैं। मनौती पूर्ण होने पर भी माता को पत्र लिखते हैं और समय व मैया के आदेश पर माता के दर्शन के लिए पधारते हैं।

न्याय का दरबार
कोटगाडी देवी के दरबार को न्याय का दरबार कहना अतिशयोक्ति न होगा। नाम लेने अथवा डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेजने मात्र से कोटगाड़ी देवी पुकार सुन लेती हैं, और सच्चा न्याय करते हुए चमत्कार दिखाती हैं।

माना जाता है कि इनके शरणागत सब प्रकार से मनोंवाछित फल प्राप्त करते हैं। इनके बारे में एक दंत कथा भी काफी प्रसिद्ध है कि माता के प्रभाव से आजादी के पूर्व अग्रेजों के शासन काल में एक जज ने जटिल यात्रा कर यहां पहुंचकर क्षमा याचना की।

इसके पीछे कारण बताया जाता है कि क्षेत्र के एक निर्दोष व्यक्ति को जब अदालत से भी न्याय नहीं मिला, तो सामाजिक दंश से आहत होकर स्वंय को निर्दोष साबित करने के लिए उसने करुण पुकार के साथ भगवती कोटगाडी के चरणों में विनती की।

भक्त की विनती के फलस्वरुप चमत्कारिक घटना के साथ कुछ समय के बाद जज ने यहां पहुंचकर उसे निर्दोष बताया। इस तरह के एक नही सैकड़ों चमत्कार देवी के इस दरबार से जुड़े हुए हैं।

जनश्रुति के अनुसार जब सभी देवता कुछ विशेष परिस्थितियों में स्वयं को न्याय देने व फल प्रदान करने में असमर्थ मानते हैं, तो ऐसी स्थिति में कोकिला कोटगाडी देवी तत्काल न्याय देने को तत्पर रहती हैं, हिमालय के देवी शक्ति पीठों में कोकिला माता का महात्म्य निराला है, सिद्धि की अभिलाषा रखने वाले और ऐश्वर्य की कामना करने वाले लोगों के लिए भी यह स्थान त्वरित फलदायक है।

देवी के उपासक इन्हें विश्वेश्वरी, चन्दि्रका, कोटवी, सुगन्धा, परमेश्वरी, चण्डिका, वन्दनीया, सरस्वती, अभया प्रचण्डा, देवमाता, नागमाता, प्रभा आदि अनेक नामों से भी पुकारते हैं।

इस पौराणिक मंदिर में शक्ति कैसे और कब अवतरित हुई इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी नही मिलती है, लेकिन दंत कथाओं में कई भक्त मानते हैं कि यह देवी नेपाल से यहां आईं हैं इनके विश्राम स्थल अनेकों स्थानों पर है, जहां नित्य इनकी पूजा होती है।

कोट का तात्पर्य अदालत से माना जाता है, पीडितों को तत्काल न्याय देने के कारण ही इस देवी को न्याय की देवी माना जाता है और इसी भाव से इनकी पूजा प्रतिष्ठा सम्पन्न कराने की परम्परा है।

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कालिया नाग व श्री कृष्ण...
एक प्राचीन कथा के अनुसार जब योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने बालपन में कालिया नाग का मर्दन किया और उसे जलाशय छोड़ने को कहा तो कालिया नाग व उसकी पत्नियों ने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना कर प्रार्थना की कि, हे प्रभु हमे ऐसा सुगम स्थान बताये जहां हम पूर्णतः सुरक्षित रह सके, तब भगवान श्री कृष्ण ने इसी कष्ट निवारिणी माता की शरण में कालिया नाग को भेजकर अभयदान प्रदान किया था।

कालिया नाग का प्राचीन मंदिर कोटगाडी से थोडी ही दूरी पर पर्वत की चोटी पर स्थित है जिसे स्थानीय भाषा में ‘काली नाग को डान’ कहते हैं। बताते हैं, पर्वत की चोटी पर स्थित इस मंदिर को कभी भी गरुड आर-पार नही कर सकते ऐसी परमकृपा है।

मंदिर की शक्ति पर किसी शस्त्र के वार का गहरा निशान...
लोक मान्यताओं के अनुसार प्राचीनकाल में किसी ग्वाले की सुन्दर गाय इस मंदिर की शक्ति पर आकर अपना दूध स्वयं दुहाकर चली जाती थी, ग्वाले का परिवार बेहद अचम्भे में रहता था, कि आखिर इसका दूध कहा जाता है।

इस प्रकार एक दिन ग्वाले की पत्नी ने चुपचाप गाय का पीछा किया जब उसने यह दृश्य देखा तो धारदार शस्त्र से उस शक्ति पर वार कर डाला इस प्रहार से तीन खून की धारायें बह निकली जो क्रमशः पाताल, स्वर्ग व पृथ्वी पर पहुंची, पृथ्वी पर खून की धारा प्रतीक स्वरुप यहां देखी जा सकती है। वार वाले स्थान पर आज भी कितना ही दूध अर्पित किया जाए, दूध शोषित हो जाता है।

वहीं कालिया नाग मंदिर के दर्शन स्त्रियों के लिए अनष्टिकारी माने जाते है, जिसे श्राप का प्रभाव कहा जाता है। मंदिर के पास ही माता गंगा का एक पावन जल कुण्ड है, मान्यता है, कि ब्रहम व मूहत में माता कोकिला इस जल से स्नान करती हैं।

सच्चे श्रद्वालुओं को इस पहर में यहां पर माता के वाहन शेर के दर्शन होते है, इस प्रकार की एक नहीं सैकडों दंत कथाएं इस शक्तिमयी देवी के बारे प्रचलित हैं, जो माता कोकिला के विषेश महात्मय को दर्शाती है, इस दरबार में माता कोकिला के साथ बाण मसूरिया, उडर, घशाण आदि अनेकों देवताओं की पूजा की जाती है स्थानीय गांव के पुजारी पाठक मंदिर में पूजा अर्चना का कार्य सम्पन करते है। भण्डारी, गोलू चोटिया व वाण के पुजारी कार्की लोग है।

ऐसे पहुंचे यहां : HOW TO REACH?
हवाई जहाज- निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा है यहां से कोकिला मंदिर पांखु (पिथौरागढ़ ) की दूरी लगभग 245 किलोमीटर हैं, यहां से आप टैक्सी अथवा कार से आसानी से जा सकते हैं।

ट्रेन- निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम रेलवे स्टेशन हैं। यहां से कोकिला मंदिर पांखु (पिथौरागढ़ ) की दूरी लगभग 210 किलोमीटर हैं, यहां से आप टैक्सी अथवा कार से आसानी से जा सकते हैं।



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