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तेजी से बढ़ते COVID-19 केस के बीच अच्छी खबर, 5 फीसदी से कम मरीज ही गंभीर

नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहे भारत ( Coronavirus Cases in India ) में प्रवासी मजदूरों ( Migrant Labourers ) की घर वापसी और लॉकडाउन ( Lockdown ) में ढील दिए जाने से इसने काफी दूर तक पैर पसार लिए हैं। हालांकि राज्यवार आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि कोरोना वायरस के कुल रोगियों ( Covid-19 Patients ) में से बहुत कम को ही गंभीर देखभाल की जरूरत होती है। कोरोना वायरस ( coronavirus s ) से सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र ( Maharashtra ), दिल्ली ( Delhi ), गुजरात ( Gujarat ) और तमिलनाडु ( Tamil Nadu ) जैसे राज्यों में भी इन मरीजों को ICU ( Intensive Care Unit ) की कम ही आवश्यकता होती है। यही हाल वेंटिलेटर्स ( Ventilator ) की जरूरत का भी है।

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वहीं, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में भी यही स्थिति है, जहां प्रवासी मजदूरों की घर वापसी ने कोरोना वायरस के मामलों को बढ़ाया है। 27 मई तक कुल 83,004 एक्टिव केस में से 3500 से कम को किसी भी ऑक्सीजन थेरेपी ( Oxygen ), आईसीयू या वेंटिलेटर जैसी किसी गंभीर स्वास्थ्य देखभाल सेवा ( Critical Care Unit ) की जरूरत आन पड़ी।

अब तक कुल 1,868 रोगियों को आईसीयू (2.25 प्रतिशत) की जरूरत पड़ी, जिनमें से सिर्फ तीन वेंटिलेटर पर थे। जबकि 1585 लोग (1.91 प्रतिशत) ही ऑक्सीजन पर थे। देश में कोरोना वायरस के पहले मामले के सामने आने के बाद से यह चलन तकरीबन एक सा ही बना हुआ है। वहीं, 15 मई तक देश में कोरोना वायरस मरीजों की देखभाल के लिए 18,855 वेंटिलेटर उपलब्ध थे, तब से यह संख्या बढ़ भी गई हैै। इसके अलावा 60,000 नए वेंटिलेटर का आदेश भी दिया गया है।

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IMAGE CREDIT: ayodhya

ऐसे वक्त में यह आंकड़े काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब देश में मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी के बारे में आशंका जताई जा रही थी और कहा जा रहा था कि टेस्टिंग बढ़ने के साथ ही महामारी के आंकड़े बढ़ने से इनकी ज्यादा जरूरत पड़ेगी।

लॉकडाउन 4.0 के बाद आगे की क्या योजना है संबंधी एक सवाल का जवाब देते हुए नीतीयोग के डॉ. विनोद पॉल ने कहा, "हमारा लक्ष्य महामारी को नियंत्रित करना और फिर सामान्य स्थिति बहाल करना है ताकि जीवन आगे बढ़ सके। यह प्रतिबंधों के सभी फैसलों के लिए महत्वपूर्ण है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि महामारी का आकार रोगियों के इलाज के लिए हमारी क्षमता से कम रहे।"

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छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार जैसे प्रदेशों में जहां प्रवासियों की वापसी चिंता का कारण है, अच्छी बात यह है कि अब तक यहां कोई भी मरीज वेंटिलेटर, ऑक्सीजन या आईसीयू में नहीं है। इसके कारण स्पष्ट नहीं हैं। ऐसी भी अटकलें हैं कि इन राज्यों में महामारी अपने प्रारंभिक चरण में हो सकती है या कुछ रोगियों को ही महत्वपूर्ण देखभाल की आवश्यकता होती है या फिर यह कि इन राज्यों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे समान रूप से नहीं हैं।

वहीं, 27 मई तक उत्तर प्रदेश में 2,680 एक्टिव केस में से 61 को आईसीयू और 38 को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी। जबकि किसी भी मरीज को वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत नहीं थी। सबसे ज्यादा मौतों की संख्या वाले महाराष्ट्र में ऑक्सीजन पर मरीजों का प्रतिशत सिर्फ 2.21 है। दिल्ली में 3.56 प्रतिशत है। लेकिन 27 मई को जब महाराष्ट्र में एक्टिव केसस की संख्या 36,012 थी, तब ऑक्सीजन पर सिर्फ 796 मरीज थे, जबकि दिल्ली में 6954 एक्टिव केस में से 248 ही ऑक्सीजन पर थे।

