गोपाष्टमी: गाय और ग्वालों की पूजा के बाद जरूर करें ये काम, मिलेगा अक्षय पुण्य

हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। मान्यताओं के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है। हमारी संस्कृती में गाय की पूजा का विधान है। लेकिन हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का दिन मनाया जाता है। इस दिन गाय, बछड़े और ग्वालों की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन को विशेष रुप से मथुरा, ब्रज और वृंदावन क्षेत्र में मनाया जाता है। इस बार गोपाष्टमी का व्रत 4 नवंबर, सोमवार के दिन मनया जाएगा।

 

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गोपाष्टमी मुहूर्त

अष्टमी तिथि 04 नवंबर दिन सोमवार को तड़के 02 बजकर 56 मिनट से प्रारंभ हो रही है, जिसका समापन 05 नवंबर दिन मंगलवार को सुबह 04 बजकर 57 मिनट पर हो रहा है।

 

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गोपाष्टमी पर ऐसे करें पूजा

गोपाष्टमी के दिन सुबह गायों को स्नान करवाएं। इसके बाद उन्हें फूल, अक्षत, रोली आदि चीजों से विधि पूर्वक गाय की पूजा करें। गाय की पूजा के बाद ग्वालों को वस्त्र आदि सामग्री देकर उनकी भी पूजा करें। ग्वालों को वस्त्र, दक्षिणा आदि देकर गायों को ग्रास दें और उनकी परिक्रमा करें। मान्यताओं के अनुसार इस दिन गायों की पूजा के साथ ही उनके पैरों के नीचे से निकलने का भी विधान है, इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

गोपाष्टमी की शाम जब गाय घर लौटती हैं, तब फिर उनकी पूजा की जाती है। खासतौर पर इस दिन गाय को हरा चारा, हरा मटर एवं गुड़ खिलाया जाता है। जिन श्रद्धालुओं के घरों में गाय नहीं हैं वे लोग गौशाला जाकर गाय की पूजा करते हैं।

 

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गोपाष्टमी कथा

भागवत पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक इंद्र के प्रकोप से गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ अंगुली पर धारण किए रहे। अष्टमी के दिन इंद्र ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली, उनका अहंकार टूट गया और वे श्रीकृष्ण के शरण में आ गए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को कामधेनु ने भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया। उस दिन भगवान श्रीकृष्ण गोविन्द कहलाए। उस दिन के बाद से ही हर वर्ष कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा।



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