लोकसभा चुनाव 2019: डेटा एनालिसिस का इन चुनावों में भी रहा जोर, इस तरह तैयार हुई भाजपा के जीत की जमीन
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के परिणामों की तस्वीर अब करीब-करीब साफ हो रही है। इन चुनावों में केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। वहीं इस बार कामयाबी की उम्मीद कर रही कांग्रेस के लिए यह परिणाम एक झटके की तरह हैं। रुझानों और परिणामो के बाद इन चुनावों में जो एक बड़ा तथ्य निकल कर सामने आ रहा है, वह है पार्टियों द्वारा उठाए तमाम मुद्दों से इतर उनकी रणनीति और उसका कार्यान्वन।
इन चुनावों में राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए मुद्दों और एक दूसरे के खिलाफ आक्रामक प्रचार से इतर भी कई रणनीतियों का इस्तेमाल किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और वर्तमान सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीति में सीट जीतने के लिए वोट शेयर, सीटों के वोटिंग शिफ्ट पैटर्न का विश्लेषण करने के लिए डेटा एनालिटिक्स पर जमकर मेहनत की। 2019 के चुनाव में भाजपा इस पर बहुत हद तक निर्भर थी। अब जैसा परिणामों और रुझानों से स्पष्ट है कि भाजपा को इसका भरपूर लाभ भी मिला।
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डेटा एनालिटिक्स से जीत का रास्ता
2014 के चुनावों में डेटा एनालिटिक्स के जमकर उपयोग हुआ। भारतीय चुनावों में वोटर डेटा तकनीकों का उपयोग कर चुनाव में बाजी मारने की बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में विस्तार से जानने की जरुरत है। भारत में 2014 के चुनाव में डेटा, प्रौद्योगिकी और डिजिटल प्लेटफॉर्म का जमकर उपयोग हुआ। इसके अंतर्गत वोटिंग पैटर्न के ट्रेंड और हाल के वर्षों में हुए सभी चुनावों में हुए वोटों के बदलाव को बारीकी से मॉनिटर किया जाता है। पिछले पांच वर्षों से भारत में इस प्रौद्योगिकी का जमकर इस्तेमाल हुआ है। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने भारत में जनसांख्यिकी, धर्म, राजनीति और जाति की जटिलताओं को रणनीतिक रूप से जानने के लिए डेटा एनालिसिस का खूब इस्तेमाल किया। बीजेपी ने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग सबसे पहले किया। उसके बाद कांग्रेस के साथ-साथ अन्य दलों ने महत्वपूर्ण राजनीतिक रणनीति के रूप में इसका इस्तेमाल करना शुरू किया। विशिष्ट जनसांख्यिकीय समीकरण और एक खास तबके को लक्षित करने के लिए विभिन्न स्रोतों से डेटा निकाले जाते हैं और उसका विश्लेषण किया जाता है। 2014 के चुनावों के दौरान डेटा एनालिटिक्स ने भी उम्मीदवारों को मतदाता के रुख को समझने और उसके अनुरूप अपने अभियान को धार देने का मौका दिया। पार्टियों को इन आंकड़ों के दम पर अपने रणनीतियों को तय करने का मौका मिला। डेटा से मिले रुझानों के अनुसार पार्टियों ने संचार और प्रौद्योगिकी के नए-नए हथकंडों के माध्यम से मतदाताओं को अपने अनुसार करने की कोशिश की।
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बीजेपी की जीत के पीछे का राज
बीजेपी ने डेटा एनालिटिक्स की शुरुआत 2014 में की थी। 2019 में वॉयस ब्रॉडकास्टिंग के माध्यम से बीजेपी ने मोबाइल मतदाताओं को लक्षित किया। बीजेपी ने अपनी रैलियों में जनता का मानसिक गणित समझने के लिए अपने अभियान के प्रचार वाहनों में जीपीएस का इस्तेमाल किया। इससे उनको फायदा यह हुआ कि बीजेपी दूरस्थ इलाकों में भी वोटरों के जुटाव और उनके वोट देने के पैटर्न को समझने में आसानी हुई। बीजेपी ने अपनी वेबसाइट पर कुकीज़ का इस्तेमाल किया। इससे वह विज्ञापनों के जरिये उपयोगकर्ता की इंटरनेट गतिविधि के बारे में जानकारी हासिल करती थी और सर्च हिस्ट्री के हिसाब से अपनी प्रचार सामग्री को उनके द्वारा खोजी गई साइट पर भेजा जाता था। बीजेपी ने न केवल 2014 के चुनावों के लिए चुनाव आयोग की वेबसाइट और सरकारी वेबसाइटों से डेटा प्राप्त किए, बल्कि चुनाव के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफार्म का ऐतिहासिक तरीके से इस्तेमाल किया गया। आरोप है कि बीजपी ने लोगों के व्यक्तिगत डेटा भी मार्केटिंग के जरिये हासिल किया। इसे कथित तौर पर सोशल मीडिया और मिस्ड कॉल के माध्यम से एकत्र किया गया है।
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कैसे एकत्र किया जाता है डेटा
पारंपरिक चुनावी डेटा को नए नजरिये से अन्य प्रकार के डेटा के साथ जोड़ा और विलय किया जा सकता है जैसे कि जनगणना डेटा, जीआईएस डेटा और जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक डेटा। आपको बता दें कि हैदराबाद स्थित एक एनालिटिक्स फर्म ने डेटा एनालिटिक्स स्टार्ट-अप शुरू किया था। इस कम्पनी ने भारत का पहला बड़ा चुनावी डेटा लाखो मतदाताओं के जरिए तैयार किया था । अनुमान लगाया जाता है कि बीजेपी ने इसी डेटा का इस्तेमाल 2014 के चुनावों के लिए किया। कांग्रेस डेटा एनालिटिक्स विभाग के प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती ने 2019 के चुनाव के लिए पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं को एक आम डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने के लिए कई पहल की । 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने डेटा एनालिटिक्स के महत्व को महसूस किया और बीजेपी से आ रही चुनौतियों को नाकाम करने की कई पहल की लेकिन जैसा कि परिणाम आने के बाद स्पष्ट है कि वह इस मामले में बीजपी से कहीं अधिक पिछड़ गई। बीजेपी ने एक बार फिर दिखाया कि कैसे डेटा का इस्तेमाल टिकट देने, चुनाव प्रचार के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लेने की रणनीति को भौगोलिक रूप से जटिल देश में गेम चेंजर बनाने के लिए किया जा सकता है।
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