क्यों शील के 15 साल के शासन को भूल गई दिल्ली की जनता

नई दिल्ली। दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह से नदारद ही दिखी। उसके कार्यकर्ताओं में न जोश था और न ही एकजुटता। पूरे कैंपेन में कांग्रेस ने अपनी कदावर नेता शीला दीक्षित को भूला ही दिया। उनके 15 साल के शासन को जनता के बीच प्रचार करने में वह बिल्कुल विफल रही।

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कांग्रेस के प्रमुख चेहरे राहुल और प्रियंका गांधी प्रचार अभियान में उतरी ही नहीं। दिल्ली के सीएम के खिलाफ उनके मुंह कोई भी विरोधी स्वर नहीं दिए। यह हैरान करने वाला था कि देश की इतनी बड़ी पार्टी ने इस चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को वॉक ओवर दे दिया। आम आदमी पार्टी के सीएम केजरीवाल ने 2013 में शीला की सरकार के खिलाफ धरने दिए थे। उन्होंने कांग्रेस सरकार को भ्रष्ट कहा था। इसके बाद चुनाव में आप को पूर्ण बहुमत न मिलने पर कांग्रेस ने आप की सरकार बनवाई।

कुछ दिन सरकार चलाने के बाद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया और दोबारा 2015 के विधानसभा चुनाव में उतरे। यहां पर उन्हें बड़ी सफलता मिली। उन्हें 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटें मिलीं। वहीं भाजपा को तीन सीटें मिलीं और कांग्रेस शून्य पर चली गई। इस परिणाम में कांग्रेस की यह दुगर्ति किसी ने सपने में नहीं सोची थी। पूर्व सीएम शीला दीक्षित के विकास कार्यों को जनता ने दरकिनार कर केजरीवाल के पक्ष में ताबड़तोड़ वोटिंग की। इस दिल्ली के चुनाव में उनका नाम नदारद था। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस की स्थिति रही कि वह किस मुद्दे पर केजरीवाल सरकार को घेरे। उसके स्थानीय कार्यकर्ताओं ने भी हथियार डाल दिए थे।

15 साल दिल्ली पर किया था राज

शीला दीक्षित पहली बार कन्नोज से सांसद बनी थी, उसके बाद उन्होंने कुछ साल केंद्र सरकार में इंदिरा गांधी के साथ भी काम किया था। शीला ने 1984 से 1989 तक संयुक्त राष्ट्र में महिला आयोग में भारत की तरफ से प्रतिनिधित्व किया था। बता दें कि वह राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) सरकार में केन्द्रीय मंत्री भी रही थी। 1998 में वह पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी थी जिस कारण शुरु में कुछ लोगों ने उनका बाहरी होने की बात कहीं और उनका विरोध भी किया था, मगर लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनकर उन्होंने सभी आलोचकों के मुंह बंद कर दिया। उन्होंने 1998 से 2013 तक दिल्ली पर राज किया है। जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है। शीला दीक्षित जिस साल पहली बार मुख्यमंत्री बनी उसी साल उन्हें लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था।



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