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कुल मिलाकर ऑक्सीजन पर लोगों का प्रतिशत (देश में कुल एक्टिव केस का 1.91 फीसदी) एक महत्वपूर्ण आंकड़ा है क्योंकि यह कोरोना मामलों में अक्सर देखा गया है कि ऑक्सीजन पर कुछ दिनों के बाद मरीज जल्दी ठीक हो जाते हैं। हालांकि, अगर समय पर ऑक्सीजन नहीं दी जाती है तो किसी अंग के नुकसान और तेजी से हालत बिगड़ने की संभावना बढ़ जाती है। 26 मई तक दिल्ली में COVID-19 से 303 मौतें हुईं जबकि 27 मई तक महाराष्ट्र में 1897 मौतें हुईं।

भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य फाउंडेशन और आईसीएमआर के COVID सदस्य डॉ. के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा, "आंकड़ें बताते हैं कि पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश को छोड़कर गहन देखभाल की आवश्यकता बेहद कम देखने को मिली। वेंटिलेटर का इस्तेमाल भी बहुत कम नजर आता है और ऑक्सीजन का इस्तेमाल मैकेनिकल वेंटिलेटर से अधिक किया गया। कुल मिलाकर आंकड़े एडवांस्ड इंटेसिव केयर (गहन देखभाल) की बहुत सीमित आवश्यकता के साथ अच्छे क्लीनिकल परिणामों के अनुरूप हैं।"

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उधर, वास्तव में बंगाल में 2240 एक्टिव मामलों में से सर्वाधिक 10.34 फीसदी मरीज ICU में थे और ऑक्सीजन पर भी अपेक्षाकृत उच्च अनुपात मे 5.8 फीसदी मरीज मिले। राज्य में 27 मई तक 289 लोगों की मौत हुई। जबकि 27 मई तक मध्य प्रदेश में 3030 एक्टिव केस में 7.85 फीसदी ऑक्सीजन पर और 6.44 फीसदी आईसीयू में थे। यहां 27 मई तक 313 लोगों की मौते हुई हैं।

आंकड़ों के मुताबिक मरीजों के गंभीर इलाज के लिए जरूरी इन तीन सेवाओं में से किसी एक की भी जरूरत वाले महत्वपूर्ण मामले केवल एक दर्जन राज्यों तक ही सीमित हैं। भारत में 69 फीसदी रोगी स्पर्शोन्मुख ( Asymptomatic ) हैं और 15 फीसदी से कम एक्टिव मामलों को ही अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है। अन्य लोग होम क्वारंटाइन, पेड क्वारंटाइन, क्वारंटाइन सेंटर्स या COVID केयर सेंटर्स में हैं, जहां न्यूनतम चिकित्सा सुविधाओं के साथ अस्थायी सेटअप हैं। यहां मरीजों को निगरानी में रखा जाता है ताकि अचानक हालत खराब होने की स्थिति में उन्हें जल्दी से अस्पतालों में भेजा जा सके।

27 मई तक भारत में 1,58,747 आइसोलेशन बेड, 20,355 आईसीयू बेड और 69,076 ऑक्सीजन-सपोर्टेड बेड के साथ 930 डेडिकेटेड कोरोना अस्पताल थे। जबकि 1,32,593 आइसोलेशन बेड, 10,903 आईसीयू बेड और 45,562 ऑक्सीजन-सपोर्टेड बेड के साथ 2,362 डेडिकेटड COVID हेल्थ सेंटर्स और 6,52,830 बेड के साथ 10,341 क्वारंटाइन सेंटर्स और 7,195 कोविद केयर सेंटर मौजूद थे।

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इस बीच पिछले 24 घंटों में 7466 नए केस और 175 मौतों के साथ देश में कोरोना वायरस मामलों की कुल संख्या 1,65,799 तक पहुंच गई। फिलहाल देश में 89,987 एक्टिव केस हैं जबकि 71,105 ठीक होकर वापस चले गए और 4706 की मौत हो गई।



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