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ईरान मुद्दे पर ट्रंप का यू टर्न? अमरीका के सामने 'इमेज' बचाने की चुनौती

नई दिल्ली। अमरीका और ईरान के बीच गहराते तनाव को लेकर तीसरे विश्वयुद्ध की आशंकाएं बढ़ने लगी है। हालांकि दुनिया के कई देश इसे एक अल्पकालिक तनाव मान रहे हैं। इन सबके बीच बीते दिनों राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।

बीते गुरुवार को ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने एक अमरीकी ड्रोन को मार गिराया, जिसके बाद अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सैन्य कार्रवाई के आदेश जारी कर दिए।

अमरीका ने ड्रोन गिराए जाने का लिया बदला, ईरान पर किया साइबर हमला

हालांकि हमले से 10 मिनट पहले ट्रंप ने अपना फैसला वापस ले लिया। इसके लिए बाद में ट्रंप ने कारण भी बताया। इसके बाद अमरीका ने कार्रवाई करते हुए ईरान पर साइबर अटैक का दावा किया।

बीते एक हफ्ता में अमरीका और ईरान के बीच हुई घटनाओं ने कई सवाल को जन्म दिया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है ट्रंप का अपना फैसला वापस लेना क्या राजनीतिक चाल है?

2020 में होगा अमरीकी राष्ट्रपति का चुनाव

दरअसल, 2020 में अमरीका में राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है। ऐसे में ट्रंप के लिए बहुत जरूरी है कि वह अपने दूसरे कार्यकाल के लिए मजबूत दावेदारी पेश करें।

राजनीतिज्ञ मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप ने आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए ईरान पर हमले का फैसला बदल दिया। क्योंकि यदि ईरान पर अमरीकी हमला होता तो ईरान भी पलटकर जवाब दे सकता था। ऐसे में अमरीका को भारी आर्थिक नुकसान का खतरा था।

US-Iran Tension: ईरान को दुनिया के नक्शे से मिटाना चाहता है अमरीका ?

आर्थिक खतरे को देखते हुए डेमोक्रेट्स के सांसद ट्रंप के फैसले के साथ खड़े नहीं हो सकते थे। लिहाजा चुनावी मौसम को देखते हुए ट्रंप ने अपना फैसला बदल लिया।

हसन रुहानी और डोनाल्ड ट्रंप

ईरान को मिला कई देशों का साथ

बीते एक महीने के अंदर ओमान की खाड़ी में दो बार अमरीकी तेल टैंकरों को निशाना बनाए जाने के बाद से मामला और भी अधिक गंभीर हो गया। अमरीका ने ईरान पर आरोप लगाया, लेकिन ईरान इस हमले में हाथ होने से साफ इनकार कर दिया।

अमरीका ने दूसरी बार हुए हमले का वीडियो जारी किया और ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड्स को जिम्मेदार बताया। इन सबके बीच ईरान पर अमरीकी हमले को लेकर कई देशों ने ट्रंप से बातचीत की और सैन्य कार्रवाई न करने की सलाह दी।

सीधे तौर पर ईरान को कई देशों का साथ मिला। इसमें चीन ने मुखर होकर ईरान का साथ दिया। इसके अलावे अमरीकी सहयोगी फ्रांस, जर्मंनी, ब्रिटेन आदि देशों ने भी ईरान पर सैन्य कार्रवाई न करने की बात कही।

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