देवताओं के पाप धोने के लिए नर्मदा को शिव ने किया था उत्पन्न, 'कभी ना नाश' होने का मिला है वरदान

माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन हर वर्ष नर्मदा जयंती महोत्सव मनाया जाता है। मां नर्मदा के जन्मस्थान अमरकंटक में जयंती उत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत में 7 धार्मिक नदियां हैं, जिसमें से मां नर्मदा को भगवान शिव ने देवताओं के पाप धोने के लिए उत्पन्न किया था।


माना जाता है कि इसके पवित्र जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवताओं ने अंधकासुर नाम के राक्षस का विनाश किया और उस वध में देवताओं ने कई पाप किए। इस स्थिति के चलते भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी सभी देवताओं के साथ भगवान शिव के पास गए।


देवताओं ने उनसे अनुरोध किया कि प्रभु राक्षसों का वध करते हुए हम भी पाप के भागीदारी हो गए हैं। हमारे पापों का नाश करने का कोई उपाए सुझाएं। जब भगवान शिव अपने नेत्र खोलते हैं, तभी उनकी भौओं से एक प्रकाशमय बिंदु पृथ्वी पर अमरकंटक के मैखल पर्वत पर गिरता है और वहां एक कन्या ने जन्म लिया।

वह कन्या बहुत ही रुपवान होती है, इस कारण से भगवान विष्णु और अन्य देव उस कन्या का नाम नर्मदा रखते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव ने देवों के पाप धोने के लिए ही नर्मदा को उत्पन्न किया था। एक अन्य कथा के अनुसार, उत्तर में बहने वाली गंगा के तट पर नर्मदा ने कई सालों तक भगवान शिव की आराधना की थी। भगवान शिव उनकी आराधना से प्रसन्न होकर वरदान दिया है, जो अन्य किसी नदी को प्राप्त नहीं हैं।


नर्मदा ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि मेरा नाश किसी भी परिस्थिति में नहीं हो, चाहे प्रलय ही क्यों न आ जाए, मैं पृथ्वी पर एक मात्र ऐसी नदी रहूं जो पापों का नाश करूं। मेरा हर पत्थर बिना किसी प्राण प्रतिष्ठा के भी पूजनीय हो, मेरे तट पर सभी देवताओं का निवास रहे। यही कारण है कि नर्मदा का कभी विनाश नहीं होता। नर्मदा को सभी के पापों को हरने वाली नदी मानी जाती है।



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