अहोई अष्टमी के दिन जरुर पढ़े ये व्रत कथा, व्रत का मिलेगा पूरा फल

21 अक्टूबर को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाएगा। यह व्रत सभी महिलायें अपने संतान की लंबी आयु व उनके निरोगी के लिये की जाती है। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। संतान की सलामती के लिये किया जाने वाले इस व्रत में मां पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा होती है।
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पंडित रमाकांत मिश्रा के अनुसार इस बार अहोई अष्टमी का व्रत बहुत ही विशेष योग में पड़ रहा है। अहोई अष्टमी व्रत वाले दिन पूजा करने के बाद कथा जरुर पढ़ें। आइए जानते हैं अहोई अष्टमी व्रत कथा...

अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त
पूजा का शुभ मुहूर्त 21 अक्टूबर को शाम 5.42 से शाम 6.59 बजे तक का है।
तारों के निकलने का समय शाम 6.10 बजे का है।
वैसे अष्टमी तिथि 21 अक्टूबर को सुबह 6.44 से 22 अक्टूबर की सुबह 5.25 तक रहेगी।

अहोई अष्टमी व्रत कथा
कथा के अनुसार, एक साहूकार के चार बेटे और सात बहुएं और एक बेटी भी थी। बेटी दीपावली पर अपने मायके आई हुई थी। दीपावली पर्व की तैयारियों में लगी बहुयें घर लीपने के लिये मिट्टी लाने जा रही थी, उनके साथ ननद भी चली गई। वहां मिट्टी काट रही साहूकार की बेटी की खुरपी से वहां अपने बच्चों के साथ रह रही स्याहु (साही) के बेटे के उपर पड़ी जिससे की स्याहू के एक बेटे की मौत हो गई। इस बात से क्रोधित होकर स्याहु ने साहूकार की बेटी से कहा- मैं तुम्हारी कोथ बांधूंगी।
स्याहु की इस बात को सुनकर साहूकार की बेची ने अपनी सातों भाभियों से विनती की कि वे उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें, जिनमें से सबसे छोटी भाभी ने ननद के बदले अपनी कोख बंधवा ली। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे हुए वे सात दिनों के अंदर मर गये। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है।
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